जानें कैसे पड़ा Gwalior Fort स्थित गुरूद्वारे का नाम "दाता बंदी छोड़"

ग्वालियर में 52 राजाओं को साथ लेकर हुए थे रिहा और नाम पड़ गया…

जानें कैसे पड़ा ग्वालियर किले स्थित गुरूद्वारे का नाम "दाता बंदी छोड़"

ग्वालियर के दाता बंदी छोड़ गुुरुद्वारा की बात चले तो स्वभाविक है सिखों के छटवें और सबसे कम उम्र में गुरू बनने वाले हरगोविंद सिंह कानाम सामने आता है। क्योंकि उन्होंने अपनी सूझ बूझ के दम पर मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से 52 राजाओं को रिहा कराया था। उसी घटना के बाद उनका नाम दाताबंदी छोड़ पड़ा। सिर्फ इसी घटना के लिए सिख समुदाय में उनका विशेष स्थान नहीं है। वह पहले गुरू थे जिन्होंने सिख सेना की नींव रखी थी। सिखों को सेना के रूप में संगठित करने का श्रेय भी उनको ही जाता है। 

1621 में हुई 52 राजाओं को अपने साथ रिहा कराने वाले गुरू हरगोविंद सिंह को दाताबंदी छोड़ नाम क्यों दिया गया और उनके किले स्थित गुरुद्वारे के बारे में जानते हैं कुछ अहम बातें। गुरु हरगोविंद सिंह का जन्म अमृतसर में वड़ाली गांव में माता गंगा और पिता अर्जुन देव के यहां 18-19 जून 1595 को हुआ था। 11 साल की उम्र में सन 1606 में उन्हें गुरु की उपाधि मिल गई थी। इसलिए उनको बच्चा गुरु भी कहा जाता है। उनको अपने पिता पांचवें गुरु अर्जुन देव से उपाधि मिली थी हरगोविंद सिंह जी को धर्म में वीरता की नई मिसाल जगाने के लिए भी जाना जाता है। वह अपने साथ सदैव मीरी और पीरी नाम की दो तलवारें धारण करते थे। एक तलवार धर्म के लिए और दूसरी धर्म की रक्षा के लिए। 

मुगल शासन के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई तब गुरु हरगोविंद सिंहजी ने सिखों का नेतृत्व संभाला एक नई क्रांति को जन्म दिया और आगे चलकर सिखों की विशाल सेना के लिए आधार दिया। गुरु गोविंदसिंह की मृत्यु 1644 पंजाब के कीरतपुर में हुई थी। गुरु हरगोविंद सिंह को दाता बंदी छोड़ नाम देने के लिए ग्वालियर के किले पर हुई वह घटना है तो आज से 400 साल पहले 1621 में घटी थी। मुगल बादशाह ने गुरु गोविंदसिंह जी को मुगल शासन की खिलाफत करने पर ग्वालियर किले पर बंदी बनाकर रखा था। 

मुगल शासन काल में ग्वालियर किले का उपयोग बंदीगृह के रूप में होता था। इसकी बनावट और पहाड़ी पर बने होने के कारण यह काफी सुरक्षित था। यहां से इतिहास में कभी कोई बंदी भाग नहीं सका था। गुरु जी के साथ यहां देश के विभिन्न इलाकों के 52 राजपूत राजा भी बंदी थी। करीब 2 साल 3 महीने तब गुरु हरगोविंद सिंह यहां रहे। इसके बाद लगातार मुगल बादशाह जहांगीर का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। उन्हें सपने में एक फकीर गुरु को रिहा करने का आदेश देते थे। जब जहांगीर ने गुरु जी को रिहा करने का निर्णय लिया तो वह अपने साथ बंदी 52 राजाओं को रिहा करने पर अड़ गए। जहांगीर को पता था यह 52 राजा छोड़ना खतरनाक हो सकता है। इस पर मुगल सल्तनत ने एक योजना बनाई। 

ऐलान किया कि बंदी राजाओं में जो गुरु हरगोविंद के दामन को थामकर बाहर आ सकेंगे उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। इसके लिए गुरु हरगोविंद साहब ने एक युक्ति निकाली उन्होंने जेल से रिहा होने से पहले नए कपड़े पहनने के नाम पर 52 कलियों का अंगरखा सिलवाया और जब गुरु की रिहाई हुई 52 राजा एक-एक कलियां पकड़कर उनके साथ रिहा हुए। तभी से गुरु हरगोविंद की सूझबूझ और समझदारी के कारण उनको दाता बंदी छोड़ के नाम से भी जाना जाता है। सिखों के सेवादार देवेन्द्र सिंह ने बताया कि साल छटवें गुरु हरगोविंद सिंह को 1600 ईसवी में ग्वालियर किले पर बंदी बनाकर मुगल शासन काल में रखा गया था। सन 1621 में वह 52 राजाओं को लेकर रिहा हुए थे। वहीं से उनको दाता बंद छोड़ नाम मिला। 

उनके इस घटनाक्रम और किले पर बंदी रहने के स्मारक के तौर पर संत बाबा अमर सिंह के द्वारा सन 1968 में ग्वालियर किले पर गुरुवार दाताबंदी छोड़ का निर्माण कराया गया। गुरुद्वारा में 100 किलो सोना लगा है। गुरुद्वारा की छत पर 25 फीट पर एक सोने का गुंबद है और चार 14-14 फीट के गुंबद हैं। सेवादार देवेन्द्र सिंह ने बताया कि इस वर्ष दाताबंदी छोड़ की घटना को 400 साल पूरे हो रहे हैं। इसलिए ग्वालियर किला स्थित गुरुद्वारा दाताबंदी छोड़ पर 4 से 6 अक्टूबर के बीच तीन दिवसीय विश्वस्तरीय उत्सव मनाया जा रहा है। जिसमें देश के साथ विदेश से भी लोग शामिल हो रहे हैं। इसके लिए सारे इंतजाम पूरे किए जा रहे हैं। चार अक्टूबर को प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह भी कार्यक्रम में शामिल होंगे।

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