ज्योति जलाओ,ज्योति बुझाओ

इंडिया गेट पर पिछले पचास वर्षों से प्रज्ज्वलित...

ज्योति जलाओ,ज्योति बुझाओ

देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट पर पिछले पचास वर्षों से प्रज्ज्वलित हो रही अमर जवान ज्योति अब हमारे बच्चे नहीं देख पाएंगे क्योंकि अब इसे नवनिर्मित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में प्रज्ज्वलित की गयी ज्योति में विलीन कर दिया गया है। भारत सरकार का ये फैसला ऐतिहासिक है। भारत सरकार जो भी करती है ,वो ऐतिहसिक ही होता है। क्योंकि हमारी सरकार को इतिहास   से कुछ ज्यादा ही प्रेम है। यही प्रेम पुराने इतिहास को मिटाने और नया इतिहास लिखने में तब्दील हो गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस समेत बहुत से लोगों ने आपत्ति की है ,लेकिन इन तमाम आपत्तियों को उसी तरह खारिज कर दिया गया जिस तरह पिछले साल संसद में विवादास्पद कृषि क़ानून बनाते हुए विपक्ष की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था। आपत्ति करना विपक्ष का काम है और आपत्ति खारिज करना सरकार का काम है   दोनों अपना-अपना काम पूरी लगन से कर रहे हैं ,जनता केवल तमाशबीन है। असल सवाल ये है कि ये सब क्यों किया गया ? देश ने 1971के बाद किसी देश से कोई निर्णायक युद्ध नहीं लड़ा [कारगिल एक अपवाद है ]इसलिए अभी कोई नया युद्ध स्मारक बनाये जाने की जरूरत थी और तुक। बहरहाल सरकार ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बना लिया है ,173  करोड़ रूपये खर्च कर दिए हैं। इसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन इसके साथ ही इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को हटाने की घोर निंदा भी की जाना चाहिए।

आप कहेंगे की दोनों काम कैसे हो सकते हैं ? लेकिन हो सकते है।  गलत को गलत और सही को सही कहने का साहस देश की जनता में ,विपक्ष में होना चाहिए। स्मारक विस्थापन की चीज और विषय नहीं होते। वे जहाँ बन गए,वहां बन गए फिर अमर जवान ज्योति की स्थापना से हम अपने शहीद जवानों का सम्मान और स्मरण करा रहे थे ,किसी नेता का नहीं ,लेकिन हमारी सरकार को लगता था की इस स्मारक की वजह से लोगों को बार-बार 1971  का युद्ध और उसमें विजय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी याद आती हैं। पिछले पचास साल में देश और दुनिया ने इंडिया गेट पर ही अमर जवान ज्योति को प्रज्ज्वलित होते देखा है   एक तरह से ये स्मृतियों का अमित पुंज है ,इसे आप विलीन कैसे कर सकते हैं ? हैरानी की बात ये है कि सरकार अपने फैसले का विरोध होते देख अपने समर्थन के लिए पूर्व सैन्य अधिकारियों को भी अपना माउथपीस बना लेती  हैं।  पूर्व डीजीएमओ  और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया  ने कहा - आज बड़ा दिन है. इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के साथ विलय किया जाना अच्छा फैसला है. अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिलाने का समय गया था। सब जानते हैं कि ये युद्ध स्मारक आजादी के बाद 1971  में बनाया गया था इसलिए इसे अंग्रेजों द्वारा स्थापित करने और इसे उपनिवेश का  प्रतीक कहे जाने पर ही आपत्ति की जाना चाहिए।

दूसरे यदि इसे अंग्रेजों ने बनाया भी है तो क्या आप अंग्रेजों द्वारा बनाये गए हर स्मारक को मिटा देंगे ? संसद भवन गिरा देंगे,,सुप्रीम कोर्ट की इमारत ध्वस्त कर देंगे ? राष्ट्रपति भवन हटा देंगे ? शायद नहीं ,हाँ आप नया संसद भवन बना रहे हैं ,,अच्छा है लेकिन आपके पास इतनी ताकत नहीं है कि आप इंडोनेशिया की तरह अपनी नई राजधानी बसा लें। क्योंकि आपका ईमान आपका साथ नहीं देता। बहरहाल अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में आप इंडिया  गेट पर प्रज्ज्वलित हो रही अमर जवान ज्योति को जिस तरह निशुल्क और बेरोकटोक रात-दिन देख सकते थे वैसा राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में नहीं होगा। आपको टिकिट लेकर वहां जाना होगा और वो भी सरकारी दफ्तरों के लिए निर्धारित समय के अनुसार ही आप इसके दर्शन कर पाएंगे। सरकार नहीं चाहती कि आपके चेतन,अवचेतन में हर समय कोई ज्योति जलती रहे और आपको किसी ख़ास नेता के प्रति श्रद्धा से भरती रहे बिना युद्ध लड़े युद्ध स्मारक बनाने वाली हमारी मौजूदा सरकार को उसकी इस उपलब्धि के लिए बधाई देना चाहिए क्योंकि जो काम पिछली सरकारों ने पचास साल पहले किया था उसे हमारी लोकप्रिय सरकार ने सात साल के चिंतन के बाद एक पल में विलोपित कर दिया। हमारी सरकार ने जैसे अमर जवान ज्योति को किसी नयी ज्योति में विलीन किया है ठीक वैसे ही कुछ साल पहले काले धन को बाहर लाने के लिए अचानक नोटबंदी भी की थी   सरकार के फतवे के बाद प्रचलित तमाम नोट बाहर भी गए थे। कतारों में लगकर सैकड़ों लोग मारे भी गए थे लेकिन कालाधन बाहर नहीं आना था ,सो नहीं आया।

ठीक इसी तरह इंडिया गेट   से अमर जवान ज्योति भले ही विलीन कर दी गयी हो लेकिन अगले पचास साल तक ये ज्योति उस पीढ़ी के दिलों में जलती रहेगी जो 1971  के बाद जन्मी है। ये पीढ़ी जब तक जीवित रहेगी अपने आने वाली पीढी को बताती रहेगी की असली युद्ध स्मारक कौन सा है और किसने बनवाया था। इतिहास बनाने के लिए पुरषार्थ करना पड़ता है ,और ये हर किसी के बूते की बात नहीं होती। होती तो माननीय अटल बिहारी बाजपेयी कब का इतिहास बना गए होते,इस अमर जवान ज्योति को नयी ज्योति में विलीन करा गए होते। लेकिन वे तंगदिल नहीं थ।  उन्होंने 1971  के पुरषार्थ के लिए देश के जवानों और तत्कालीन प्रधानमंत्री के पुरषार्थ की खुले दिल से सराहना की थी। आज के प्रधानमंत्री तो मुंह में छाले होने के भय से अपने पूर्ववर्ती प्र्धानमंत्रियों का नाम तक नहीं लेते। देश के लिए शहीद होने वाले लोगों की समाधियों पर जाने में उन्हें डर लगता है लेकिन वे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने का हौसला रखते हैं। इसे प्रणाम किया जाना चाहिए। चूंकि मै भारतीय नागरिक   हूँ इसलिए अपनी सरकार के हरेक फैसले के साथ खड़ा होने के लिए प्रतिबद्ध हूँ लेकिन मेरे पास गलत को गलत और सही को सही कहने का भी अधिकार है ,इसलिए मै बिना लाग-लपेट के कहता हूँ कि सरकार का अमर   जवान ज्योति को विलोपित करने का फैसला सनक भरा है। इसके पीछे कोई दर्शन नहीं है ,ये शुद्ध राजनीतिक फैसला है ,इसलिए इसके भविष्य में बदले जाने की गुंजाइश है।

सरकार को ऐसे दूरगामी फैसले करना चाहिए जिन पर कोई उंगली उठा सके और जो विवाद के सीमेंट-गारे से बने हों। इंडियागेट पर बनाये गए युद्ध स्मारक पर पिछले पचास साल में किसी आपत्ति की और किसी ने इसे विद्रूप करने का दुस्साहस दिखाया। यहाँ नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करने से इतिहास   बदल  नहीं जाएगा। नेताजी की  प्रतिमा नए संसद भवन के सामने भी लगाईं जा सकती थी ,लेकिन नहीं इरादा तो कुछ और है,जिसे बेचारे नेताजी भी नहीं जानते ! आप सोचिये कि यदि कांग्रेस को इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक बनाकर इंदिरा गांधी को अमर बनाने का लक्ष्य होता तो कांग्रेस इंदिरा गाँधी के शहीद होने के बाद कभी भी वहां इंदिरा गाँधी की प्रतिमा लगा सकती थी ,कांग्रेस का हाथ रोकने वाला तब कोई नहीं था ,लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। कांग्रेस का मकसद अमर जवान ज्योति की पवित्रता को भंग कर नया इतिहास रचने का शायद था ही नहीं। कांग्रेस की सरकारों ने घोटालों के इतिहास जरूर रचे लेकिन ऐसा कोई बचकाना काम नहीं किया की उसकी जग हंसाई हो। कांग्रेस पर परिवारवाद का एक गंभीर   आरोप है ,लेकिन उसका अनुशरण आज हर राजनितिक दल में हो रहा है ,इसलिए उसे जाने दीजिये। और प्रार्थना कीजिये की इंडिया गेट पर से हटाई गयी अमर जवान ज्योति भविष्य में पुन: वहीं जलती दिखाई  दे। गलतियां सुधरने की गुंजाइश हमेशा बनी रहना चाहिए।

- राकेश अचल

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