G News 24 : गैर भारतीयों के बिना वैध दस्तावेजों के भारत में कहीं भी रहने पर उनके साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार कार्वाही होगी !

 सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों के निर्वासन पर रोक लगाने से मना कर दिया है ...

गैर भारतीयों के बिना वैध दस्तावेजों के भारत में कहीं भी रहने पर, उनके साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार कार्वाही होगी !

8 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन के सिंह की पीठ ने प्रशांत भूषण और कॉलिन गोंसाल्वेज़ की रोहिंग्या मुसलामनों को निर्वासित न करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट निर्देश दिए कि भारत में कहीं भी रहने का अधिकार केवल उसके नागरिकों को है और गैर भारतीयों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार व्यवहार किया जाएगा - उनके निर्वासन पर कोई रोक लगाने से कोर्ट ने मना कर दिया !

भूषण और गोंसाल्वेज़ अपना रोना रोए थे कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार झेल रहे हैं और उन्हें UNHRC से शरणार्थी दर्जा मिला हुआ है और उन्हें शरणार्थी कार्ड दिए हुए हैं और इसलिए उन्हें भारत में रहने का अधिकार है - सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और भारत उन्हें शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देता - शरणार्थी का दर्जा देना ही विवादित है - पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 21 में जीवन का अधिकार रोहिंग्या प्रवासियों को उपलब्ध है लेकिन ये सभी विदेशी हैं जो विदेशी अधिनियम के अंतर्गत निर्वासित किए जा सकते हैं !

हालांकि सॉलिसिटर जनरल ने आश्वासन दिया कि रोहिंग्या प्रवासियों को वापस भेजने के लिए मौजूदा कानूनों के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा - सरकार की तरफ से पहले भी सुप्रीम कोर्ट को बताया जाता रहा है कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं !

अगर सही मायने में देखा जाए तो भारत का संविधान और आर्टिकल, 14 और 21 केवल भारतीयों पर लागू होना चाहिए - देश में हर किसी घुसपैठ करने वाले को इस अनुच्छेद का लाभ नहीं मिलना चाहिए और उसकी भाषा भी यह नहीं कहती कि विदेशियों को भी इसका लाभ मिल सकता है - ऐसा कैसे हो सकता है कि दुनिया भर से लोग भारत में घुस जाए और भारतीय संविधान का लाभ लेकर देश में अराजकता फैलाने का काम करें - सुप्रीम कोर्ट ने यह लाभ भारत में रहने वाले हर किसी व्यक्ति को देकर उचित दृष्टिकोण नहीं अपनाया । 

चार साल पहले भी सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस SA Bobde, जस्टिस AS Bopanna और जस्टिस V Ramasubramanian की पीठ ने जम्मू में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के लिए भी फैसले में कहा था कि उन्हें नियमों के अनुसार ही निर्वासित किया जाए और निर्वासन को सही ठहराया था । 

एक मामला 2017 में सुप्रीम कोर्ट में 2 भिखारी जैसे दिखने वाले रोहिंग्या मुसलमानों ने भी याचिका दायर की थी जिनके पक्ष में कपिल सिबल, गोंसाल्वेज़, प्रशांत भूषण समेत 6 धुरंधर वकील खड़े हुए थे लेकिन वह केस अब तक लंबित है - हालांकि ऊपर दिए गए 2 फैसलों ने निर्णय तो कर दिया - सवाल यह उठता है कि उन 6 वकीलों की फीस किसने दी होगी । 

जब रोहिंग्या, बांग्लादेशी या पाकिस्तानी बिना किसी नियम कानून के भारत में घुस जाते हैं तो उन्हें बाहर करने के लिए नियम कानूनों का पालन क्यों किया जाए जिससे सरकार पर   फ़िज़ूल पैसे के खर्च का बोझ पड़ता है । जैसे पाकिस्तानियों को जाने के आदेश जारी किए गए थे, वैसे आदेश रोहिंग्या को भी देश छोड़ने के लिए जारी करने चाहिए । 

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