G News 24 : "कानून का तराजू जनता के लिए बोझ जैसा और नेताओं के लिए खिलौना?"

आम जन के लिए कानून काडंडा लोहे का कठोर और भारी,धनाढ्य के लिए डंडा रुई जैसा नर्म और लचीला... 

"कानून का तराजू जनता के लिए बोझ जैसा और नेताओं के लिए खिलौना?"

ऐसा महसूस होता है कि देश में साधारण आदमी के लिए अलग,नेताओं एवं  धनाढ्य वर्ग के लिए अलग कानूनी व्यवस्था चल रही है ? "हमारे यहां कानून अंधा नहीं है... बस आंख मारना जानता है—और वो भी सिर्फ ताकतवरों को!"

देश में कानून का अर्थ किताबों और भाषणों में तो ‘समानता’ है, लेकिन सड़कों और अदालतों की हकीकत में यह ‘वर्ग विशेष की सुविधा’ बन चुका है। आम आदमी के लिए कानून का डंडा लोहे का है कड़ा, भारी और तुरंत गिरने वाला। लेकिन नेताओं, उद्योगपतियों और धनाढ्य वर्ग के लिए यही डंडा रुई का बन जाता है नर्म, लचीला और समय के साथ खोखला।

एक साधारण नागरिक अगर किसी मामूली अपराध में फंस जाए तो पुलिस से लेकर अदालत तक उसकी जिंदगी सालों की दौड़-धूप और कर्ज में डूब जाती है। ज़मानत मिलना मुश्किल, तारीख़ें अनगिनत, और केस की फाइल पर धूल की परतें चढ़ जाती हैं। वहीं, बड़े नेता और रईस अपराध के गंभीर आरोपों के बावजूद पांच-सितारा अस्पतालों में ‘बीमारी’ का हवाला देकर आराम फरमाते हैं, और अदालत में ‘माननीय’ कहलाते हुए तारीख पर तारीख भी अपनी सुविधा से लेते हैं।

यह दोहरी व्यवस्था केवल न्याय को नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र को खोखला कर रही है। जनता का भरोसा टूट रहा है, क्योंकि जब न्याय की डगर पर पैसे और रसूख का ताला लग जाए, तो संविधान की शपथ महज़ औपचारिकता बनकर रह जाती है।

अगर सच में ‘सबके लिए समान कानून’ का सपना देखना है, तो सबसे पहले कानून के तराजू से विशेषाधिकार का वजन हटाना होगा। अदालत के दरवाज़े गरीब और अमीर दोनों के लिए एक समान खुलें, और गुनाह चाहे सत्ता में बैठे व्यक्ति का हो या सड़क पर चलते आम आदमी का सज़ा एक जैसी और समय पर हो।

वरना, जनता यह मानने लगेगी कि हमारे यहां कानून सिर्फ किताबों में है, असल में यह ताकतवरों की जेब में रखा एक खिलौना है।


Reactions

Post a Comment

0 Comments