G NEWS 24 : यह लड़ाई मेरे लिए केवल अदालत की नहीं, बल्कि जीवन और सम्मान की भी थी : अमित त्रिपाठी

10 साल की कानूनी जंग के बाद मिली जीत...

यह लड़ाई मेरे लिए केवल अदालत की नहीं, बल्कि जीवन और सम्मान की भी थी : अमित त्रिपाठी

ग्वालियर। कहते हैं न्याय होना नहीं चाहिए बल्कि होते हुए देखना चाहिए लेकिन एक परिवार ने न्याय पाने के लिए 10 साल की कठोर लड़ाई लड़ी और पुलिस विभाग (फॉरेंसिक डिपार्टमेंट) में ही पदस्थ एक दबंग अधिकारी की मनमानी और प्रताड़ना के कारण पूरे परिवार ने अपने आत्मसम्मान को बरकरार रखने के लिए खून-पसीने की कमाई,इज़्ज़त और करियर सब कुछ दाँव पर लगा दिया। उक्त अधिकारी ने सभी नियमों को ताक पर रखकर अपनी पावर का भरपूर इस्तेमाल किया और गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन कहते हैं सच सामने आता ही है बस सही समय की दरकार रहती है। 

उक्त हाईप्रोफ़ाइल मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले का है। पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता श्याम शर्मा ने बताया कि पुलिस द्वारा दर्ज किए गए फ़र्ज़ी मामले में ग्वालियर के कुंदन नगर निवासी अमित त्रिपाठी और उनके परिवार को आखिरकार न्याय की लंबी लड़ाई में बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने अंकिता मिश्रा (अंकिता भार्गव) द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए बरी करने के आदेश को बरकरार रखा है। उन्होंने कहा कि इससे पहले 5 फरवरी 2025 को सेशन कोर्ट ने करीब छह साल चले मुकदमे के बाद अमित त्रिपाठी, उनके परिजनों और अन्य आरोपितों को धारा 385 और 120-बी आईपीसी के सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

अमित त्रिपाठी और अंकिता भार्गव ने वर्ष 2012 में आर्य समाज मंदिर, किला गेट, लोहामंडी ग्वालियर में शादी की थी। लेकिन अंकिता के पिता अखिलेश भार्गव (फॉरेंसिक विशेषज्ञ) ने इस विवाह को मानने से इंकार कर दिया और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। अंकिता और उनके पिता ने अमित और परिवार पर विवाह के फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने और 20 लाख रुपये की मांग करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें कई गंभीर धाराएँ जैसे 420, 467, 468, 471, 384 और 120-बी शामिल थीं। 

बाद में जांच के दौरान पुलिस ने कई धाराएँ हटाकर केवल 384 और 120-बी के तहत चालान पेश किया। इसी बीच अंकिता ने बिना तलाक लिए ही मध्यप्रदेश पुलिस के उपनिरीक्षक धीरेंद्र मिश्रा (वर्तमान में दतिया कोतवाली में निरीक्षक के पद पर पदस्थ) से दूसरी शादी कर ली। अदालत ने इस पर अंकिता और उनके पिता के खिलाफ धारा 494 और 494/109 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया था जो कि वर्तमान में माननीय न्यायालय में लंबित है। अंकिता ने सेशन कोर्ट के 5 फरवरी 2025 के फैसले को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की थी। 

लेकिन ADJ कोर्ट ने 13 अगस्त 2025 को सुनवाई पूरी कर अपील को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से साक्ष्यों का मूल्यांकन करते हुए अमित त्रिपाठी और उनके परिवार को आरोपों से मुक्त किया था। कोर्ट ने यह भी माना कि अमित और अंकिता की शादी आर्य समाज से हुई थी और इसके प्रमाणिक दस्तावेज पेश किए गए थे। इस प्रकार, अंकिता की यह दलील भी खारिज हो गई कि विवाह ही नहीं हुआ था। न्यायालय ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि पीडित पक्ष के कथनों की स्थिति में विरोधाभास है एवं उनके द्वारा दर्शायी गई अन्य स्थितियां साक्ष्य से समर्थित नहीं होती हैं। विचारण न्यायालय द्वारा उक्त समस्त स्थितियों के संबंध में अपने निर्णय में उचित रूप से विवेचना की है। 

विचारण न्यायालय ने अपने निर्णय में अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर आरोपितों को दोषमुक्त किए जाने के संबंध में जो निष्कर्ष दिए है, एवं प्रस्तुत आवेदन निरस्त किये हैं, वह विधि के सुस्थापित सिद्धातों एवं साक्ष्य के उचित विवेचन पर आधारित होने से उनमें हस्तक्षेप किए जाने का कोई आधार नहीं हैं। फैसले के बाद अमित त्रिपाठी ने कहा, “यह लड़ाई मेरे लिए केवल अदालत की नहीं, बल्कि जीवन और सम्मान की भी थी। झूठे मुकदमों ने मेरा करियर और मानसिक शांति छीन ली, लेकिन आज मुझे और मेरे परिवार को न्याय मिला है। मैं चाहता हूँ कि न्याय प्रणाली में ऐसे मामलों के लिए त्वरित प्रक्रिया हो, ताकि कोई और व्यक्ति इतने वर्षों तक झूठे मामलों में न फंसे।”

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