Tricolor : तिरंगे की भारत यात्रा…

6 बार बदला राष्ट्रीय ध्वज

तिरंगे की भारत यात्रा…

नई दिल्ली। भारत देश स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मनाने की तैयारियों में जुटा है. देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी. इस दिन हम अपने राष्ट्र गौरव तिरंगे को सम्मान देते हैं, साथ ही उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद करते हैं जिनकी वजह से भारत को आजादी मिली थी लेकिन क्या आप जानते हैं भारत को आजादी मिलने से 23 दिन पहले संविधान सभा ने देश के आधिकारिक झंडे तिरंगे का अंगीकार किया था. इस ध्वज को ही देश के आधिकारिक झंडे के रूप में अपनाया गया था. तिरंगे में तीन रंग होते है इसलिए इसे तिरंगा कह जाता है. इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियां होती हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है.

1906 - भारत का गैर आधिकारिक लेकिन पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (अब कोलकाता) में फहराया गया था. इस झंडे को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था. 

1907 - भारत के दूसरे झंडे को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ कुछ क्रांतिकारियों की ओर से फहराया गया था. यह हमारे पहले ध्वज के ही समान था, लेकिन इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे जो सप्तऋषि को दर्शाते हैं. यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित हुआ था.

1917 - भारत का तीसरा झंडा 1917 में आया और इसे डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया गया था. इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां के साथ एक और सप्तऋषि के सात तारे थे. वहीं बांई और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था. साथ ही एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था.

1921 - पांच वर्षों तक तकरीबन 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज के बारे में गहराई से रिसर्च करने के बाद 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में पिंगाली वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में सबसे पहले अपनी संकल्पना को पेश किया. उस ध्वज में दो रंग थे- लाल और हरा. ये क्रमश: हिंदू और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे. दूसरे धर्मों के लिए महात्मा गांधी ने इसमें सफेद पट्टी को शामिल करने की बात कही. इसके साथ ही यह सुझाव भी दिया कि राष्ट्र की प्रगति के सूचक के रूप में चरखे को भी इसमें जगह मिलनी चाहिए. 

1931 - 1931 में भारत का चौथा राष्ट्र ध्वज 10 सालों तक अस्तित्व में रहा. 1931 में हिंदुस्तान को एक बार फिर नया राष्ट्रध्वज मिला. चौथे राष्ट्रध्वज की तरह ही पांचवे राष्ट्रध्वज में भी चरखे का महत्वपूर्ण स्थान रहा. हालांकि रंगों में इस बार रंगों में परिवर्तन हुआ. चरखा के साथ ही केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग का संगम रहा. इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) ने औपचारिक रूप से इस ध्वज को अपनाया था.

उसके अगले एक दशक के बाद 1931 में तिरंगे को कुछ संशोधनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. इसमें मुख्य संशोधन के तहत लाल रंग की जगह केसरिया ने ले ली. हिंदू धर्म में केसरिया रंग को साहस, त्याग, बलिदान और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है. उसके बाद 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इसे अंगीकार किया. आजादी के बाद भारत की आन-बान-शान की नुमाइंदगी का ये प्रतीक बना. हालांकि बाद में इसमें मामूली संशोधनों के तहत रंग और उनके अनुपात को बरकरार रखते हुए चरखे की जगह केंद्र में सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल किया गया.

दरअसल तिरंगे के बीच में जो चक्र हैं उसे सम्राट अशोक की विजय का प्रतीक माना जाता है. इस नीले रंग के चक्र को धर्म चक्र भी कहा जाता है. जिसे भारत की विशाल सीमाओं का प्रतीक माना गया, क्योंकि अशोक सामाज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक फैला हुआ था.

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