आम शहरी को हेलमेट ही डराने का हथियार बचा है प्रशासन के पास !

ट्रैफिक इतना की पैदल चलना भी मुश्किल…

आम शहरी को हेलमेट ही डराने का हथियार बचा है प्रशासन के पास !

कमाल है मेरा स्मार्ट सिटी शहर ग्वालियर! सड़क पर रेगंता ओवरलोड ट्राफिक,हर जगह जाम, पार्किंग स्थल के रूप में बदलती शहर की प्रमुख सड़कें और एक बार अब फिर हेलमेट की अनिवार्यता का कोर्ट का आदेश ! इस समय शहर की सड़कें पैदल चलने लायक ना हो, सड़कें जगह-जगह गड्ढे होकर खुद ही पड़ी हैं। ट्रैफिक इतना की पैदल चलना भी मुश्किल हो रहा है इसकी परवाह किसी को नहीं है ना ही कोर्ट को ना ही शासन प्रशासन को और ऊपर से बगैर हकीकत जाने शहर में भी हेलमेट की अनिवार्यता कर दी। इसे क्या कहेंगे...?  एक बार तो कोर्ट को वास्तविकता देख लेनी चाहिए थी कि कहां हेलमेट लागू किया जा सकता है कहां नहीं । बस हेलमेट निर्माता कंपनियों ने अपने किसी व्यक्ति से जनहित याचिका लगवाई और कोर्ट ने उस पर आदेश कर दिया। 

हेलमेट के फेवर में दुहाई दी जाती है कि दी एक्सीडेंट होने पर ये सिर की सुरक्षा करता है। मानव जीवन बचाने के लिए हेलमेट अनिवार्य है। निसंदेह बात सही है कि हेलमेट सिर की सुरक्षा करता है लेकिन हेलमेट की उपयोगिता कहां होनी चाहिए कहां नहीं इस पर भी कोर्ट को विचार करना चाहिए। खुली सड़क पर जहां वाहन की गति सीमा 40 से 60 या उससे अधिक हो वहां हेलमेट अनिवार्य किया जा  सकता है। उदाहरण के तौर पर हाईवे को ले सकते हैं जहां वाहन की गति 50 से लेकर 70 या 80 किलोमीटर तक होती है वहां तो हेलमेट की अनिवार्यता समझ में आती है।

लेकिन जहां 20 से 25 की गति सीमा बमुश्किल गाड़ी पकड़ पाती है और फिर कहीं गड्ढा कहीं कोई गाड़ी या व्यक्ति सामने आता है तो गाड़ी की गति फिर से शून्य हो जाती है ऐसे में हेलमेट का औचित्य ही क्या रह जाता है ? ऐसे में यह हेलमेट सुरक्षा करने के बजाय दुर्घटनाओं का कारण बनेगा और बनता भी है। इस पर भी कोर्ट को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि छोटे शहरों के नगर निगम सीमा के अंदर बाजारों में हेलमेट की अनिवार्यता नहीं होना चाहिए। इसके लिए आमजन को भी आवाज उठाना चाहिए। 

ग्वालियर में हेलमेट का पालन तब तक संभव नहीं है जब तक की सड़कों से अवैध पार्किंग और अवैध व्यवसाय नहीं हटाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो चप्पर वाला पुल जहां मैकेनिक्स सड़कों पर ही गाड़ियां सुधारने का कार्य करते हैं जिससे आधी सड़कें इनके द्वारा अवैध कब्जा आई हुई हैं । वही आधी सड़कों पर एक होटल में आने वालों के वाहन पार्क होते हैं रात के समय चलने वाले बीयर बार रात के समय चलने वाले बीयर बार पर आने वाले ग्राहकों के वाहन भी यही सड़क पर पार्किंग पर पार्क होते है। इसी प्रकार इंदरगंज चौराहे और उसके आसपास जिला सेशन कोर्ट के बाहर भी सड़क पर ही चार पहिया वाहन पार्क होते हैं। पाटणकर चौराहे पर स्थित एक हॉस्पिटल के बाहर भी सड़क पर ही पार्क हो रहे हैं। 

यही स्थिति डीडी मॉल के पास अभी हाल ही में कुछ माह पूर्व बने एक आलीशान होटल के पास का है जहां सड़क पर दोनों तरफ वाहन पार्क किए जाकर सड़क को अवरुद्ध किया जा रहा है। हॉस्पिटल रोड स्थित तमाम हॉस्पिटल पर आने वालों के वाहन भी पूरी सड़क को घेर कर खड़े रहते हैं जिससे आम नागरिक परेशानियों का सामना करता है। वहीं मुरार में सड़कों की चौड़ाई भी ठीक-ठाक है लेकिन यहां बेतरतीब ट्रेफिक और आवारा जानवरों की वजह से ट्रैफिक की क्या स्थिति है? इस से सभी भलीभांति परिचित हैं। ये तो कुछ जगहों के कुछ नाम मात्र है जिनका जिक्र मैं यहां कर रहा हूं तीनों उपनगरों में यही स्थिति है ऐसी तमाम जगह हैं शहर में जहां अवैध पार्किंग और अवैध व्यवसाय सड़क पर किया जाता है और यहां से सैकड़ों अधिकारी,शासन प्रशासन के लोग और अमूमन कोर्ट में बैठने वाले जज साहब भी प्रतिदिन गुजरते होंगे लेकिन ये सब देख कर भी नजरअंदाज कर जाना और फिर इस प्रकार के कानून लागू करना कहां तक उचित हैं ? 

पहले इन चार पहिया वाहन चालकों और सड़क पर वाहन पार्क करवाने वाले, सड़क पर गैराज चलाने वालों, होटल,हॉस्पिटल और बैंक वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। क्योंकि इनके लिए स्पष्ट नियम है कि इन पर स्वयं की पार्किंग होना जरूरी है तभी इन्हें लाइसेंस मिलेगा। और जब इनके पास पार्किंग नहीं है तो ये इस प्रकार  आमजन के लिए इस्तेमाल होने वाली सड़क अवरुद्ध करके इस प्रकार अपना व्यवसाय कैसे कर सकते हैं? जब शासन इन पर कार्रवाई नहीं कर रहा है तो फिर दो पहिया वाहन चालक केवल हेलमेट ना लगाएं वह भी सिटी के अंदर और वह भी इस प्रकार की सड़कों पर और उसका चालान बना दिया जाए यह तो ठीक नहीं है। क्योंकि कानून ताकतवर के लिए अलग और कमजोर के लिए अलग नहीं हो सकता, कानून सबको बराबर का हक देता है।

इस प्रकार केबल दो पहिया वाहन चालकों को हेलमेट ना लगाने पर चालान का डर दिखाकर डराया नहीं जा सकता! पहले सड़कों पर से अवैध पार्किंग हटाएं, सड़कों की खस्ता हालत को सुधारें, सड़कों पर से आवारा जानवरों को हटाएं। उसके बाद जब सड़कें क्लियर हो जाएं तब आप लोगों को हेलमेट लगाने के लिए बाध्य कर सकते हैं और यदि आप ये सब नहीं कर सकते तो फिर इस विषय को लेकर मंथन अवश्य करें। कि किसी नियम कानून को मानने से जनता इनकार क्यों कर रही है? उसे क्या परेशानी है इसकी परेशानी को पहचाने उसे दूर करें फिर किसी कानून को पालन करवाने के लिए जनता को बाध्य किया जा सकता है। बगैर वास्तविक जमीनी हकीकत जाने किसी कंपनी के शह के लगाई गई जनहित याचिका के आधार पर इस प्रकार के कानून पारित करके उसे कानूनी डंडे के दम पर लागू करना कहां तक न्याय संगत है ?

और यदि हेलमेट लागू करना ही सरकार और कोर्ट की मंशा है तो फिर पहले सड़कों की दशा सुधारे, सड़कों से अवैध पार्किंग हटाए, बेरोक तो घूमते हुए सड़कों से आवारा पशुओं को हटाए, सड़कों से सड़कों पर व्यवसाय करने वाले व्यवसायियों मैकेनिक और हॉकर्स को सड़कों से हटाए। जिस से कि हेलमेट लगाकर चलने वाले को वाहन चलाते समय कोई परेशानी ना हो।

जनता हर बार हेलमेट पहनने का विरोध करती है आखिर क्यों ? ये जानने की कोशिश प्रशासन और माननीय ने की क्या कभी ? बहुत से कानून है जिनका पालन  करना संभव नही या प्रैक्टिकल नहीं क्या सभी कानून जो बने है उनका पालन किया जाता है ! क्या क्या वो प्रैक्टिकली सही है क्या ? जनता  को लगता है कि हेलमेट पहनने में क्या परेशानी है वो  प्रशासन और माननीय को जानना ज़रूरी है !

  • 1 .सबसे पहले तो हेलमेट पहनने में परेशानी यह है कि साइड में दिखाई देना बंद या बहुत कम हो जाता है। बिना हेलमेट के चालक की साइड में क्या वहां आ रहे है या चल रहे है या क्या गतिविधि हो रही है उसका आभास नही हो पाता है। (जिसकी वजह से दुर्घटना नही होना हो तो भी संभावना बढ़ जाती है दुर्घटना होने की, इसलिए जरा प्रैक्टिकल होकर सोचें..)
  • 2. दूसरी बात सुनाई देना कम या बंद हो जाता है जिससे पीछे क्या हो रहा है उसका ज्ञान चालक को नही हो पाता।गर्मी बहुत बढ़ जाती है जिससे चालक परेशान हो जाता है।
  • 4. शहरी इलाकों में अधिकांश जगह वन वे रोड हैं छोटी-छोटी गलियां हैं जिनसे अचानक कोई वाहन चालक या अन्य कोई दूसरा वाहन निकल आता है अगर इसमें कोई गलत साइड से नहीं आये तो भी दुर्घटना की संभावना कम हो सकती हैं।
  • 5. शहरी इलाकों में वैसे भी ट्रैफिक बहुत अधिक होता है गाड़ियां तीसरे गियर में ही नही चल पाती अर्थात अधिक गति में नहीं चल पाती तो हेलमेट की ज़रूरत ही नही है। हेलमेट की ज़रूरत अधिक गति वालो के लिए है खुली सड़क के लिए है।
  • 6. प्रशासन इन बातों पर ध्यान दे जनता को स्वयं की सुरक्षा किसमे है, क्योंकि जान सबको प्यारी होती है जनता को मालूम है उस पर जबरदस्ती के कानून लादकर उसे समजाने की कोशिश न करें कि उनकी सुरक्षा किसमें है।
  • कोई स्वयं की जान जोखिम में नही डालता हा आप गतिसीमा ,एकांगी मार्ग,नशा मुक्त वाहन चलाने,आदि का पालन करवाएं  दुर्घटनाओं में स्वयं कमी आ जायेगी।
  • 7. हेलमेट की आड़ में दो पहिया वाहन चालकों को रोक कर उनसे चालान वसूल करने का नया फॉर्मूला बन जाएगा कोर्ट का यह आदेश! एक आम आदमी उस वक्त क्या करेगा जब दिवाली के लिए कपड़े,मिठाई,पूजन सामग्री,पटाखे की खरीदी करने जाने वालो के लिए पुलिसिया की तरफ से हेलमेट का चालान भेंट होगा।

केवल जनता को कानूनों  की आड़ लेकर परेशान करना, मोटी चालानी वसूली करना वो भी त्यौहारों के समय ठीक नही है। जनता अभी तक कोरोना काल के शिकंजे से मुक्त नही हो पायी है बस जैसे तैसे अपनी रोजी रोटी की जुगाड़ करने के लिए शहर वासी पहले ही परेशान हैं और ये हेलमेटी तुगलकी कार्यवाही गलत है। इस लिए शहर की जनता दमदारी से इस बेतुके तानाशाही निर्णय का विरोध करें एवं हर तरफ रेंगते हुए ट्राफिक हर तरफ जाम से आम आदमी पहले ही परेशान हैं।

सिटी के अंदर हेलमेट लगाने का हिटलरशाही फरमान गलत है। गलत इसलिए कि प्रदेश की जनता हर बार इस गलत निर्णय का विरोध हेलमेट ना पहन कर कर चुकी हैं। बात रही कानून की तो कानून जनता की सुविधा के लिए बनाए जाते है जिससे सब की सुरक्षा हो जब जनता इस आदेश या कानून को मानना ही नहीं चाहती तो क्यों हर बार ये ज़बरदस्ती करने की कोशिश क्यों कि जाती है ? शासन प्रशासन प्रैक्टिकली इस विषय पर मंथन करें उसके बाद ही इस प्रकार के कानून के पालन की आमजन से अपेक्षा करें।

- रवि यादव

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