WRESTLING : मिट्टी मैं कुश्ती लड़ते समय मन शांत रहता है जबकि गद्दे पर वो बात नहीं : लालचंद पहलवान

कम से कम एक खिलाड़ी तो प्रतिवर्ष दे ही सकते हैं…

मिट्टी मैं कुश्ती लड़ते समय मन शांत रहता है जबकि गद्दे पर वो बात नहीं  : लालचंद पहलवान

ग्वालियर। नाग पंचमी के दूसरे दिन छठ के अवसर पर तारागंज स्थित जयशंकर रमली का अखाड़ा में सालों से प्रतिवर्ष कुश्ती की परंपरा चली आ रही है ठेठ देसी स्टाइल में मिट्टी के खेल मैदान पर होने वाली है कुश्ती देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां एकत्रित होते हैं और यह परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। लेकिन पिछले वर्ष कोरोनावायरस चलते इस आयोजन को स्थगित कर दिया गया था इस साल भी वही स्थिति रही और कोरोना के चलते यहां संकेतक कुश्ती का आयोजन किया गया। जिसमें कुछ पहलवानों ने सांकेतिक रूप से कुश्ती का प्रदर्शन किया और कुश्ती का लुफ्त स्थानीय लोगों ने ही उठा पाया। इस अखाड़े का संचालन करने वाले लालचंद पहलवान का कहना है कि वे पिछले छह दशक से यहां कुश्तियों का आयोजन करवाते आ रहे हैं इससे पूर्व उनके पूर्वज यहां कुश्ती का आयोजन करते थे लेकिन अखाड़े की वर्तमान हालत ठीक नहीं है।  

इन हालत को देखते हुए वह भी संतुष्ट नहीं है उनका कहना है कि अखाड़े की हालत देखकर यहां सीखने के लिए ज्यादा लड़के भी अब नहीं आते हैं। उन्होंने दूसरा कारण लड़के कम होने का बताया कि आजकल जो कुश्तियां होती है वे गद्दे पर और मेटी पर होती हैं और मिट्टी में कोई कुश्ती लड़ना ज्यादा पसंद नहीं करता है जबकि मिट्टी में कुश्ती लड़ने पर खिलाड़ियों का मन मस्तिष्क पूरी तरह जागृत रहता है जबकि गद्दे पर वह बात नहीं होती है। उन्होंने सरकार के द्वारा पुराने अखाड़ों की उपेक्षा किए जाने पर भी दुख जताया। पहलवान लालचंद जी ने दुख जताते हुए कहा कि मेरी तो अब उम्र हो चुकी है हाथ-पैर जवाब दे गए हैं।  

इसलिए अब मेरा यह दायित्व मेरा लड़का संतोष गौड संभाल रहा है जब संतोष गौड से हमने कुश्ती के बारे में चर्चा की तो उन्होंने भी सरकार से उम्मीद रखते हुए कहा है कि सरकार यदि मदद करें तो वह इस खेल को बहुत आगे ले जा सकते हैं और ओलंपिक जैसे खेलों के लिए कम से कम एक खिलाड़ी तो प्रतिवर्ष दे ही सकते हैं। यहां हम आपको बता दें कि संतोष एक पहलवान होने के साथ-साथ एक अच्छे क्रिकेटर भी हैं जिन्होंने देश विदेश में ग्वालियर का काफी नाम रोशन किया है जिसकी गवाही मैं रखे यह तमाम मेडल और ट्रॉफियां दे रहे हैं जो शायद ही ग्वालियर में किसी अन्य खिलाड़ी के पास इतनी बड़ी तादाद में हों। लेकिन सन्तोष को भी इस बात का मलाल है कि उनकी ऊंची पहुंच न होने, पैसा वा पावर ना होने के कारण मध्य प्रदेश की टीम से  और इंडिया की टीम से नहीं खेल पाए। मलाल के साथ-साथ संतोष का यह भी कहना है कि वह भले ही वह ना खेल पाए हो लेकिन खिलाड़ियों को प्रशिक्षित अवश्य करते रहेंगे हो सकता है बे खिलाड़ी आगे जा कर मध्य प्रदेश या इंडिया के लिए खेलें।

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