सकारात्मक पत्रकारिता ही भविष्य की कुंजी...
मीडिया: समाज को जगाने वाली शक्ति या जलाने वाली आग !
मीडिया केवल सूचना पहुँचाने का साधन नहीं, बल्कि समाज की आत्मा को दिशा देने वाली एक सशक्त ताक़त है। आग की तरह—जो रौशनी भी देती है और विनाश भी करती है—मीडिया भी समाज को जगा सकता है और जला भी सकता है।
हाल ही में बांग्लादेश, नेपाल और फ्रांस की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मीडिया की विचारधारा यदि सकारात्मक हो तो वह समाज को एकजुट कर सकती है, और यदि भटक जाए तो वही समाज में विभाजन का कारण बन जाती है।
आज सबसे बड़ी आवश्यकता है कि मीडिया अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाए। खबरें केवल टीआरपी बढ़ाने का माध्यम न बनें; बल्कि समाज को शांति, एकता और विश्वास की दिशा में ले जाने का साधन बनें।
मीडिया की ज़िम्मेदारी सनसनी नहीं, संवेदना हो
मीडिया को यह समझना होगा कि उसकी भूमिका केवल रिपोर्टिंग तक सीमित नहीं है। वह समाज का दर्पण भी है और मार्गदर्शक भी। झूठी खबरें, अतिरंजना और भड़काऊ बहसें जनता के मन में नफ़रत का ज़हर घोलती हैं। वहीं सत्य पर आधारित, तथ्यपरक और संवेदनशील पत्रकारिता समाज में भरोसे के पुल खड़ी करती है।
आज समय आ गया है कि मीडिया स्वयं यह संकल्प ले -
"हम आग नहीं, उजाला बनेंगे। हम सनसनी नहीं, संवेदना दिखाएंगे। हम नफ़रत नहीं, नागरिकता का कर्तव्य निभाएंगे।"
सकारात्मक पत्रकारिता ही भविष्य की कुंजी
यदि मीडिया चाहे तो देश की नई पीढ़ी को जागरूक कर सकता है, धर्म और जाति की खाइयों को पाट सकता है, और समाज में भाईचारे की नई इबारत लिख सकता है।
जहाँ मीडिया ने सच दिखाया, वहाँ शांति आई;
जहाँ झूठ फैलाया, वहाँ आग भड़काई।
इसलिए यह आवश्यक है कि मीडिया स्वयं तय करे कि उसे इतिहास में किस रूप में याद किया जाए—आग लगाने वाली ताक़त के रूप में या उम्मीद जगाने वाली किरण के रूप में।
एक आह्वान : आज हम सबको मिलकर यह आवाज़ बुलंद करनी होगी -
- “मीडिया, तू सच का प्रहरी बन; समाज में शांति का सहरी बन!”
- “मीडिया! तू आग नहीं, उजाला बन — भारत का विश्वास, भरोसे का प्याला बन!”
मीडिया का कार्य समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। यदि यह भावना आत्मसात हो जाए तो मीडिया न केवल चौथा स्तंभ रहेगा बल्कि राष्ट्र निर्माण का सबसे मजबूत स्तंभ बन जाएगा।
जय हिन्द!
- दिव्या सिंह
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