यह एक ऐसी SMART CITY है, जहां स्मार्ट जैसा भी कुछ है !

ग्वालियर। यूं तो ग्वालियर शहर को स्मार्ट सिटी में शामिल हुए लगभग साढ़े 4 साल का समय होने जा रहा है । लेकिन इन साढ़े 4 सालों में शहर के अंदर स्मार्ट सिटी के नाम पर जो भी काम हुआ है वह काम केवल कुछ पार्कों या पुरातत्व महत्व की बिल्डिंग की साफ-सफाई रंग रोगन, पुराने पार्को की बाउंड्री वॉल का रिनोवेशन करवाना, पुराने फुटपाथ को हटाकर नया पत्थर लगाना या टाइल्स से सजाना। रोड डिवाइडर को दोबारा प्लास्टर करना या उस पर दोबारा रंग रोगन करवाना। शहर की सड़कों पर स्मार्ट साइकिल दौड़ाने के लिए साइकिल ट्रैक बनाना और फिर उस पर साईकिल दौड़ाने का ख्वाब शहर वासियों को दिखाना। 

हालांकि इंटेक्स पर साइकल एक भी दिन नहीं दौड़े हां साइकिलें जरूर है लेकिन केवल 20 से 25 परसेंट साइकलो का उपयोग किया जा रहा है वह भी शहर की सड़कों पर ट्रैफिक के साथ-साथ।साइकिल ट्रैक के ऊपर एक भी साइकिल कभी चलती दिखाई नहीं देती है इस स्मार्ट सिटी में। जिस स्वर्णरेखा में वोट चलनी थी वह स्वर्णरेखा ही आज नाले के रूप में तब्दील हो गई है जबकि इसके पानी को रिसाइकल करने के लिए जल विहार में प्लांट लगाया था वह प्लांट भी आज धूल खा रहा है। बायजाताल में नाव (वोट) चलवाने के लिए लाखों रुपए खर्च  कर उसमें वोट दाल दी गई लेकिन उन वोट में बैठने वाले सैलानी नदारद है कारण सीवर एक गंदा पानी जिस की बदबू की वजह से उसमें कोई वोटिंग करना ही नहीं चाहता है। तो यहां भी स्मार्ट शहर में स्मार्ट वोटिंग के नाम पर जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई जो टैक्स के रूप में शासन को मिलती है उसे निपटा दिया गया।

इसी प्रकार शहर में स्मार्ट सिटी के नाम पर ठंडा आरो वाटर (पेयजल)उपलब्ध कराने के लिए कुछ स्थानों पर वाटर डिस्पेंसर मशीनें लगाई गई थी जहां से कुछ पैसे देकर आमजन को पीने का पानी उपलब्ध करवाने की बात की जा रही थी। लेकिन उन वाटर डिस्पेंसर मशीनों की क्या स्थिति है या आप इस फोटो के माध्यम से लगा सकते हैं। शहर में हवा का स्तर सुधारने और हवा में पाल्यूशन की स्थिति मापने के लिए जगह जगह पाल्यूशन टेस्ट मशीन लगाई गई थी लेकिन उन मशीनों से कैसे ग्वालियर का पाल्यूशन स्तर सुधरा या ग्वालियर के पोलूशन पोलूशन स्तर की क्या स्थिति है कोई बताने वाला नहीं है। कचरा डंपिंग जोन को पार्कों के रूप में विकसित करने और यहां आकर जोन भी बनाया गया लेकिन उस होकर जोन में और उस पार्क में ना तो कोई दुकानदार पहुंचा ना ही शहर के नागरिक इसकी वजह होकर जॉन के आसपास फैली गंदगी और कचरे के ढेर हैं। तो यह पैसा भी गया डंपिंग जोन में...

शहर वासियों को स्मार्ट सिटी बसों का ख्वाब तो स्मार्ट सिटी प्रबंधन द्वारा दिखाया गया लेकिन दे बसें शहर की सड़कों पर इतनी संख्या में दिखाई नहीं पड़ती जितनी की स्मार्ट सिटी में या चलाने की बात कई गई थी। केवल इक्का-दुक्का बसे हैं चल रही है। शहर की सड़कों पर रेंगता हुआ ट्रैफिक, अनियंत्रित ट्रैफिक लाइटें, सड़कों पर घूमते आवारा पशु, बेतहाशा संख्या में दौड़ते विक्रम ऑटो और इलेक्ट्रिक सवारी वाहन, मुख्य 2-4 सड़कों को छोड़कर अधिकतर सड़कें अमृत योजना के नाम पर खोद दी गई है जिनका मेंटेनेंस स्मार्ट सिटी का मुंह ताक रहा है। दम तोड़ता कचरा प्रबंधन सड़कों गलियों में लगे कचरे के ढेर उफनती नालियां बहता सीवर ग्वालियर की पहचान बन चुका है।

स्मार्ट सिटी के नाम पर अगर ग्वालियर में कोई काम हुआ है तो केवल स्मार्ट सिटी का बनाया गया स्मार्ट ऑफिस, छत्री मंडी लेडीज पार्क, बारादरी लेडीज पार्क, नेहरू पार्क, गांधी पार्क, अंबेडकर पार्क और चौराहों पर लगाए गए स्कल्पचर महाराज वाले की बिल्डिंगों का रिनोवेशन, विक्टोरिया मार्केट मे तैयार म्यूजियम, गोरखी स्कूल और स्काउट एंड गाइड की बिल्डिंग मे नव निर्माण, छतरी मंडी खेल मैदान और कटोरा ताल और थीम रोड के दोनों तरफ पहले राजस्थान से मंगाए गए महंगे लाल पत्थर से फुटपाथ बनवाया गया जो ठीक था कि स्थिति में था लेकिन अब उसे उखाड़ कर के दोबारा से उस पर सफेद पत्थर लगवाया जा रहा है खेत लाल और सफेद पत्थर में फर्क क्या है और जनता को इससे क्या लाभ होने वाला है यह कोई बताने वाला नहीं है। अभी तक शायद अन्य कुछ और कार्य स्मार्ट सिटी के द्वारा कराए गए हो जिनसे कि आमजन को इन कार्यों का आमजन को लाभ मिल रहा हो। अभी तक कराए गए ये ऐसे कार्य हैं जिनसे आमजन को सीधा-सीधा क्या फायदा हो सकता है ! 

अगर अधिकारियों को वाकई में शहर को स्मार्ट बनाना तो उसे आमजन और उसकी दैनिक जरूरत जिन संसाधनों से पूरी होती हैं वह उन्हें बिना वक्त गंवाए उपलब्ध हो जाएं । उसके पास सार्वजनिक आवागमन के अच्छे संसाधन हों। ट्रैफिक जाम से मुक्ति मिल जाए। पुलिसिंग व्यवस्था ठीक हो। बिजली पानी की सप्लाई व्यवस्था सुव्यवस्थित हो। सीवर सफाई कि कभी समस्या ना रहे। स्वास्थ्य शिक्षा की व्यवस्था ठीक हो जाए आदि सहित आमजन की इन सभी ज़रूरतों पूर्ति जिस दिन निर्बाध रूप से होने लगेगी उस दिन ग्वालियर वास्तविक रूप से स्मार्ट सिटी बन जाएगा। और आज की परिस्थितियों को देखते हुए तो हम या दावे के साथ कह सकते हैं कि ग्वालियर इस श्रेणी में तो कतई नहीं है। स्मार्ट सिटी के नाम पर शासन प्रशासन के द्वारा आमजन के बीच यह उम्मीद जगाई गई थी कि  उन्हें 24 घंटे पानी मिलेगा, लेकिन आज भी कई इलाकों में 1 दिन छोड़कर के पानी मिल रहा है।

शहर की साफ-सुथरी धूल रहित सड़कों का सपना, शहर के तमाम बाजारों को व्यवस्थित तरीके से लगवाया जाना, बाधारहित ट्रैफिक का सपना, स्मार्ट सफर के लिए स्मार्ट बसों का सपना, बगैर कटौती के सातों दिन 24 घंटे विद्युत सप्लाई, रोपवे, स्वर्णरेखा और वैजा ताल में वोट की सैर करवाने जैसे तमाम सपने ग्वालियर की जनता को दिखाए गए थे। शहर की जनता ने इस प्रोजेक्ट से उम्मीद लगाई थी कि उसे यह सब इन 5 सालों के अंदर मिल जाएगा लेकिन इस प्रोजेक्ट के तहत हुआ जस्ट इसका उल्टा। अभी तक स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जो कार्य किए गए या करवाए जा रहे हैं यह कार्य जनता की प्राथमिक जरूरत में शामिल नहीं है यह सेकेंडरी आते हैं। 

जैसा कि देखा गया है कि इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत जो कार्य चल रहे हैं उनमें मुख्यता पार्कों की बाउंड्री वाल तोड़कर फिर से नये सिरे से बनवाना, डिवाइडर तोड़कर फिर से नये सिरे से बनवाना, चौराहों तोड़कर फिर से नये सिरे से बनवाना, निगम व ट्रैफिक पुलिस के द्वारा ट्रैफिक नियंत्रित करने वाले ट्रैफिक लाइटों और सिक्योरिटी के लगाए गए कैमरों को हटाकर स्मार्ट सिटी कारपोरेशन के द्वारा उसी जगह फिर दोबारा नई लाइट और कैमरे लगवाना। इनमें से कई लाइट्स बंद हैं और कुछ तेज आंधी को सहन नहीं कर सकीं और अब  डायरेक्शन ही गलत बता रहीं हैं। नगर निगम की गैंट्रीज को हटाकर के स्मार्ट सिटी के नाम के गैंट्रीज लगवाना। 

पानी के एटीएम लगाये फिर हटा दिये। फुटपाथों पर पहले साधा टाइल्स लगाना फिर उन्हें हटाकर कलरफुल टाइल्स लगाना। लाल पत्थर को हटाकर अब दूसरा पत्थर लगाए जाने की प्लानिंग। जबकि पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता जी के समय में फुटपाथों पर यह सब काम पहले ही किए जा चुके हैं। तो फिर इन कामों पर फिजूलखर्ची अब पैसे की बर्बादी नहीं तो और क्या है और ये सब क्यों ? वह भी ऐसे समय जब पूरी दुनिया कोविड जैसी महामारी के चलते आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है इसके बावजूद भी इस प्रकार के बगैर किसी प्लानिंग जा रहे कामों पर पैसे की बर्बादी का खामियाजा आखिरकार भुगतना तो आमजन को ही पड़ेगा क्योंकि वसूली तो विभिन्न प्रकार के टैक्स लगाकर इस खर्चे की आमजन से ही की जानी है।

 जनता के पैसे से बनाई जाने वाली सड़कों पर यातायात ठीक से चल भी नहीं पाता कि दोबारा खुदवाकर ठेकेदारों को फायदा दिलाने के लिए  उन्हें दोबारा से ठेका दे दिया जाता है। एक सवाल जिसका जवाब नगर निगम कभी भी नहीं दे पाता वह सवाल यह है कि आखिर जब एक सड़क को बनाया जाता है तो नगर निगम यह विचार क्यों नहीं करता कि इसका सही मैप क्या होना चाहिए ताकि इसे दोबारा से तोड़कर बनाना ना पड़े लेकिन नगर निगम के द्वारा अपने निजी ठेकेदारों को अना धुंध पैसा कमाने के लिए एक तरकीब सोची गई है।

स्मार्ट सिटी द्वारा पडाव चौराहे एवं विभिन्न चौराहों पर लगाई गई ट्रेफिक लाइट व कैमरों की हालत खराब है। जिसके कारण यातायात नियमों का पालन करने वाले भी जुर्माने का शिकार हो रहे हैं। गलत डायरेक्शन, अनियंत्रित टाइमिंग से चौराहों पर कई बार ट्रेफिक लाइटें एक साथ लाल व हरी हो जाती है जिसमें हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है। जिसमें यातायात नियमों का पालन करने वाले भी परेशान हो रहे हैं और बेवजह जुर्माने की सजा भोग रहे हैं। इस गफलत के चलते आमजन ही नहीं कई  पुलिस वालों की गाडियों पर भी जुर्माना लग चुका है। 

जिस प्लानिंग के तहत बार-बार शहर में पहले तोड़ो फिर बनाओ फिर तोड़ो और फिर बनाओ फार्मूले पर काम किया जा रहा है इससे तो ऐसा ही लगता है कि जनता के द्वारा दिया गया टैक्स के रूप में पैसा नगर निगम अपने ठेकेदारों को भरपेट खिलाती है इससे निगम के आला अधिकारियों को घूस का पैसा तो पहुंच ही जाता है साथ ही साथ ठेकेदारों के पास मोटी कमाई हो जाती है ऐसा हम नहीं कहते ऐसा आम जनता का कहना है हमने इस मामले की पड़ताल करने के लिए जब निगम ऑफिस गए तो वहां पर हमने आयुक्त महोदय से इस विषय पर बात करने का भरसक प्रयास किया परंतु आयुक्त महोदय अपने केबिन में कभी भी मिलते नहीं है इसके बाद में हम ने प्रयास किया कि नगर निगम के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से इस विषय पर बात करने का प्रयास किया वे भी अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आए। 

ग्वालियर नगर निगम और स्मार्ट सिटी जनता के ठेकेदार नेता और नगर निगम के दामाद कहे जाने वाले ठेकेदार अपनी मनमर्जी से स्मार्ट सिटी के नाम पर जनता की गाड़ी खून पसीने की कमाई को दिन-रात लूट रहे हैं। स्मार्ट सिटी के काम तो नहीं दिखे लेकिन उन कामों के बदले जो प्रतिक्रिया होने वाली है वह जरूर लाकडाउन समाप्त होने के बाद दिखाई देगी। यानी कि जनता पर बेतहाशा tax की मार।

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