जिन्हें अभी भी लगता है राज्यसभा के पूर्व सभापति की कोई गलती नहीं है,उसका जबाव हैं …
वे तीन कारण जिनकी वजह से चली गई राज्य सभा के सभापति धनखड़ जी की कुर्सी !
देश में लोगों को अभी भी लगता है राज्यसभा के पूर्व सभापति की कोई गलती नहीं है… और लोग जानबूझकर उनकी आलोचना कर रहे हैं, या बीजेपी ने उनके साथ खेला कर दिया… तो फिर 3 प्रश्नों का उत्तर उत्तर देने के लिए किसकी जिम्मेदारी है
प्रश्न 1) आखिर किस आधार पर सभापति महोदय जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने लगे थे? उन्होंने VHP के कार्यक्रम में कट्टरपंथी मौलानाओं को कठमुल्ला ही बोला था। संवैधानिक रूप से इस बात के लिए उन्हें कोई सजा दी ही नहीं जा सकती। सो, इसमें क्या बात चुभी धनखड़ साहब को? चुभी तो आखिर क्यों चुभी? उसका कारण बताइए…
प्रश्न 2) जस्टिस शेखर यादव को नौकरी से निकालने का प्रस्ताव कपिल सिब्बल लेके आए, और भ्रष्टाचारी जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा में चल रहे मामले को राज्यसभा में शिफ्ट क्यों लाने जा रहे थे कपिल सिब्बल की अपील पर? …यह जानते हुए भी के कोर्ट में भ्रष्टाचारी वर्मा के वकील भी कपिल सिब्बल ही हैं।
प्रश्न 3) नियमों के विरुद्ध जाकर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे सदन में भाषण देने लग जाते हैं, किसी अन्य विषय में कोई और मुद्दों पर गैरजरूरी बोलते रहे… इसके बावजूद आपने खड़गे को क्यों नहीं बिठाया? …नियम के विरुद्ध बोलने वाले को क्यों नहीं टोका आपने? …क्या आपको सभापति कांग्रेस ने बनाया था?
…यह सभी 3 घटनाएं संसद में आधिकारिक रूप से दर्ज हैं, नाकि कोई मीडिया की अफवाह है। और ऊपर की 2 घटनाओं में एक समानता ये है के दोनों प्रस्ताव कपिल सिब्बल अर्थात कांग्रेस के लाए गए थे। आप बिना भाजपा से चर्चा किए… राज्यसभा में कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा क्यों बन गए संसद में? इतना सब होने के बाद यह कैसे मान लिया जाए कि पूर्व सभापति महोदय विरोधियों से नहीं जा मिले थे?
VHP के कार्यक्रम में संबोधन करने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव जी पर महाभियोग चलाया जाता है, तो इसका सारा दोष केंद्र सरकार पर आता है… जिसका मतलब है संघ और विश्व हिंदू परिषद इन दोनों संगठनों की भाजपा सरकार से ठन जाती। आप जस्टिस शेखर यादव को फंसाकर क्या चाहते हैं कि क्रोधित होकर संघ आगामी चुनाव में भाजपा को हरा दे ? यदि किसी के पास इन तीनों प्रश्नों का उत्तर नहीं है,,, तो धनखड़ साहब की आलोचना करने वालों को गलत ठहराने का भी अधिकार नहीं रखते आप।
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