G News 24 : दिवाली पर करोड़ाें के नोट और गहनों से सजता है रतलाम का ये मंदिर !

 इस बार करीब एक हजार भक्तों ने रुपए और जेवर चढ़ाए हैं...

दिवाली पर करोड़ाें के नोट और गहनों से सजता है रतलाम का ये मंदिर !

रतलाम। सजावट शरद पूर्णिमा से शुरू होकर दीपोत्सव के पांच दिनों तक रहती है। इस वर्ष करीब एक हजार भक्तों ने रुपए और जेवर चढ़ाए हैं। मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी के आठ रूपों का आकर्षक शृंगार किया गया है, जिससे मंदिर परिसर कुबेर के खजाने जैसा दिख रहा है।

दुनिया भर में दीपोत्सव पर रुपयों और जेवरों से अपनी अनूठी सजावट के लिए मध्य प्रदेश के रतलाम शहर के माणकचौक क्षेत्र में स्थित श्री महालक्ष्मी जी का बड़ा मंदिर रुपयों और जेवरों से सज कर तैयार हो गया है। पूरे मंदिर में कितने रुपयों की सजावट की गई है, इसका अधिकृत आंकड़ा नहीं बताया गया है, लेकिन बताया जाता है कि करीब दो करोड़ रुपये के नोटों की लड़ियां, गुलदस्से बनाकर मंदिर के हर क्षेत्र को सजाया गया है। सजावट के बाद मंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पांच दिन मंदिर नोटों और जेवरों से सजा रहेगा। इसके बाद भक्तों को उनके रुपये और जेवर प्रसाद के रूप में लौटा दिए जाएंगे।

आमतौर पर मंदिरों को फूलों और आकर्षक विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, लेकिन रतलाम के माणकचौक क्षेत्र में स्थित प्राचीन श्री महालक्ष्मी जी का बड़ा मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसे दीपोत्सव पर करोड़ों रुपयों की सजावट से सजाया जाता है। नोट और जेवर किसी संस्था द्वारा नहीं दिए जाते हैं, बल्कि सैकड़ों भक्त सजावट के लिए अपने रुपये और जेवर मंदिर में देते हैं। दस रुपये से लेकर पांच रुपये तक के नोटों की गड्डियां भक्तों ने सजावट के लिए दी हैं। किसी ने 20 हजार तो किसी ने 50 तो किसी ने 50 हजार रुपये से ज्यादा तक दिए हैं। रुपयों का पूरा हिसाब रखा जा रहा है। 

भक्तों को टोकन के रूप में मिलती है रसीद ...

पिछले वर्ष तक भक्तों को रुपये जमा कराने पर रसीद दी जाती थी, लेकिन इस वर्ष से प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया गया है लैपटॉप पर ऑनलाइन एंट्री करने के साथ भक्तों को टोकन के रूप में रसीद भी जा रही हैं। साथ ही भक्तों का पासपोर्ट साइज का फोटो एक रजिस्टर में लगाने के साथ उनके आधार व मोबाइल फोन नम्बर भी दर्ज किए जा रहे है।  पिछले वर्ष मंदिर में करीब पौने दो करोड़ रुपयों के नोटऔर साढ़े तीन करोड़ से अधिक के जेवरों से सजावट की गई थी।

इस वर्ष अब तक करीब दो करोड़ जमा हुए...

बताया जाता है कि इस वर्ष अब तक करीब दो करोड़ रुपये भक्तगण जमा करा चुके हैं, जिनसे सजावट भी कर दी गई है। पांच दिन तक मंदिर सजा रहेगा। दीपावली पर्व के बाद भाई दूज के दिन प्रसादी के रूप में धन भक्तों को वापस लता दिए जाएंगे।

 शरद पूर्णिमा से शुरू की जाती है सजावट...

मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी की मूर्ति के साथ ही गणेश जी व सरस्वती मां की भी मूर्ति स्थापित है। लक्ष्मी की मूर्ति के हाथ में धन की थैली रखी है, जो वैभव का प्रतीक है। साथ मंदिर में महालक्ष्मी 8 रूप में विराजमान हैं। जिनमें अधी लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, लक्ष्मीनारायण, धन लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और ऐश्वर्य लक्ष्मी मां विराजमान हैं। नोटों से महालक्ष्मी मंदिर की सजावट शरद पूर्णिमा से शुरू कर दी जाती है। भक्त रुपये और जेवर देना शुरू कर देते हैं तथा बड़ी संख्या में भक्त दिन-रात नोटों की लड़ियां बनाने में लगे रहते हैं। 

गर्भगृह को खजाने के रूप में सजाया गया...

इस वर्ष करीब एक हजार भक्तों ने रुपये और जेवर जमा कराए हैं। महालक्ष्मीजी का आकर्षक शृंगार कर गर्भगृह को खजाने के रूप में सजाया गया है। जेवरों और रुपयों की सजावट से मंदिर परिसर कुबेर के खजाने के रूप में दिखाई दे रहा है। पहली बार दो मंदिरों में सजावट, पांच दिन सजा रहेगा मंदिर प्राचीन महालक्ष्मीजी का मंदिर पूरे साल में दीपोत्सव के दौरान पांच दिनों के लिए खास रूप में रुपयों व जेवरों से विशेष रूप से सजाया जाता है। इस कारण यह मंदिर रुपया बजेलो से सजाने का आयोजन करने वाला देश का एक मात्र मंदिर होकर देशभर में अपनी अलग पहचान रखता है। 

श्री महा लक्ष्मीनारायण मंदिर को भी नोटों से सजाया गया...

दीपावली के एक सप्ताह पहले से मंदिर में सजावट शुरू  कर दी जाती है। दीपोत्सव के पांच दिनों तक रुपयों व जेवरों से सजा यह मंदिर भक्तों के आकर्षण का केंद्र रहता है। दीपावली पर्व के  दौरान महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन और उनकी विशेष साज-सज्जा को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। मान्यता है कि जिस व्यक्ति का धन महालक्ष्मी के शृंगार में इस्तेमाल होता है, उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। पहली बार महालक्ष्मीजी का मंदिर के साथ शहर के कालिका माता क्षेत्र में स्थित में श्री महा लक्ष्मीनारायण मंदिर को भी नोटों से सजाया गया है। जाएगा। इश प्रकार नोटों से अभ शहर में सजावट करने वाले दो मंदिर हो गए है।   

अन्य शहरों व प्रदेशों के भक्तों ने भी जमा कराए रुपये...

महालक्ष्मीजी मंदिर लगभग तीन सौ वर्ष पुराना होकर रियासतकालीन है। रतलाम के महाराजा रतन सिंह राठौर ने जब रतलाम शहर बसाया, तब से यहां दीपावली धूमधाम से मनाई जाने लगी। बताया जाता है कि राजा वैभव, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली के लिए पांच दिन तक अपनी संपदा मंदिर में रखकर आराधना कराते थे। इसके लिए महाराजा शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी जी के शृंगार के लिए चढ़ाते थे, तभी से ये परंपरा चली आ रही है। समय के साथ कुछ वर्षों पहले  आयातथा पिछले कुछ वर्षों से मंदिर की सजावट नोट और जेवरों से जाने लगी। भक्तगण अपनी मर्जी से सजावट के लिए धन देते हैं। यह मंदिर सरकारी होकर कोर्ट ऑफ वार्डस में आता है। प्रशासन भी सजावट को लेकर पूरी निगरानी रखता है। माणकचौक थाना प्रभारी अनुराग यादव के अनुसार सुरक्षा के लिए मंदिर में सुरक्षा गार्ड तैनात किए गए तथा सीस टीवी कैमरों से निगरानी की जा रही है।  रतलाम के अलावा मंदसौर, नीमच, उज्जैन, झाबुआ सहित प्रदेश के अनेक जिलों के अलावा देश के विभिन्न राज्यों के भक्त भी यहां आते हैं।

अधिकारियों ने किया निरीक्षण ...

डीआइजी निमिष अग्रवाल व एसपी अमित कुमार ने माणकचौक पहुंचकर मंदिर व आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण किया। उन्होंने अधीनस्थ अधिकारियों से मंदिर में की गई सुरक्षा व्यस्थाओं व क्षेत्र की यातायात व्यवस्था के बारे में जानकारी लेकर व्यवस्थाएं देखी और आवश्यक निर्देश दिए। इस दौरान ट्राफिक डीएसपी आनंद सोनी, सीएसपी सत्येंद्र घनघोरिया व माणकचौक थाना प्रभारी अनुराग यादव उपस्थित थे।

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