हां है किसान अन्नदाता, लेकिन...

हां है किसान अन्नदाता, लेकिन...

लेकिन देश को चलाने और दैनिक जीवन के लिए हर एक प्रोफेशन (कार्य करने वाले हर व्यक्ति का) योगदान भी उतना ही है जितना कि किसान का,

इसलिए किसान स्वयं संप्रभु नहीं ...

जब देश के प्रधानमंत्री को भरे मंच से गालियां दी जाती हैं, उनकी कब्र खोदने के नारे लगाये जाते हैं , तो यह प्रधानमंत्री का अपमान नहीं बल्कि पूरे देश के 140 करोड़ जनता का अपमान होता है क्योंकि प्रधानमंत्री को देश की जनता ने चुना है। 

गांव से महिलाओं को ट्रैक्टर में बिठाकर दिल्ली  बार्डर पर मोदी को गालियां दिलवा सकते हैं,

तो हम अपने विचार रखने में क्यों हिचकें। 

देश हम सबका है आपका भी है और मेरा भी है।

इस आंदोलन के पीछे आंदोलनकारियों का मकसद क्या है या तो हमें स्पष्ट पता नहीं, लेकिन खेती से जुड़ा हुआ मुद्दा तो कतई नहीं लगता। क्योंकि पढ़ा लिखा आदमी जानता है कि इन कानूनों से किसान की आय या उसके व्यवसाय पर कोई नकारात्मक फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन इस आंदोलन की वजह से जहां यह आंदोलन चल रहे हैं वहां के लोगों को घोर कष्ट हो रहा है ,वो सब भी हमारे आत्मीयजन हैं इसी देश के निवासी हैं फिर उन्हें किस बात की सजा इस आंदोलन आंदोलन की वजह से दी जा रही है।

सरकारें  आती जाती रहती हैं । 9-10  महिने से सुन सुन कर कान पक गए, किसान,

किसान,

किसान,

देश का अन्नदाता है, 

पालनहार है।

किसान खेती नहीं करेगा तो देश भूखा मर जायेगा।

हां है,बिल्कुल है अन्नदाता ....

पर  ऐसे तो जो भी जो व्यक्ति कार्य करता है उसकी अबश्यकता होती है, डॉक्टर डाक्टरी ना करे, मास्टर मास्टरी ना करे, टेलर कपड़े ना सिले, सिपाही रक्षा ना करे...अनगिनत कार्य है ।

कोई मुझे ईमानदारी से बतायेगा कि यदि किसान खेती नहीं करेगा तो किसान का परिवार बचेगा?

उसके परिवार का लालन पालन हो जायेगा?

उसके बच्चों की फीस कपड़े दवाई सब कहां  से आयेगा ? कपड़े कहाँ से लाएगा, अन्य आवश्यकता की वस्तुएँ कहाँ से लाएगा, 

मानते हैं वो कड़ी मेहनत करके अन्न उगाता है तो क्या मुफ्त में बांटता है?

बदले में उसका मूल्य नहीं लेता क्या?

फिर वह दुनिया का पालनहार कैसे माना जाये?

दुनिया का हर व्यक्ति रोजगार करके चार पैसे कमा कर अपना परिवार पालता है।और प्रत्येक कार्य का अपनी जगह अपना महत्व है ..।

तो किसान का रोजगार है खेती करना।

कोई प्रोपर्टी का धन्धा करता है,

तो कोई हीरो होन्डा आदि की ऐजेन्सी लिये बैठा है,

तो कोई रोड़ी बदरपुर सीमेंट ही बेच रहा है।

और नहीं तो मुर्गा फार्म खोले बैठा है यानि सबसीडी के चक्कर में जोहड़ में मछली ही पाल रहा है।

उन्हें क्या किसान कहेंगे? 

36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है,

6000 वार्षिक खाते में में आ रहे हैं,

माता पिता पैन्शन ले रहे हैं,

आये गये साल कर्जे माफ करा लेते हैं,

फिर कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी।

किसी रिक्शा वाले की,

किसी ऑटो वाले की,

किसी नाई की,

किसी दर्जी की,

किसी लुहार की,

किसी साइकिल पेन्चर लगाने वाले की,

किसी रेहड़ी वाले की,

ऐसे न जाने कितने छोटे रोजगारों की कोई सबसिडी आई है आज तक?

किसी का कर्जा माफ हुआ है आज तक? क्या ये लोग इस देश के वासी नही हैं?

कल को ये भी आन्दोलन करके कहेंगे देश के पालनहार हम ही हैं।

रही बात MSP की तो कल को हलवाई कहेंगे

सरकार हमारे समोसे की एम एस पी 50 रुपये निश्चित करे।

चाहे उसमें सड़े हुए आलु भरें।

हमारे सब बिकने चाहियें।

नहीं बिके तो सरकार खरीदे,

चाहे सूअरों को खिलाये।

हमें समोसे की कीमत मिलनी चाहिए ।परसों बिरयानी वाले कहेंगे एक प्लेट बिरयानी 90 रुपये एम एस पी रखो चाहे उसमें कुत्ते का मांस डालें या चूहों का सब बिकनी चाहिये।

जो नहीं बिके उसे खट्टर और दुष्यंत खरीदें और पैसे सीधे हमारे खाते में जमा हों।

ये सब तमाशा नहीं तो क्या हो रहा है।

दिल्ली में जो त्राहि त्राहि हो रही है,

ना दूध पहुंच रहा है,

ना सब्जी पहुंच रही है,

ना कर्मचारी समय पर पहुंच पा रहे हैं उनकी ये दशा बनाने का क्या अधिकार है इन तथाकथित किसानों का?

सत्य कड़ुवा होता है

पंजाब वाले घेराव करें अपने मन्त्रियों का और हरियाणा वाले अपने मन्त्रियों का अपनी माँगो के लिए राज्य सर कार के द्वारा केन्द्र सरकार पर दवाब बनाये!

दिल्ली को घेर कर आम आदमी को क्यों परेशान किया जा रहा है ? ये कृषि कानून किसानों को बाध्य तो नहीं कर रहे हैं कि उन कानूनों का पालन करें। किसान उन्हें मानने या ना मानने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं और फिर कुछेक प्रांतों के किसान ही क्यों इसका विरोध कर रहे हैं बाकी प्रदेशों में तो शांति है। आम जनता को परेशान होते देखकर यह एडीटोरियल लिखा जा रहा है। क्या राकेश टिकैत और उसके साथ बैठे चंद तथाकथित किसान सरकार पर अनुचित दबाव बनाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं ये आप स्वयं सोचें।

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