G News 24 : “रसिया से तेल आया, पर जनता को इथेनॉल पिलाया!” !

"जब देश का तेल टैंक भरा है, तो आम आदमी की जेब क्यों खाली की जा रही है?"

“रसिया से तेल आया, पर जनता को इथेनॉल पिलाया!” !

भारत आज दुनिया का बड़ा ऊर्जा बाज़ार है। रसिया से कच्चा तेल भरपूर मात्रा में आ रहा है। इतना कि हमारे रिफाइनरी टैंक ओवरफ्लो हो रहे हैं और हम दूसरे देशों को रिफाइन कर बेच भी रहे हैं। तो फिर भारत की जनता को यह एथेनॉल मिलकर क्यों बेचा जा रहा है ? इसके पीछे सरकार की मंशा पर सवाल उठाना लाजमी है ! क्योंकि सरकार का यह कदम ‘हरित क्रांति’ को बढ़ावा देने के लिए तो बिल्कुल नहीं हो सकता ! या तो साफ-साफ दिखाई देता है कि यह तो सीधा-सीधा मुनाफे का खेल है! और मुनाफा भी किस पहुंचा जा रहा है जो अपने आप को देश का सबसे ईमानदार नेता होने का दंभ भरते हैं उस नेता के पुत्रों को ! इथेनॉल के नाम पर असली खेल तो यही नेता पुत्र कर रहे हैं जिनकी इथेनॉल कंपनियां का मुनाफा दिन दूनी रात चौगुनी गति से करोड़ों करोड़ों में पहुंच गया है।

जनता के सवाल-

  • "जब देश का तेल टैंक भरा है, तो आम आदमी की जेब क्यों खाली की जा रही है?"
  • जब देश में पेट्रोल की कोई कमी नहीं, तो आम भारतीय उपभोक्ता को मजबूरी में इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल क्यों बेचा जा रहा है?
  • क्या यह “हरित ऊर्जा” की आड़ में जनता की जेब सीधा-सीधा डांका नहीं डाला जा रहा है ?
  • क्या यह वाहन निर्माताओं और तेल कंपनियों के बीच की लॉबी का खेल नहीं?
  • जब तेल सस्ता और भरपूर उपलब्ध है, तो इथेनॉल मिलाना अनिवार्य क्यों?
  • क्या गाड़ियों के इंजनों को लंबे समय में नुकसान पहुंचाने की जिम्मेदारी कोई लेगा?
  • क्या उपभोक्ता को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह चाहे तो शुद्ध पेट्रोल खरीदे?

इथेनॉल के समर्थन में सरकार में ये गुट्टी पिला रही है कि ... इथेनॉल से प्रदूषण घटेगा।

जनता कहती है – जेब घट रही है,माइलेज घट रहा है, वाहनों की सेहत खराब हो रही है,इंजन का दम भी घुट रहा है! 

पेट्रोल में इथेनॉल की मिलावट को उपभोक्ता की सहमति के बिना थोपना, लोकतंत्र में आर्थिक तानाशाही से कम नहीं। अगर सचमुच ग्रीन एनर्जी ही लक्ष्य है तो विकल्प खुले हों, मजबूरी नहीं। जनता को चुनने का हक चाहिए – शुद्ध पेट्रोल या मिश्रित पेट्रोल।

यह सवाल सिर्फ वाहन चालकों का नहीं, बल्कि उपभोक्ता अधिकार और पारदर्शिता का है। और जब देश रसिया से तेल के भंडार में डूबा हुआ है, तब “इथेनॉल का घूंट” जनता की गाड़ी ही नहीं, उसके विश्वास की रफ़्तार भी धीमी कर रहा है।

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