बिहार की चुनावी आंधी में महागठबंधन बुरी तरह साफ...
बुझ गई लालटेन और डूब गई नाव! हाथ का सहारा भी नहीं आया काम !
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों और रुझानों ने राज्य की राजनीति पर गहरा असर डाला है. इस बार मतदान के बाद जिस तरह महिलाओं ने रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया, उसने पूरे चुनावी समीकरण को पूरी तरह बदल दिया. रुझानों के मुताबिक एनडीए फिर से 2010 जैसी बड़ी जीत दोहराता दिख रहा है और महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद कमजोर नजर आ रहा है. राजद का आंकड़ा आधा होता दिख रहा है, कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलती दिख रही हैं और विकासशील इंसान पार्टी का खाता भी खुलना मुश्किल लग रहा है.
चुनाव प्रचार के दौरान महागठबंधन ने लगातार दावा किया था कि वह प्रदेश की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरेगा. राजद के प्रवक्ता और महागठबंधन के अन्य नेता आत्मविश्वास से भरे दिख रहे थे, लेकिन नतीजों ने उनके दावों की हवा निकाल दी. दो चरणों के मतदान के बाद कई राजनीतिक जानकारों ने कहा था कि महिलाओं, ओबीसी और ईबीसी वर्ग का समर्थन एनडीए के पक्ष में जाएगा. उस समय महागठबंधन ने इन दावों को खारिज किया था, लेकिन परिणामों ने इस अनुमान को सही साबित कर दिया.
महागठबंधन ने मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की थी. उसका दावा था कि इस प्रक्रिया ने बड़ी संख्या में मतदाता हटाए गए हैं और चुनाव में इससे फर्क पड़ेगा. लेकिन जमीनी हकीकत यह रही कि जनता इस मुद्दे से प्रभावित नहीं हुई. लोगों ने इसे एक राजनीतिक तर्क के रूप में ही लिया और मतदान के समय इस विषय ने कोई खास असर नहीं डाला.
महागठबंधन में शामिल वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी, जो खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' कहकर अपनी अलग पहचान बनाते आए थे, इस चुनाव में बिल्कुल भी असर नहीं दिखा पाए. एनडीए छोड़ने के बाद उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर 15 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन रुझानों में उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलती दिख रही. जिस राजनीतिक रॉकेट की उम्मीद वह कर रहे थे, वह उड़ान भरने से पहले ही रुक गया.
बिहार में कांग्रेस पहले भी कठिन परिस्थितियों का सामना करती रही है, लेकिन इस बार स्थिति इससे भी खराब है. 2020 में कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार 60 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी को गिनती की सीटें मिलती दिख रही हैं. इसके मुकाबले जीतन राम मांझी की हम और चिराग पासवान की पार्टी का स्ट्राइक रेट काफी बेहतर नजर आ रहा है, जो एनडीए के साथ हैं.
इस बार चुनाव में सबसे बड़ा संदेश महिला मतदाताओं की भागीदारी से मिला. कुल मतदान में महिलाओं की भागीदारी 71 प्रतिशत रही, जो पुरुषों के मुकाबले करीब 10 प्रतिशत ज्यादा है. यह बड़ा अंतर नीतीश कुमार के पक्ष में निर्णायक साबित हुआ. लगभग दो दशक से महिलाओं को लेकर चल रही नीतियों का असर इस चुनाव में साफ तौर पर नजर आ गया. महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव की ‘माई बहन मान’ योजना भी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाई. महिलाएं पहले से चल रही योजनाओं पर भरोसा करती दिखीं और उन्होंने नीतीश सरकार को ही अपना मजबूत विकल्प माना.
रुझानों से यह साफ होता है कि महिलाओं से जुड़ी योजनाएँ जैसे साइकिल योजना, छात्राओं के लिए पोशाक राशि, आरक्षण, समूह से स्वावलंबन, आर्थिक सहायता और सुरक्षा से जुड़ी नीतियों ने निर्णायक प्रभाव डाला. महिलाओं ने इस चुनाव में सिर्फ मतदान में बढ़त नहीं बनाई, बल्कि पूरे चुनावी परिणाम का रुख तय कर दिया.










0 Comments