"नेताओं को लोकतंत्र का आईना दिखाना चाहिए, दंगों का पोस्टर नहीं!"
जलते नेपाल की आग में अपनी घटिया सियासत के सहारे,सत्ता के अवसर खोजता भारत का विपक्ष !
जलते नेपाल और भागते-पिटते नेताओं के फोटो भारत के प्रधानमंत्री,वित्त मंत्री और गृहमंत्री को भारत के विपक्षी नेताओं द्वारा कटाक्ष करते हुए टैग करने के पीछे कहीं विपक्ष की मनसा, देश के युवाओं को भड़काने का प्रयास और देश में शासन कर रही सरकार को डरा-धमकाकर उसे ब्लैकमेल करने का प्रयास तो नहीं है !
काठमांडू से दिल्ली तक उठी आग की लपटों को, भारत की राजनीति में घी डालने का साधन बना लेना, क्या यही जिम्मेदारी है विपक्ष की? नेपाल की सड़कों पर भड़की हिंसा और नेताओं के भागते-पिटते दृश्य, वहां के राजनीतिक असंतोष का नतीजा हैं।
परंतु भारत के विपक्षी दलों ने इन तस्वीरों को अपने देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और वित्त मंत्री को टैग कर जिस कटाक्षपूर्ण अंदाज़ में प्रचारित किया है, वह केवल एक सस्ती राजनीति और खतरनाक मानसिकता का परिचायक है।
नेपाल की राजनीति और भारत की स्थिरता की तुलना करना ही हास्यास्पद है। पर उससे भी ज्यादा शर्मनाक है, यह संकेत देना कि यदि सरकार विपक्ष की बात नहीं मानेगी, तो भारत भी ऐसी स्थिति में धकेला जा सकता है।
देश के विपक्ष को यह समझना होगा कि जनता उसे एक विकल्प के रूप में देखना चाहती है, न कि ब्लैकमेलर और आग लगाने वाले गिरोह के रूप में। नेपाल के दंगों का मज़ाक बना कर, अपने ही प्रधानमंत्री और मंत्रियों को चिढ़ाने का यह कृत्य विपक्ष को और ज्यादा जनता से दूर कर देगा !
X पर ट्यूट करने या डिवेट में बैठकर झूठी बयानबाजी करने वाले इन विपक्षी नेताओं को ये भी समझ लेना चाहिए कि उनका ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है। ये भारत का युवा है, ये पड़ा-लिखा एवं समझदार है। अपने निर्णय खुद लेता है किसी के बहकावे में नहीं आता है। इसलिए इन विपक्षियों को सतर्क रहना चाहिए कहीं ये युवा इन्हें ना दौड़ा दें...
विपक्ष की ये हरकत उसे एक्सपोज करती है ! और जनता भी जानना चाहती है कि ...
- क्या भारतीय लोकतंत्र को अस्थिर करने का नया हथकंडा?
- विपक्ष का असली मकसद क्या है ? क्या यह कदम युवाओं को भड़काने का एक सुनियोजित प्रयास नहीं है?
- क्या यह सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर उसे झुकाने की कोशिश नहीं है?
- क्या यह तरीका लोकतंत्र को मजबूत करेगा या आग में घी डालने का काम करेगा?
भारतीय लोकतंत्र बहस और असहमति पर टिका है, लेकिन असहमति को अराजकता की राह दिखाना, उसे हिंसक दृश्यों से जोड़ना, विपक्ष के चरित्र का सबसे कुरूप चेहरा है। यह केवल सरकार नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र का अपमान है। विपक्ष को इस शर्मनाक हरकत के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।










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