ट्रंप को पीछे करअब बैटिंग करने उतरे अमेरिकी वित्तमंत्री...
SCO समिट में PM मोदी का जलवा देखकर बैकफुट पर US
चीन के तियानजिन शहर में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के एक सीन ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में खलबली मचा दी है. अमेरिका की ओर से अब उनके वित्तमंत्री का एक संतुलित और आशावादी बयान सामने आया है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार (2 सितंबर) को भरोसा जताया कि ये दोनों 'महान देश' अंततः मतभेदों को पीछे छोड़कर समाधान की ओर बढ़ेंगे.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा SCO समिट का वो वीडियो जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मजबूत केमिस्ट्री दिखाई दे रही है इस मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक रवैये ने जहां भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाई दी, वहीं अमेरिका की बेचैनी भी साफ तौर पर सामने आ गई. SCO समिट में पीएम मोदी का ऐसा जलवा देखकर अमेरिका बैकफुट पर जाता हुआ दिखाई देने लगा. अमेरिकी वित्तमंत्री ने फॉक्स टीवी को दिए गए इंटरव्यू में साफ तौर पर कहा कि भारत चीन और रूस की तुलना में अमेरिका के ज्यादा करीब है और मुझे ऐसा लगता है कि हम अंत में एक साथ आ जाएंगे.
भारत और अमेरिका के बीच हालिया व्यापारिक तनाव के बीच अमेरिका की ओर से अब उनके वित्तमंत्री का एक संतुलित और आशावादी बयान सामने आया है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार (2 सितंबर) को भरोसा जताया कि ये दोनों 'महान देश' अंततः मतभेदों को पीछे छोड़कर समाधान की ओर बढ़ेंगे. बेसेंट का यह बयान ऐसे समय आया है जब ट्रंप प्रशासन भारत को लेकर कई बार कठोर और तीखी भाषा का इस्तेमाल कर चुका है. खासतौर पर रूसी तेल की खरीद को लेकर और टैरिफ नीतियों और व्यापार संतुलन को लेकर. इनके बावजूद जब भारत नहीं झुका और एससीओ समिट में पीएम मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की केमेस्ट्री देख अमेरिका के सुर बदल गए हैं.
SCO में पीएम मोदी का जलवा देख बदले अमेरिका के सुर
अब अमेरिकी वित्तमंत्री ने दोनों देशों के बीच सकारात्मक पहल की संभावना जताते हुए कहा, 'यह रिश्ता बहुत जटिल है लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे रिश्ते हैं. और यह मामला सिर्फ रूसी तेल का नहीं है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था. मुझे पूरा विश्वास है कि अंत में हम एक साथ आएंगे.' अमेरिकी वित्तमंत्री का यह बयान अमेरिका की ओर से तनाव कम करने का एक संकेत हो सकता है, जिससे दोनों देश आगामी महीनों में नई व्यापारिक वार्ताओं और रणनीतिक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ सकें.
भारत से सालों का रिश्ता बर्बाद कर डाला...ट्रंप पर भड़के पूर्व सलाहकार जॉन बोल्टन
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हाल ही में तियानजिन, चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हुई मुलाकातें वैश्विक मंच पर काफी चर्चित रहीं लेकिन अमेरिका ने इस मंच और इसके प्रभाव को हल्के में लेते हुए कहा कि एससीओ समिट एक दिखावा था. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा, "यह एक पुराना सम्मेलन है, जिसे शंघाई सहयोग संगठन कहा जाता है, और मुझे लगता है कि यह काफी हद तक दिखावटी है."
भारत अमेरिका के ज्यादा करीबः स्कॉट बेसेंट
बेसेंट ने यह भी रेखांकित किया कि भले ही भारत इस तरह के मंचों पर रूस और चीन के नेताओं से संवाद करता हो, लेकिन मूल्य आधारित साझेदारी के मामले में भारत की सोच अमेरिका के ज्यादा करीब है. "मेरे ख्याल से, अंततः भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। उनके मूल्य रूस-चीन की तुलना में हमारे ज्यादा करीब हैं।" यह बयान इस बात का संकेत है कि अमेरिका अभी भी भारत को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है, और भले ही भारत अपनी मल्टीपोलर डिप्लोमेसी के तहत रूस और चीन से भी संबंध बनाए रखता हो लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों और वैश्विक दृष्टिकोण के मामले में वह वाशिंगटन के नजदीक बना हुआ है.
भारत को चीन और रूस की बजाए अमेरिका के साथ रहना चाहिएः पीटर नवारो
इसके पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापारिक सलाहकार पीटर नवारो ने भी एससीओ समिट में पीएम मोदी की पुतिन और शी जिनपिंग से हुई मुलाकातों को शर्मनाक तक कह डाला था. उन्होंने ये भी कहा कि भारत को चीन और रूस के साथ रहने की बजाए हमारे साथ रहना चाहिए. पीटर नवारो की यह प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि वॉशिंगटन नई दिल्ली की स्वतंत्र विदेश नीति और बहुपक्षीय कूटनीतिक संतुलन को लेकर असहज महसूस कर रहा है. भारत जो एक ओर अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर रहा है वहीं दूसरी ओर रूस और चीन जैसे वैश्विक शक्तियों के साथ भी अपने पारंपरिक और क्षेत्रीय हितों को साधने की रणनीति पर चल रहा है.
भारत की 'मल्टीपोलर डिप्लोमेसी' उसकी स्वतंत्र विदेशनीति की पहचान
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की यह 'मल्टीपोलर डिप्लोमेसी' नीति उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की पहचान है जिससे वह अमेरिका-रूस या अमेरिका-चीन ध्रुवों में से किसी एक में बंधने से इनकार करता है. SCO जैसे मंचों पर भारत की सक्रियता और उसके राष्ट्राध्यक्षों के साथ मोदी की गर्मजोशी भरी मुलाकातें भारत की इसी नीति का हिस्सा हैं. नवारो की तीखी टिप्पणी केवल असंतोष नहीं, बल्कि इस बात की भी पुष्टि है कि भारत अब वैश्विक राजनीति में एक स्वायत्त और निर्णायक शक्ति के रूप में उभर चुका है जो ना दबाव में आता है और न ही किसी के दिशा निर्देशों से चलता है.
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