जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा की...
धर्म ही आपके दुखों का अंत करता है : आचार्य सुबल सागर महाराज
ग्वालियर। ज्ञानी को ज्ञान की महिमा होती है। जब वस्तु का ज्ञान होगा तभी गुण दोषों को ग्रहण त्याग किया जा सकता है। लोक का ज्ञान एवं धर्म का ज्ञान दोनो आवश्यक है। व्यवहार एवं निश्चय से ही सम्यक ज्ञान होता है। वही मोक्ष का मार्ग है। पहले व्यवहार का ज्ञान होना चाहिए तभी निश्वय में पहुंच सकता है। यह बात आचार्य सुबल सागर महाराज ने दाना ओली स्थित चंपाबाग जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन में कभी धर्म का रास्ता नहीं छोडऩा चाहिए। धर्म ही आपके दुखों का अंत करता हे। आपके जीवन में कभी भी भेद विज्ञान हो सकता है। भेद विज्ञान होने पर ही मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है। तभी कषायों का गमन होता है, तभी आत्मा का विकास होता है। हमें ज्ञान के लिए स्वाध्याय करना आवश्यक है, चारों अनुयोंगी का ज्ञान होना चाहिए तभी हमारे जीवन का विकास होगा। मोक्ष मार्ग का प्रशस्त होता है। हमने यह पर्याय किस तरह प्राप्त किया है इसकी मोक्ष मार्ग में लगा दें, ताकि पर्याय सफल हो सके।
आचार्य सुबल सागर महाराज ने आगे कहा कि संत ही युवा पीढ़ी को सद्मार्ग और संस्कारवान बनाते हैं। समाज में बदलाव की शुरुआत हर आदमी को अपने घर से करना होगी। युवा पीढ़ी माता-पिता की बातों पर ध्यान नहीं देती हैं। बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए माता-पिता को खुद आदर्श बनना होगा। माता पिता की आज्ञा मानने के मामले में भगवान श्रीराम के उदाहरण को सामने रखा। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपनाना चाहिए।










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