भारत में रह रहे पाकिस्तानियों को भेजा रहा है पाकिस्तान ...
मैने 27 वर्षों तक पुलिस बल में रहकर देश सेवा की है,मैं मर जाऊंगा लेकिन अब पाकिस्तान नहीं जाऊंगा !
पहलगाम हमले के बाद भारत में रह रहे पाकिस्तानियों को पाकिस्तान भेजा रहा है. इसी बीच पुलिसकर्मी इफ्तखार अली ने कहा कि मैं जम्मू-कश्मीर पुलिस और अपने देश भारत की सेवा करने के लिए पैदा हुआ हूं, मैं मर जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगा. उन्होंने ऐसा क्यों कहा आइए जानते हैं.
पहलगाम हमले के बाद भारत ने कई कड़े फैसले लिए. इसके तहत भारत में रहने वाले पाकिस्तानियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया. भारत छोड़ते वक्त लोगों की आंखें नम थी लेकिन सरकार का फैसला था कि उन्हें देश छोड़ना है. इससे जुड़ी हुई एक खबर जम्मू कश्मीर से सामने आई है. यहां पर 45 वर्षीय पुलिसकर्मी इफ्तखार अली ने कहा कि मैं जम्मू-कश्मीर पुलिस और अपने देश भारत की सेवा करने के लिए पैदा हुआ हूं, मैं मर जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगा. उन्होंने ऐसा क्यों कहा आइए जानते हैं.
'भारत छोड़ो' नोटिस
दरअसल, इफ्तखार अली उन दो दर्जन से अधिक व्यक्तियों में से एक थे, जिनमें से अधिकांश पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से थे, जिन्हें पिछले सप्ताह पुंछ, राजौरी और जम्मू जिलों में 'भारत छोड़ो' नोटिस जारी किए गए थे. कई लोगों को निर्वासन के लिए पंजाब ले जाया गया. हालांकि, याचिका दायर करने के बाद, अली और उनके भाई-बहनों- मोहम्मद शफीक (60), नशरून अख्तर (56), अकसीर अख्तर (54), मोहम्मद शकूर (52), नसीम अख्तर (50), जुल्फकार अली (49), कोसर परवीन (47), और शाजिया तबस्सुम (42) को उनके पैतृक गांव वापस लाया गया, जब अदालत ने निर्वासन आदेश पर रोक लगा दी.
मिली है प्रसंशा
इसके बाद अली खुश नजर आए. बता दें कि पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास मेंढर उप-मंडल के सलवाह गांव के निवासी अली ने 27 वर्षों तक पुलिस बल में सेवा की है और अपने समर्पण और बहादुरी के लिए कई प्रशंसाएं अर्जित की हैं. उन्होंने कहा, मैंने पिछले 27 सालों में पुलिस विभाग में सभी विंग में काम किया है, जो मेरे शरीर पर मौजूद जख्मों और देश के लिए अपना खून-पसीना बहाने के लिए विभाग से मिले प्रशस्ति-पत्रों और पुरस्कारों से स्पष्ट है.
क्या बोले न्यायमूर्ति
इसे लेकर न्यायमूर्ति राहुल भारती ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, (याचिकाकर्ताओं को) जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश छोड़ने के लिए नहीं कहा गया है या मजबूर नहीं किया गया है. हालांकि, यह निर्देश दूसरे पक्ष की आपत्तियों के अधीन है. पुंछ के डिप्टी कमिश्नर को याचिकाकर्ताओं की संपत्ति की स्थिति का विवरण देने वाला एक हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है, जिसकी अगली सुनवाई 20 मई को होगी. अली का दावा है कि निर्वासन नोटिस उनके मामा के साथ लंबे समय से चल रहे भूमि विवाद के कारण जारी किया गया था.
साजिश का शिकार
उन्होंने कहा, हमारे पास करीब पांच हेक्टेयर जमीन है और दो हेक्टेयर जमीन मेरे मामा ने अवैध रूप से हड़प ली है. निर्वासन नोटिस उसी विवाद का नतीजा है क्योंकि वे हमारी जमीन वापस नहीं करना चाहते हैं. वहीं अधिकारियों ने कहा कि, अली के माता-पिता- फकुर दीन और फातिमा बी- 1965 के युद्ध के दौरान पीओके में चले गए थे और 1983 में अपने बच्चों के साथ सलवाह लौटने से पहले त्रालखाल शरणार्थी शिविर में कई साल बिताए थे. 1997 और 2000 के बीच, जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन्हें स्थायी निवासियों के रूप में स्वीकार किया, हालांकि उनकी नागरिकता की स्थिति केंद्र के पास लंबित है.
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