आज उम्र भर की यादें भी एक ऊंगली से हो जाती है डिलीट

 दौर कागजी था देर तक खतों में जज़्बात महफूज रहते थे !

आज उम्र भर की यादें भी एक ऊंगली से हो जाती है  डिलीट 


बदलती दुनिया,बदलते बहकते लोग!आधुनिकता के धरातल पर  बढ़ते बेतहाषा बेहिसाब रोग! खुद की बर्बादी के योग और संयोग के साथ ही अपनों के दिए दर्द और बियोग के चपेट में आकर बदलाव की बहती बहसी हवा ने भारतीय सभ्यता और संस्कृत को चौपट कर दिया!जब कभी दौर कागजी था मोहब्बत की कलम में जज़्बात की स्याही उम्मीद के पन्नों पर दिल के हालात को इस बिस्वास के आवरण में संकलित कर प्रचलित भाषा में अपने मन के उद्गार को शिष्टता तथा सौम्यता का सम्वर्द्धन लिए समर्पित भाव से उद्धृत कर अपनो के शानिध्य का एहसास करता था!हर पल हर दिन बिश्वास की महकती मनमोहक यादों का सिल सिला रिश्तों के सम्वर्द्धन में दूर रहकर भी अपना होने का समर्थन करता था?रिश्तों में मधुरता थी! भाषा में सरलता थी l 

सबमें अपने पन की खुश्बू थी! लगाव सम्भाव शिष्ट स्वभाव की गमक थी!चहकते सम्बन्धों की मधुर महक थी!न कोई टकराव था! न अलगाव था!आपस में आने जाने का सिल सिला बारहमासी था! हर तरफ खुशियों की वर्षांत होती थी दूर खड़ी उदासी थी।अब तो गजब का बदलाव हो गया। ए जी वो जी की प्यार भरी भाषा को थ्री जी फोर जी फाईफ जी ने खतम कर रिश्तों को बे भरम कर दिया?इस सदी में हम आप तरक्की जिस बग्गी पर सवार होकर रफ्तार से चल रहे हैं उसके अन्धड में पुरातन परम्परा की परिष्कृत संस्कृत का विलोपन होता जा रहा है।चाल चलन हाव भाव पहनाव ठहराव सब कुछ बदल रहा है! रिश्ता नाता भी अब बहुरंगी बन गया!रहन सहन भी बढ़ेन्गी हो गया!लाज लिहाज परवाज़ चढ़कर आज समाज में अजीब  रंगत पैदा कर दिया!अनाचार दुराचार का चल रहा दौर है! इसमें न कोई अपना है न गैर है!जिससे स्वार्थ पूरा होता वहीं अपना जिससे नहीं होता उसी से बैर हैं! हर हाथ में मोबाईल है!चौबीस घंटा चेहरे पर स्माइल है!सारे सम्बन्ध हवा हवाई है‌!फेस बुक पर रोज बनते बिगड़ते रिश्ते! रोज बनते भाई हैl 

यही आधुनिक युग की उम्दा कमाई है! सबसे अधिक नुक्सान आज के हालत में  मर्यादा का हुआ है!आबरु रोज नीलाम हो रही है!जगह हसाईं सुबह शाम हो रही है! मानव बस्ती का कोई घर नहीं बचा जिसमे यह दर्द दस्तक नहीं दिया है। खुद की आजादी में बर्बादी का हर फलसफा सभी को हासिल है!घर घर जुआ घर घर शराबी है!शहर गांव कस्बा के गली नुक्कड़ में निष्प्रयोज्य घूमते मोबाईल लिए अनुरागी‌?पुराने जमाने के लोग यह सब देखकर चकित हैं आखिर यह पीढ़ी कहां जा रही है हर तरफ सम्बन्धों की तिजारत में तबाही का खेल करती जिन्दगी की हो रही बर्बादी है!अब न कोई मालिक है!न हकदार है न सयुक्त परिवार है न न किसी पर किसी का अधिकार है!बदलाव का करिश्मा देखिए आंख खुलते ही हर आदमी बन जा रहा होशियार है?अब सम्बन्ध सम्बन्ध न होकर बन गया ब्यापार है?अब न खत आते न चिठ्ठी?ना अब रिश्तेदारों आते न घर बार में रौनक होती!रिश्तों में सबसे मीठा रिश्ता ससुराल है l 

अब तो मोबाइल से ही सारे मैसेज आते!सुबह आये शाम को भूल जाते!दिली जज़्बात का मोल खत्म हो गया? पुराने सम्बन्धों का खेल खत्म हो गया! लम्हा में बनता रिश्ता लम्हा में ही बिलगाव न कही धरातल न कोई भाव!सब कुछ बदल गया।केवल दिखावा है पाश्चात्य पहनावा है।इसी के बीच अपनों के साथ ही हो रहा छलावा है।समय सशंकित हैं हर आदमी आतंकित हैं कलयुग का जलवा चरम पर है दौड़ती हांफती ज़िन्दगी को मौत आसानी से लील रही है!इन्सानियत रो रही है मानवता कराह रही है। फिर भी झूठे  मान सम्मान के अभिमान में घर घर तूफान चल रहा है। आधुनिकता की आसमानी उड़ान मे भारतीय सभ्यताका गौरवशाली इतिहास आज कलंकित हो रहा है सम्बृध शाली प्रभावशाली पुरातन परम्परा के पोषक परिवार बिलुप्त हो रहे हैं।जो गुज़र गया अब वो दौर न आयेगा l

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