सदैव ही खतरे में चौथे स्तंभ का आधार !

देश-प्रदेश के लगभग 90% पत्रकार आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से खतरे में…

सदैव ही खतरे में चौथे स्तंभ का आधार !

जमाने को खबरों में ढालने वाले दो पत्रकार आज स्वयं समाचार बन गए। इनमें से एक हैं जी न्यूज़ के बेहद चर्चित शो डीएनए को होस्ट करने वाले वरिष्ठ पत्रकार रोहित रंजन। वहीं दूसरे पत्रकार साथी का नाम है भूपेंद्र बुधौलिया, जो कि अशोकनगर जिले के जाने-माने पत्रकार हैं। रोहित रंजन इसलिए समाचार की विषय वस्तु बने, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी थी, जो राहुल गांधी और उनकी पार्टी को नागवार गुजरी। फल स्वरूप रोहित रंजन के ख़िलाफ़ पुलिस में एफ आई आर दर्ज हो गई और उन्हें घर से उठाने के लिए अलसुबह छत्तीसगढ़ की पुलिस उत्तर प्रदेश जा धमकी। गनीमत यह रही कि ऐन वक्त पर सूचना मिलते ही उत्तर प्रदेश की पुलिस सक्रिय हुई। 

नतीजतन उन्हें वहीं गिरफ्तार करके जमानत पर रिहा कर दिया गया। जबकि अशोकनगर जिले के भूपेंद्र बुधौलिया को सूचना मिली थी कि शाढ़ौरा क्षेत्र में चुनावों को प्रभावित करने की गरज से मतदाताओं को प्रलोभन दिए जा रहे हैं और शराब आदि नशीले पदार्थों का अवैध वितरण किया जा रहा है। वे अपने सहयोगी के साथ जैसे ही उक्त आवांछनीय हरकतों को कवरेज करने पहुंचे, वैसे ही उनके ऊपर पारंपरिक हथियारों से हमला कर दिया गया। दोनों घटनाओं में फर्क यह रहा कि जब छत्तीसगढ़ की पुलिस सादा कपड़ों में, बेहद गोपनीय ढंग से, रोहित रंजन को उठाने उत्तर प्रदेश पहुंची, तब वहां उन्हें रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की पुलिस आ धमकी। 

जिसके चलते एक कांग्रेस शासित प्रदेश की पुलिस की मंशा पर भाजपा शासित प्रदेश की पुलिस द्वारा पानी फेर दिया गया और रोहित रंजन कानूनी रूप से सुरक्षित हो गए। जबकि भूपेंद्र बुधौलिया द्वारा स्थानीय पुलिस को इत्तिला कर देने के बाद भी उन्हें समय पर जायज सुरक्षा भी नहीं मिल पाई। नतीजा यह निकला कि इस वक्त उन्हें गंभीर हालत के चलते पड़ोसी जिले गुना के शासकीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। पत्रकार साथियों को यह जानकर थोड़ा सदमा जरूर लगेगा कि दोनों घटनाओं में पुलिस का यह दोहरा व्यवहार इसलिए दिखा, क्योंकि उसकी नजर में एक पत्रकार "बड़ा" है और दूसरा "छोटा"। 

बस यही वह महत्वपूर्ण भेद है, जो पत्रकारिता के आधार, स्थानीय पत्रकार को हर मामले में असुरक्षित बनाए हुए है। यह बात सही है कि एक अखबार के प्रकाशन में  बहुत बड़े मानव समूह का योगदान रहता है। लेकिन यह बात भी गलत नहीं है कि विभिन्न राज्यों के मुख्यालयों पर बैठे इन वरिष्ठों के विशिष्ट कार्यालयों को तथ्यात्मक और भरोसेमंद सूचनाएं भूपेंद्र बुधौलिया जैसे विश्वसनीय संवाददाता ही उपलब्ध करा पाते हैं, जिन्हें अखबारी भाषा में स्थानीय पत्रकार कहा जाता है। यह वह पत्रकार हैं जो सदैव ही अपनी जान को जोखिम में डालकर वह जानकारियां अखबारों को भेजने में जुटे रहते हैं, जो विधायिका कार्यपालिका और यहां तक कि न्यायपालिका द्वारा अधिकांशतः आम जनता से छुपा ली जाती हैं। 

इससे भी ज्यादा स्थानीय पत्रकारों को अवसरवादी नेताओं, भ्रष्ट कर्मचारियों, अधिकारियों और असामाजिक तत्वों से अक्सर ही लोहा लेते रहना पड़ता है। कुल मिलाकर इन स्थानीय पत्रकारों का जीवन नुकीले और धारदार दांतो के बीच उस जीभ के सामान हो जाता है, जिसे हमेशा अपने रक्तरंजित होने का अंदेशा बना रहता है। फिर भी पत्रकारिता का यह महती वर्ग चारों ओर से असुरक्षित है। वह भी तब जबकि राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर संचालित ढेर सारे पत्रकार संगठन इनके हित संरक्षण और सुरक्षा का दावा करते हैं। केंद्र से लेकर विभिन्न प्रदेशों की सरकारें भी अपने आप को पत्रकार मित्र कहने का कोई भी अवसर हाथ से जाने देना नहीं चाहतीं। 

समय-समय पर इनके द्वारा इस आशय के दावे भी किए जाते रहते हैं। फिर भी सच्चाई यही है कि देश प्रदेश के लगभग 90% पत्रकार आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से खतरे में ही बने हुए हैं। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहते हों, लेकिन वास्तविकता यही है कि जो छोटे-छोटे कस्बों, गांवों, मजरों और टोलों में पत्रकारिता का कठिन धर्म निभा रहे हैं, उनमें से अधिकांशों का बीमा नहीं है। इन्हें किसी भी प्रकार का वेतन नहीं मिलता। यहां तक कि इन्हें शासन से अधिमान्यता भी प्राप्त नहीं है। जो वरिष्ठ हैं, महानगरों पर काबिज है अथवा विभिन्न राज्यों के मुख्यालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं, उन पत्रकारों के पास ऊंची पहुंच के चलते भले ही दैहिक और आर्थिक सुरक्षा के माकूल इंतजाम हों, लेकिन चौथे स्तंभ का आधार, स्थानीय पत्रकार सदैव ही खतरे में बना हुआ है।

- मोहन लाल मोदी

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