G News 24 : "लोकतंत्र का गला दबाना बंद करे परिवार, झूठ की आड़ में वोटरअधिकार यात्रा"

 “झूठ के सौ सौ पैरोकार खड़े हो जाते हैं,लेकिन सच अकेला रहकर भी कभी हारता नहीं।”

"लोकतंत्र का गला दबाना बंद करे परिवार, झूठ की आड़ में वोटरअधिकार यात्रा"

“अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ भी झूठ फैलाकर समाज को गुमराह करना वर्तमान विपक्ष की आदत बन गई है। समाज को इससे सजग रहने की जरूरत है। अभिव्यक्ति की आज़ादी अपने विचार व्यक्त करने का माध्यम है, न कि झूठ और भ्रम फैलाने का हथियार। लोकतंत्र को बचाने के लिए झूठ की आज़ादी पर लगाम ज़रूरी है।”

आज का सबसे बड़ा खतरा यह है कि कुछ लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी को झूठ की आज़ादी समझ बैठे हैं। चुनावी मंचों से लेकर सोशल मीडिया तक झूठ, फरेब और अफवाहों का बाजार गर्म है। और जब इन पर सवाल उठते हैं तो वही लोग “आज़ादी पर हमला” का शोर मचाने लगते हैं।

देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ कहा जाता है। लेकिन जब यही आज़ादी झूठ फैलाने, अफवाहें उड़ाने और समाज को बांटने का हथियार बन जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है—क्या इसे वास्तव में आज़ादी कहा जाए?

आज हालात यह हैं कि कुछ लोगों के लिए झूठ बोलना ही राजनीति का औजार बन गया है। सोशल मीडिया से लेकर चुनावी मंच तक, तथ्य और सत्य को तिलांजलि देकर केवल प्रचार और भ्रम का जाल बुना जा रहा है। मज़ेदार बात यह है कि जब इस पर सवाल उठाए जाते हैं, तो वही लोग “अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला” का राग अलापने लगते हैं।

लेकिन क्या लोकतंत्र में यह अधिकार है कि कोई अपने फायदे के लिए सच्चाई की धज्जियां उड़ाए? क्या यह आज़ादी है कि किसी धर्म, जाति या समाज को झूठे आरोपों से बदनाम किया जाए? या यह आज़ादी है कि विपक्ष या सत्ता के लिए गढ़े गए फरेब को जनता पर थोप दिया जाए? सच यह है कि झूठ की आड़ में फैलाई गई तथाकथित "आज़ादी" लोकतंत्र को खोखला करती है और समाज में अविश्वास का ज़हर घोलती है।

सच्ची अभिव्यक्ति की आज़ादी वही है जो समाज को जागरूक करे, व्यवस्था को पारदर्शी बनाए और नागरिकों को सत्य से परिचित कराए। लेकिन यदि यह आज़ादी सिर्फ़ निजी स्वार्थ साधने और लोगों को गुमराह करने का जरिया बन जाए तो उस पर अंकुश लगाना लोकतंत्र की रक्षा के लिए ज़रूरी है।

भारत को झूठ की आज़ादी नहीं, बल्कि सच्चाई की सुरक्षा चाहिए। यह सरकार, मीडिया और समाज—तीनों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि अभिव्यक्ति का हथियार, सत्य की रक्षा में इस्तेमाल हो, न कि झूठ की ढाल बनकर।

सवाल है...

  1. क्या लोकतंत्र में यह अधिकार है कि कोई अपने फायदे के लिए समाज को झूठे आरोपों और अफवाहों से गुमराह करे? क्या यह आज़ादी है कि एक वर्ग को दूसरे के खिलाफ भड़काया जाए ?
  2. सच्चाई यह है कि झूठ की आड़ में चल रही आज़ादी लोकतंत्र के लिए जहर है ?
  3. भारत को आज झूठ की आज़ादी नहीं, बल्कि सच्चाई की सुरक्षा चाहिए।
  4. क्या झूठ बोलकर राजनीति करना, लोकतंत्र का अपमान नहीं है ?
  5. क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम पर समाज को गुमराह करना ठीक है ?
  6. क्या लोकतंत्र की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम पर झूठ परोसने वालों पर अंकुश लगाना नहीं चाहिए ?
  7. क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी नाम पर बोला जाने वाला झूठ लोकतंत्र का गला नहीं घोंट रहा है ?

ये सब होने के बाद भी “ भले ही झूठ के सौ सौ पैरोकार खड़े हों लेकिन,सच—अकेला खड़ा रहकर भी कभी नहीं हारा है और न हारेगा !”

Reactions

Post a Comment

0 Comments