पूरे देश और विदेश से संगत पहुंचेगी गुरुद्वारा दताबंदी छोड़ पर मत्था टेकने

25 को ग्वालियर गुरुद्वारा दताबंदी छोड़ दिवस का बड़ा आयोजन...

पूरे देश और विदेश से संगत पहुंचेगी गुरुद्वारा दताबंदी छोड़ पर मत्था टेकने



ग्वालियर l गुरुद्वारा दताबंदी छोड़ दिवस का बड़ा आयोजन 25-09-2022 को होने जा रहा है जो हर वर्ष समूचे प्रदेश से ही नही बल्कि देश और विदेश से भी संगत गुरुद्वारा दताबंदी छोड़ किला ग्वालियर में मत्था टेकने पहुंचती है। गुरुद्वारा साहिब के मुख्य सेवादार बाबा सेवा सिंह ने बताया कि रोजाना नगर कीर्तन के रूप में सिख संगत गुरुद्वारा साहिब पहुंचकर गुरु जी की खुशियां प्राप्त कर रही है आज नगर कीर्तन में शामिल होकर फतेहपुर गोहद जिला भिंड से संगत सैकड़ों की संख्या में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के दर्शन करने पहुंचीं। नगर कीर्तन में पांच प्यारो की अगुवाही में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पालकी गुरुद्वारा पहुंची l 

नगर कीर्तन गुरु द्वारा दाता बंदीछोड़ पहुंचते ही ' जो बोले सो निहाल'के जयकारे सिख संगत ने लगाए जिससे पूरी संगत ने पालकी में सजाए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी मत्था टेकने पहुंची और  गुरु जी की खुशियों में शामिल होकर उनका आशीर्वाद लिया। इसी कड़ी में कल घरसोंधी चिनोर से नगर कीर्तन के साथ  सिख संगत किला ग्वालियर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदीछोड़ पहुंचेगी नगर कीर्तन में जो भी संगत और सेवादार गुरुद्वारा पहुंच रही है उनके लिए लंगर ओर पानी की सुविधा गुरुद्वारा प्रबंधन की ओर से रोजाना चल रही है।

बाबा लख्खा सिंह और बाबा गुरप्रीत सिंघ जी द्वारा नगर कीर्तन लेकर पहुंचे पांच पियारों ओर गुरु ग्रंथ साहिब जी के ग्रंथी सिंघ को सिरोपा भेंट कर उनको सम्मानित करते है उसके बाद दाता बंदी छोड़ जी के सम्मुख अरदास की जाती है जिसमे पूरीसंगत शामिल होकर सरबात्त (सभी के भले की )के भले की अरदास की जाती है। उसके बाद आई हुई संगत लंगर प्रसादा ग्रहण कर गुरु की सेवा में शामिल हो जाती है।

बंदी छोड़  दिवस मनाये जाने के पीछे एक सच्चाई है ...

बंदी छोड़  दिवस मनाये जाने के पीछे एक सच्चाई है इस पूरी घटना को जानने के लिए 400 साल पहले यानी सन 1600 में झांकना पड़ेगा जब भारतवर्ष पर मुगलों का अधिकार था। मुगलों  द्वारा ग्वालियर के किले को कारावास के रूप में उपयोग किया जाता है। उन दिनों मुगल तख्त पर बादशाह जहांगीर बैठा था। उसने 52 राजपूत राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा हुआ था। इसी दौरान सन 1619 में 6 वें सिख गुरु हरगोविंद सिंह को मुगल बादशाह जहांगीर ने गिरफ्तार करवा लिया और ग्वालियर के किले में राजपूत राजाओं के साथ बंद कर दिया। करीब 2 साल 3 महीने तक गुरु हरगोविंद सिंह ग्वालियर के किले में साधना करते रहे। 

सन 1621 में मुगल बादशाह जहांगी400 साल पहले यानी सन 1600 की है। भारतवर्ष पर मुगलों का अधिकार था। ग्वालियर के किले को कारावास के रूप में उपयोग किया जाता है। उन दिनों मुगल तख्त पर बादशाह जहांगीर बैठा था। उसने 52 राजपूत राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा हुआ था। इसी दौरान सन 1619 में 6 वें सिख गुरु हरगोविंद सिंह को मुगल बादशाह जहांगीर ने गिरफ्तार करवा लिया और ग्वालियर के किले में राजपूत राजाओं के साथ बंद कर दिया। करीब 2 साल 3 महीने तक गुरु हरगोविंद सिंह ग्वालियर के किले में साधना करते रहे। 

सन 1621 में मुगल बादशाह जहांगीर की तबीयत खराब हो गई। उसके सपने में एक फकीर बार-बार गुरु हरगोविंद सिंह जी को रिहा करने के लिए कहता था। अंततः जहांगीर ने गुरु हरगोविंद सिंह जी को रिहा करने के आदेश दे दिए। जब रिहाई के आदेश ग्वालियर के किले पर पहुंचे तो गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अकेले रिहा होना अस्वीकार कर दिया और अपने साथ सभी 52 राजपूत राजाओं की स्वतंत्रता की मांग की। 

मुगल बादशाह जहांगीर का मानना था कि 52 राजपूत राजाओं को एक साथ स्वतंत्र कर देने से उसकी सत्ता खतरे में पड़ सकती है लेकिन फकीर की बात भी नहीं डाल सकते इसलिए मुगल बादशाह ने सत्र की के जितने भी लोग गुरु हरगोबिंद सिंह जी का दामन थाम कर बाहर निकल सकते हैं उन सभी को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। 

गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने बड़ी ही चतुराई के साथ रिहाई के लिए नए वस्त्रों की मांग की। इसमें उन्होंने 52 कलियों वाला अंगरखा सिलवाया। और इस प्रकार एक-एक कली पकड़ कर सभी 52 राजपूत राजा स्वतंत्र हो गए। इसी प्रसंग की याद में ग्वालियर के किले में भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है और गुरुद्वारे का नाम रखा गया है दाता बंदी छोड़।र की तबीयत खराब हो गई। उसके सपने में एक फकीर बार-बार गुरु हरगोविंद सिंह जी को रिहा करने के लिए कहता था। अंततः जहांगीर ने गुरु हरगोविंद सिंह जी को रिहा करने के आदेश दे दिए। जब रिहाई के आदेश ग्वालियर के किले पर पहुंचे तो गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने अकेले रिहा होना अस्वीकार कर दिया और अपने साथ सभी 52 राजपूत राजाओं की स्वतंत्रता की मांग की। 

मुगल बादशाह जहांगीर का मानना था कि 52 राजपूत राजाओं को एक साथ स्वतंत्र कर देने से उसकी सत्ता खतरे में पड़ सकती है लेकिन फकीर की बात भी नहीं डाल सकते इसलिए मुगल बादशाह ने सत्र की के जितने भी लोग गुरु हरगोबिंद सिंह जी का दामन थाम कर बाहर निकल सकते हैं उन सभी को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। 

गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने बड़ी ही चतुराई के साथ रिहाई के लिए नए वस्त्रों की मांग की। इसमें उन्होंने 52 कलियों वाला अंगरखा सिलवाया। और इस प्रकार एक-एक कली पकड़ कर सभी 52 राजपूत राजा स्वतंत्र हो गए। इसी प्रसंग की याद में ग्वालियर के किले में भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है और गुरुद्वारे का नाम रखा गया है दाता बंदी छोड़।

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