वक्फ संशोधन Bill को लेकर,दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने किया आदेश सुरक्षित...
वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है,लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है:तुषार मेहता
वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. तीन दिनों तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आज कोर्ट से कहा कि वक्फ ईश्वर को समर्पित है. यह किसी समुदाय के लिए दान नहीं है. केंद्र की दलील थी कि वक्फ केवल एक दान के लिए है.
केंद्र ने कहा था कि वक्फ एक दान के लिए है. जिस पर आपत्ति जताते हुए कपिल सिब्बल ने आज कोर्ट से कहा, "वक्फ ईश्वर को समर्पित है. यह किसी समुदाय के लिए दान नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक लाभ के लिए है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की हिंदुओं में मोक्ष का सिद्धांत है. जिसके बाद न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने ईसाई धर्म में इसी तरह के प्रावधान का हवाला देते हुए मुख्य न्यायाधीश की बात दोहराई और कहा कि हम सभी स्वर्ग जाने की कोशिश करते हैं.
केंद्र के तर्क का विरोध करते हुए अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वेदों के अनुसार मंदिर हिंदू धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हैं. प्रकृति की पूजा करने का प्रावधान है.अग्नि, जल और वर्षा के देवता हैं, पहाड़, महासागर आदि हैं. इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने पहले दावा किया था कि वक्फ मूल रूप से ईश्वर के नाम पर दान है, जिस पर केंद्र ने जवाब दिया था कि दान सभी धर्मों का अभिन्न अंग है.
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है. लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. वक्फ इस्लाम में दान के अलावा कुछ नहीं है. निर्णयों से पता चलता है कि दान हर धर्म का हिस्सा है और ईसाई धर्म के लिए भी हो सकता है, हिंदुओं में दान की एक प्रणाली है, सिखों में भी यह है. जबकि मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, दान अन्य धर्मों का भी एक मूलभूत सिद्धांत है. जाहिर तौर पर दान के मामले में धर्मों के बीच समानताएं दर्शाने का उनका इरादा था. फिलहाल आदेश को सुरक्षित रख लिया गया है. अब देखने वाली बात होगी की आदेश कब आता है.
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