G News 24 : हमारी ये 101 बातें आपको आपका गुजरा हुआ जमाना याद ना दिला दें तो कहना ...

1960 से 1980 के बीच जन्मे लोगों को अत्तीत की सैर कराने वाला खास लेख ! 

 हमारी ये 101 बातें आपको आपका गुजरा हुआ जमाना याद ना दिला दें तो कहना ...

1960 से 1980 के बीच जन्मी इस पीढ़ी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसने ज़िंदगी में बहुत बड़े बदलाव देखे और उन्हें आत्मसात भी किया, अब 45 पार करके 65- 70 की ओर बढ़ रही है। 1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे देखने वाली यह पीढ़ी बिना झिझक मेहमानों से पैसे ले लिया करती थी। स्याही–कलम/पेंसिल/पेन से शुरुआत कर आज यह पीढ़ी स्मार्टफोन, लैपटॉप, पीसी को बखूबी चला रही है। जिसके बचपन में साइकिल भी एक विलासिता थी, वही पीढ़ी आज बखूबी स्कूटर और कार चलाती है। कभी चंचल तो कभी गंभीर… बहुत सहा और भोगा लेकिन संस्कारों में पली–बढ़ी यह पीढ़ी।

  1. टेप रिकॉर्डर, पॉकेट ट्रांजिस्टर – कभी बड़ी कमाई का प्रतीक थे।
  2. मार्कशीट और टीवी के आने से जिनका बचपन बरबाद नहीं हुआ, वही आखिरी पीढ़ी है।
  3. कुकर की रिंग्स, टायर लेकर बचपन में “गाड़ी–गाड़ी खेलना” इन्हें कभी छोटा नहीं लगता था।
  4. “सलाई को ज़मीन में गाड़ते जाना” – यह भी खेल था, और मज़ेदार भी।
  5. “कैरी (कच्चे आम) तोड़ना” इनके लिए चोरी नहीं था।
  6. किसी भी वक्त किसी के भी घर की कुंडी खटखटाना गलत नहीं माना जाता था।
  7. “दोस्त की माँ ने खाना खिला दिया” – इसमें कोई उपकार का भाव नहीं, और
  8. “उसके पिताजी ने डांटा” – इसमें कोई ईर्ष्या भी नहीं… यही आखिरी पीढ़ी थी।
  9. कक्षा में या स्कूल में अपनी बहन से भी मज़ाक में उल्टा–सीधा बोल देने वाली पीढ़ी।
  10. दो दिन अगर कोई दोस्त स्कूल न आया तो स्कूल छूटते ही बस्ता लेकर उसके घर पहुँच जाने वाली पीढ़ी।
  11. किसी भी दोस्त के पिताजी स्कूल में आ जाएँ तो –
  12. मित्र कहीं भी खेल रहा हो, दौड़ते हुए जाकर खबर देना:
  13. “तेरे पापा आ गए हैं, चल जल्दी” – यही उस समय की ब्रेकिंग न्यूज़ थी।
  14. लेकिन मोहल्ले में किसी भी घर में कोई कार्यक्रम हो तो बिना संकोच, बिना विधिनिषेध काम करने वाली पीढ़ी।
  15. कपिल, सुनील गावस्कर, वेंकट, प्रसन्ना की गेंदबाज़ी देखी,
  16. पीट सम्प्रस, भूपति, स्टेफी ग्राफ, अगासी का टेनिस देखा,
  17. राज, दिलीप, धर्मेंद्र, जितेंद्र, अमिताभ, राजेश खन्ना, आमिर, सलमान, शाहरुख, माधुरी – इन सब पर फिदा रहने वाली यही पीढ़ी।
  18. पैसे मिलाकर भाड़े पर VCR लाकर 4–5 फिल्में एक साथ देखने वाली पीढ़ी।
  19. लक्ष्या–अशोक के विनोद पर खिलखिलाकर हँसने वाली,
  20. नाना, ओम पुरी, शबाना, स्मिता पाटिल, गोविंदा, जग्गू दादा, सोनाली जैसे कलाकारों को देखने वाली पीढ़ी।
  21. “शिक्षक से पिटना” – इसमें कोई बुराई नहीं थी, बस डर यह रहता था कि घरवालों को न पता चले, वरना वहाँ भी पिटाई होगी।
  22. कॉलेज में छुट्टी हो तो यादों में सपने बुनने वाली पीढ़ी…
  23. न मोबाइल, न SMS, न व्हाट्सऐप…
  24. सिर्फ मिलने की आतुर प्रतीक्षा करने वाली पीढ़ी।
  25. पंकज उधास की ग़ज़ल “तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया” सुनकर आँखें पोंछने वाली।
  26. दीवाली की पाँच दिन की कहानी जानने वाली।
  27. लिव–इन तो छोड़िए, लव मैरिज भी बहुत बड़ा “डेरिंग” समझने वाली।
  28. स्कूल–कॉलेज में लड़कियों से बात करने वाले लड़के भी एडवांस कहलाते थे।
  29. फिर से आँखें मूँदें तो…
  30. वो दस, बीस… अस्सी, नब्बे… वही सुनहरी यादें।
  31. गुज़रे दिन तो नहीं आते, लेकिन यादें हमेशा साथ रहती हैं।
  32. और यह समझने वाली समझदार पीढ़ी थी कि –
  33. आज के दिन भी कल की सुनहरी यादें बनेंगे।
  34. हमारा भी एक ज़माना था…
  35. तब बालवाड़ी (प्ले स्कूल) जैसा कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं था।
  36. 6–7 साल पूरे होने के बाद ही सीधे स्कूल भेजा जाता था।
  37. अगर स्कूल न भी जाएँ तो किसी को फर्क नहीं पड़ता।
  38. न साइकिल से, न बस से भेजने का रिवाज़ था।
  39. बच्चे अकेले स्कूल जाएँ, कुछ अनहोनी होगी –
  40. ऐसा डर माता–पिता को कभी नहीं हुआ।
  41. पास/फेल यही सब चलता था।
  42. प्रतिशत (%) से हमारा कोई वास्ता नहीं था।
  43. ट्यूशन लगाना शर्मनाक माना जाता था।
  44. क्योंकि यह “ढीठ” कहलाता था।
  45. किताब में पत्तियाँ और मोरपंख रखकर पढ़ाई में तेज हो जाएँगे –
  46. यह हमारा दृढ़ विश्वास था।
  47. कपड़े की थैली में किताबें रखना,
  48. बाद में टिन के बक्से में किताबें सजाना –
  49. यह हमारा क्रिएटिव स्किल था।
  50. हर साल नई कक्षा के लिए किताब–कॉपी पर कवर चढ़ाना –
  51. यह तो मानो वार्षिक उत्सव होता था।
  52. साल के अंत में पुरानी किताबें बेचना और नई खरीदना –
  53. हमें इसमें कभी शर्म नहीं आई।
  54. 1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे देखने वाली यह पीढ़ी बिना झिझक मेहमानों से पैसे ले लिया करती थी
  55. दोस्त की साइकिल के डंडे पर एक बैठता, कैरियर पर दूसरा –
  56. और सड़क–सड़क घूमना… यही हमारी मस्ती थी।
  57. स्कूल में सर से पिटाई खाना,
  58. पैरों के अंगूठे पकड़कर खड़ा होना,
  59. कान मरोड़कर लाल कर देना –
  60. फिर भी हमारा “ईगो” आड़े नहीं आता था।
  61. असल में हमें “ईगो” का मतलब ही नहीं पता था।
  62. मार खाना तो रोज़मर्रा का हिस्सा था।
  63. मारने वाला और खाने वाला – दोनों ही खुश रहते थे।
  64. खाने वाला इसलिए कि “चलो, आज कल से कम पड़ा।”
  65. मारने वाला इसलिए कि “आज फिर मौका मिला।”
  66. नंगे पाँव, लकड़ी की बैट और किसी भी बॉल से
  67. गली–गली क्रिकेट खेलना – वही असली सुख था।
  68. हमने कभी पॉकेट मनी नहीं माँगा,
  69. और न माता–पिता ने दिया।
  70. हमारी ज़रूरतें बहुत छोटी थीं,
  71. जो परिवार पूरा कर देता था।
  72. छह महीने में एक बार मुरमुरे या फरसाण मिल जाए –
  73. तो हम बेहद खुश हो जाते थे।
  74. दिवाली में लवंगी फुलझड़ी की लड़ी खोलकर
  75. एक–एक पटाखा फोड़ना – हमें बिल्कुल भी छोटा नहीं लगता था।
  76. कोई और पटाखे फोड़ रहा हो तो उसके पीछे–पीछे भागना –
  77. यही हमारी मौज थी।
  78. हमने कभी अपने माता–पिता से यह नहीं कहा कि
  79. “हम आपसे बहुत प्यार करते हैं” –
  80. क्योंकि हमें “I Love You” कहना आता ही नहीं था।
  81. आज हम जीवन में संघर्ष करते हुए
  82. दुनिया का हिस्सा बने हैं।
  83. कुछ ने वह पाया जो चाहा था,
  84. कुछ अब भी सोचते हैं – “क्या पता…”
  85. स्कूल के बाहर हाफ पैंट वाले गोलियों के ठेले पर
  86. दोस्तों की मेहरबानी से जो मिलता –
  87. वो कहाँ चला गया?
  88. हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें,
  89. लेकिन सच यह है कि –
  90. हमने हकीकत में जीया और हकीकत में बड़े हुए।
  91. कपड़ों में सिलवटें न आएँ,
  92. रिश्तों में औपचारिकता रहे –
  93. यह हमें कभी नहीं आया।
  94. रोटी–सब्ज़ी के बिना डिब्बा हो सकता है –
  95. यह हमें मालूम ही नहीं था।
  96. हमने कभी अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया।
  97. आज भी हम सपनों में जीते हैं,
  98. शायद वही सपने हमें जीने की ताक़त देते हैं।
  99. हमारा जीवन वर्तमान से कभी तुलना नहीं कर सकता।
  100.  जिसके बचपन में साइकिल भी एक विलासिता थी, वही पीढ़ी आज बखूबी स्कूटर और कार चलाती है
  101. कहीं रिटायर्ड शिक्षक दिख जाएँ तो निसंकोच झुककर प्रणाम करने वाली पीढ़ी।

शिक्षक पर आवाज़ ऊँची न करने वाली पीढ़ी-

चाहे जितना भी पिटाई हुई हो, दशहरे पर उन्हें सोना अर्पण करने वाली और आज भी कहीं रिटायर्ड शिक्षक दिख जाएँ तो निसंकोच झुककर प्रणाम करने वाली पीढ़ी।

हम अच्छे हों या बुरे, लेकिन हमारा भी एक “ज़माना” था…! कमेंट्स के द्वारा अपने विचार एवं अनुभव जो ये दौर देख चुके हैं हमें जरूर बताएं...इंतजार रहेगा !

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