अमृत योजना के नाम पर जो खेल चल रहा है उस से लोग परेशान हैं!
घटिया पाइपों के कारण एक बार फिर खुली अमृत योजना की पोल
जिससे होने वाले विकास कार्यों और परियोजनाओं में तमाम तरह की विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।आपके और हमारे द्वारा चुकाए गए इसी टैक्स के पैसे से प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार विकास कार्य करवाकर और परियोजना चलाकर श्रेय लेने का कार्य करती हैं। जबकि यह पैसा आपके और हमारे टैक्स के द्वारा चुकाया गया होता है। जब हमारे द्वारा चुकाए गए पैसे की बर्बादी कुछ इस प्रकार होती है तो मन को बड़ी पीड़ा होती है।
यूं तो ग्वालियर सिटी स्मार्ट सिटी में शामिल है और स्मार्ट सिटी के नाम पर जो विकास कार्य कराए जा रहे हैं उन कार्यों से ग्वालियर कितना स्मार्ट हुआ है या आने वाले समय में होगा यह तो आप और हम सभी जानते हैं। विकास कार्यों के नाम पर सड़कों चौराहों को तोड़फोड़ कर फिर से बनाओ फिर से तोड़ो,और फिर से बनाओ का खेल चल रहा है ऐसा ही खेल अमृत योजना के नाम पर भी खेला जा रहा है।
जिसमें राजनीतिज्ञ और अफसरशाही मिलकर के जनता के गाढ़े खून पसीने से प्राप्त गई की गई टैक्स के रूप में कमाई को सीवर और अमृत योजना के नाम पर पानी में बहाया जा रहा है ।
नई बिछाई गई पाइप लाइनों से लोगों के घरों तक पानी पहुंचने की बजाय सड़कों पर व्यर्थ ही बह जाता है यह बेशकीमती पानी इस पानी को टंकी तक पहुंचाने में लगी है जनता की गाड़ी खून पसीने की कमाई पर नेताओं और अफसरों को नहीं है इसकी चिंता। पहले तो इन लाइनों को बिछाने के लिए पूरा शहर खोल डाला उसके बाद जैसे तैसे सड़कें बनने के काम शुरू हुआ और जब इन लाइनों में पानी छोड़ा गया तो एक बार फिर से सड़कें स्वत ही अपने आप खुद उखड़ गई। यानी कि अब इन सड़कों को भी दोबारा बनाना पड़ेगा। लाइने भी दोबारा डाली जा रही है। अब सोचने वाली बात ये है कि क्या ये कार्य पहले ही पूरी गुणवत्ता के साथ नहीं किया जा सकता था।
इसकी बानगी भर शहर में जगह-जगह देखी जा सकती है इसका जीता जागता उदाहरण है लक्ष्मण तलैया हॉकर जॉन के पास हीरा भूमिया पहाड़ी पर बनाई गई पानी की टंकी से अमृत योजना की लाइनें डाली गई है इन लाइनों की क्वालिटी इतनी घटिया है कि जैसे ही इनमें पानी छोड़ा जाता है यह जगह जगह से ब्लास्ट हो जाती हैं । और अभी इनमें नियमित रूप से पानी भी नहीं छोड़ा गया है तब यह हाल है आगे चलकर क्या होगा यह तो समय ही बताएगा।
ये लाइनें ना तो पानी का प्रेशर झेल पा रही है और ना ही वाहनों का दबाव सह पा रही हैं। अब इन पाइपों को सड़क को एक बार फिर खोदकर निकाला जा रहा है और उनके स्थान पर अब लोहे के पाइप डाले जा रहे हैं। यदि यह काम पूरी गुणवत्ता के साथ पहले ही कराया गया होता तो शायद इसकी नौबत ही ना आती लेकिन कमीशन खोरी एवं राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के गठबंधन के चलते इस प्रकार के कार्य को अंजाम दिया गया। और इस गठबंधन के चलते जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई में से टैक्स के रूप में वसूल किए गए इस पैसे को कुछ इस प्रकार बर्बाद किया जा रहा है जिसकी तस्वीरें आए दिन हमारे सामने आती रहती हैं। मुझे समझ में ये नहीं आता कि जनता इस प्रकार के घटिया कृत्य का विरोध क्यों नहीं करती है ? आवाज क्यों नहीं उठाती है ? जनता को आवाज उठाना चाहिए और प्रकार की बर्बादी को रोकना चाहिए!
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