भारत को जल्द मिलेगी एस-400 मिसाइल

चौतरफा दबाव के बाद भी नहीं झुकी मोदी सरकार…

भारत को जल्द मिलेगी एस-400 मिसाइल

नईदिल्ली। भारत को जल्द ही रूस से चर्चित एस-400 मिसाइल सिस्टम मिलने की उम्मीद है। इस मिसाइल सिस्टम से भारत की सुरक्षा प्रणाली अभेद्य हो जाएगी। अमेरिका द्वारा लगातार भारत पर दबाव बनाया जा रहा था कि वह इस मिसाइल सिस्टम की डील को रद्द कर दें, लेकिन मोदी सरकार किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकी और अब भारत के पास भी यह शक्तिशाली मिसाइल सिस्टम होगा। गौररतलब है कि S-400 Air Defence Missile System के लिए भारत और रूस के बीच 15 अक्टूबर, 2016 को समझौता हुआ था। यह सौदा करीब 40 हजार करोड़ रुपए का है। रक्षा समझौते के 5 वर्ष बाद भारत को यह मिसाइल सिस्टम रूस देने जा रहा है। भारत को S-400 Air Defence Missile System मिलने के भारत चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की चिंताएं काफी बढ़ गई है। 

वहीं अमेरिका भी लंबे समय से भारत पर इस मिसाइल सिस्टम को नहीं लेने का दबाव बना रहा है। दरअसल S-400 Air Defence Missile System का पूरा नाम नाम S-400 ट्रायम्फ है, जिसे नाटो देशों में SA-21 ग्रोलर के नाम से जाना जाता है। इस मिसाइल तकनीक को रूस ने विकसित किया है। यह मिसाइल सिस्टम जमीन से हवा में मार करने में सक्षम है। S-400 Air Defence Missile System को दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार माना जाता है। एस-400 दुश्मन के हवाई हमलों को तत्काल नाकाम कर देता है। S-400 Air Defence Missile System किसी भी संभावित हवाई हमले का पता पहले ही लगा लेता है। सेना आसानी से सतर्क हो जाती है। यह मिसाइल सिस्टम एक साथ 36 लक्ष्यों पर निशाना साध सकता है और 5 मिनट के अंदर तैनात किया जा सकता है। इसको आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। 

S-400 Air Defence Missile System अत्याधुनिक राडारों से लैस है। इसके अत्याधुनिक राडार 600 किमी की दूरी तक लक्ष्य को देख सकता है और उसे खत्म कर सकते हैं। सेटेलाइट से कनेक्ट रहने की वजह से जरूरी सिग्नल और जानकारियां तुरंत मिलती हैं। चीन ने पहले ही रूस से S-400 Air Defence Missile System खरीद चुका है। चीन के पास इस तरह के 6 सिस्टम हैं। उसमें से दो की तैनाती चीन ने LAC से पास कर रखी है। चीन ने भी S-400 Air Defence Missile System के लिए रूस से 2014 में सौदा किया था। रूस की सेना ने इस मिसाइल सिस्टम को 2007 में शामिल किया गया था। रूस से सबसे पहले तुर्की को इसकी आपूर्ति की थी। रूस ने इसे सीरिया में भी तैनात किया है।

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