शी जिनपिंग से क्यों नहीं मिले थे पीएम मोदी

 विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कर दिया खुलासा !

शी जिनपिंग से क्यों नहीं मिले थे पीएम मोदी


उज्बेकिस्तान में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पीएम मोदी से मिलने के लिए बहुत आतुर थे। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार उन्होंने इसके लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से सिफारिश भी करवाई थी। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शी जिनिपंग से द्विपक्षीय वार्ता को राजी नहीं हुए थे। इससे चीन हैरान था। हालांकि शी जिनपिंग पीएम मोदी के इरादों को भांप चुके थे कि पीएम मोदी ने उनसे मिलने से क्यों मना कर दिया। पूरी दुनिया को पता है कि पीएम मोदी दोस्ती जितनी शिद्दत से निभाते हैं, दुश्मनी उससे भी ज्यादा शिद्दत से करते हैं। एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले जिस तरह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के विवादित क्षेत्रों से भारत और चीन ने अपने सैनिकों को वापस बुलाया था, उससे पूरी दुनिया यह उम्मीद कर रही थी कि दोनों देशों के बीच उज्बेकिस्तान में द्विपक्षीय वार्ता तय है, लेकिन मोदी ने सबको चौंका दिया था।  

अब देश के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने संकेतों में ही यह खुलासा कर दिया है कि पीएम मोदी ने आखिर शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने से क्यों मना कर दिया था? विदेशमंत्री एस जयशंकर ने  बृहस्पतिवार को कहा कि चीन के साथ भारत के संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक कि सीमावर्ती इलाकों में शांति न हो। इस मामले में भारत पहले भी चीन को स्पष्ट संदेश चीन को दे चुका है। उन्होंने कहा कि ‘‘मैं कह रहा हूं कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति का माहौल नहीं होगा, जब तक समझौतों का पालन नहीं किया जाता है और यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयास पर रोक नहीं लगती है तब तक भारत-चीन के संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं। विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान बताता है कि पीएम मोदी ने उक्त वजहों के चलते ही शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। क्योंकि पीएम मोदी के दिल में गलवान घाटी में चीन के धोखे कीक टसक अभी भी बरकरार है। हालांकि भारतीय सेना ने उसी वक्त चीन को इसका जवाब दे दिया था। मगर अब पीएम मोदी चीन को दोबारा आस्तीन का सांप बनने का मौका ही नहीं देना चाहते। विदेश मंत्री ने कहा कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी में जो हुआ वह ‘‘एक पक्ष का प्रयास था, और हम जानते हैं कि वह कौन था, जो समझौते से अलग हटा था और यह मुद्दा सबसे अहम है।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘क्या हमने तब से प्रगति की है? कुछ मायनों में, हां। टकराव वाले कई बिंदु थे। उन टकराव वाले बिंदुओं में, सेना द्वारा खतरनाक रूप से करीबी तैनाती थी, मुझे लगता है कि उनमें से कुछ मुद्दों को समान और आपसी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हल किया गया है।

विदेश मंत्री ने कहा कि कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिन पर अभी काम किये जाने की जरूरत है। यह महत्वपूर्ण है कि हम दृढ़ रहें और आगे बढ़ते रहें। क्योंकि आप यह नहीं कह सकते हैं कि यह जटिल या कठिन है। विदेश मंत्री ने उम्मीद जताई कि चीन को यह अहसास होगा कि वर्तमान स्थिति उसके हित में भी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में भारत की ओर से चीन को दिया गया संकेत स्पष्ट है। वे इसे अपने हितों से तौलेंगे, लेकिन यह सिर्फ जनभावना की बात नहीं है। मुझे लगता है कि यह सरकार की नीति है, यह राष्ट्रीय सोच, जन भावना और रणनीतिक आकलन है। गौरतलब है कि जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच भीषण झड़प हुई थी। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया था। पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों में गतिरोध को हल करने पर अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है, हालांकि दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक वार्ता के जरिये टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों को पीछे हटाया है। भारत लगातार इस बात को कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है। पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध शुरू हो गया था। जिसका हल अभी तक नहीं निकल सका है।

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