21 साल में शांति के टापू से राजनीतिक हिंसा के गढ़ में बदला बीरभूम

हिंसा में जलते बंगाली भद्रलोक की कहानी…

21 साल में शांति के टापू से राजनीतिक हिंसा के गढ़ में बदला बीरभूम

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोगटुई गांव में सोमवार की रात दो गुटों के बीच लड़ाई में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया। घटना के बाद ममता सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। हालांकि, बीरभूम में राजनीतिक हिंसा का इतिहास दशकों पुराना है। जिले के नानूर में साल 2000 में 11 किसानों को घर में बंद कर जिंदा जला दिया गया था। तब इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया था। आंकड़ों के हिसाब से देखें, तो बीरभूम में पिछले 21 साल में राजनीतिक हिंसा की 8 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 41 लोगों की जान जा चुकी है। बीरभूम के रक्तरंजित इतिहास के बारे में जानने से पहले हिंसा की घटनाओं पर आप अपनी राय इस पोल में शामिल होकर दे सकते हैं...

1. नानूर का नरसंहार : 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया गया था

  • तारीख थी 27 जुलाई और साल था 2000। राज्य में सरकार थी वाम मोर्चे की और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। एक विवादित जमीन पर खेती करने की वजह से CPIM कार्यकर्ताओं ने 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया था। घटना पर केंद्र ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। इस मामले में जांच के बाद 82 CPIM कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया था, जिसमें 44 दोषी करार दिए गए थे।

2. पूर्व विधायक को घर से खींचकर सड़क पर मार डाला

  • 2009 के आम चुनाव में सत्ताधारी CPIM की राज्य में करारी हार हुई, जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस मुखर होने लगी। 30 जून 2010 को नानूर इलाके में CPIM कार्यकर्ताओं ने तृणमूल के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद 200 से अधिक तृणमूल कार्यकर्ता बंगाल के कद्दावर नेता और पूर्व विधायक आनंद दास के घर के पास प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन के दौरान ही उनकी मौत हो गई थी। CPIM ने आरोप लगाया कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने उन्हें घसीटकर मार डाला। घटना के बाद एक महीने तक इलाके में तनाव बना रहा।

3. मोहम्मदपुर बाजार: आदिवासी और समुदाय विशेष के बीच झड़प में 4 की मौत, 100 घर जले

  • बीरभूम के सुरी क्षेत्र का इलाका है, मोहम्मदपुर। यहां पर आदिवासी और एक विशेष समुदाय की तादाद सबसे अधिक है। 22 अप्रैल 2010 को यहां पर रेत उत्खनन को लेकर आदिवासी और दूसरे पक्ष के माफियाओं के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें 4 लोगों को मौके पर ही मार डाला गया। वहीं, 100 से ज्यादा घर फूंक दिए गए। घटना के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने राज्य से रिपोर्ट तलब की थी।

4. पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा में 4 CPIM कार्यकर्ताओं की मौत

  • 2011 में पश्चिम बंगाल में सरकार बदल चुकी थी। ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी। राज्य में पंचायत चुनाव चल रहा था। इसी दौरान मोहम्मदपुर बाजार इलाके में तृणमलू और CPIM कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई। घटना में CPIM के 4 कार्यकर्ताओं की मौके पर ही मौत हो गई।

5. माकड़ा गांव में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच झड़प, 4 की मौत

  • 2014 के बाद बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य अब पूरी तरह बदल चुका था। CPIM का गढ़ रहे बीरभूम में अब तृणमूल और भाजपा के बीच संघर्ष शुरु हो गया। 27 अक्टूबर 2014 माकड़ा गांव पर सियासी कब्जे की लड़ाई में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं। इसमें भाजपा के 3 और तृणमूल के 1 कार्यकर्ता की मौत हो गई।

6. दरबारपुर गांव की हिंसा: स्कूलों पर क्रूड बम फेंके, 7 की जान गई

  • बीरभूम में सत्ता के साथ-साथ ही अवैध खनन और रेत तस्करी का केंद्र भी बदलता रहता है। यहां CPIM और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच रेत खनन के ठेके पट्टे को लेकर विवाद हो गया। तनाव इतना बढ़ा कि दोनों ओर से बमबाजी शुरू हो गई। यहां तक कि स्कूल और कॉलेजों पर भी दोनों गुट ने बम फेंकना शुरू कर दिया। इस हिंसक झड़प में 7 लोगों की मौत हो गई।

7. पोस्ट पोल हिंसा को लेकर भी सुर्खियों में रहा बीरभूम

  • 2021 में विधानसभा चुनाव के बाद पूरे बंगाल में पोस्ट पोल हिंसा शुरू हुई। इसमें बीरभूम सबसे अधिक सुर्खियों में था। राजनीतिक हिंसा में यहां एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। वहीं डर से हजारों परिवार ने पलायन शुरू कर दिया था। CBI जांच के दौरान बीरभूम से कई आरोपियों को गिरफ्तार भी कर चुकी है।

8. बोगटुई गांव में आपसी संघर्ष में 10 जिंदा जले

  • यही सबसे ताजा विवाद है, जिस पर हाईकोर्ट तक एक्टिव हुआ है। बीरभूम जिले के रामपुरहाट्टा के पास बोगटुई गांव में 21 मार्च 2022 की रात दो गुटों के बीच लड़ाई में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया। इस घटना से पहले वहां एक स्थानीय तृणमूल नेता की मौत हो गई थी। सरकार ने मामले की जांच के लिए CID का गठन किया है। घटना में मरने वाले अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं।

बंगाल में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत 1970 में कांग्रेस और माकपा के बीच सत्ता संघर्ष से हुई। नब्बे के दशक में यह और भी अधिक तेजी से बढ़ी, जो अब तक निरंतर जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2018 में बंगाल में 12 हत्याएं हुईं हैं। उसी रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 50 हत्याएं 2009 में हुईं। वहीं, ममता सरकार ने 2019 से NCRB को राजनीतिक हत्या का आंकड़ा देना बंद कर दिया। पिछले 50 साल में बंगाल में कांग्रेस, CPIM और तृणमूल पार्टी सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक हिंसा का खेल बंद नहीं हुआ।

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