कहो तो कह दूँ
धीरे धीरे "खांस" कोई सुन न ले…
सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी "गोरा काला" जिसमें राजेंद्र कुमार और हेमा मालिनी हीरो हीरोइन थे, उस फिल्म का "आनंद बक्शी" का लिखा हुआ गाना बड़ा मशहूर हुआ था जिसके बोल थे "धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले, सुन न ले कोई सुन न ले" l कई बरस बीत गए उस गाने को लेकिन आज की तारीख में वो गाना हर आदमी पर फिट बैठ रहा है, हालत ये है कि हर आदमी अब खांसने से डरने लगा है उसे पता है कि यदि वो खाँसा तो समझ लो घर वालो ने उसे कोरोना पीड़ित मान कर कमरे में बंद कर दिया, हालत ये है कि जिस किसी को किसी भी कारण से खांसी आ रही है वो हर संभव कोशिश करता है की खांसी दब जाए उसे खाँसना न पड़े, ऐसे ही हालात "छींक" के भी है आप दो चार बार क्या छींके घर वालों ने ने आपको "कोविड सेंटर" रवाना किया l
पहले के ज़माने में लोग बाग़ कहा करते थे कि जब बड़े बूढ़े घर में घुसते थे थे तो खांसते थे ताकि घर की बहुएं पर्दा कर लें , आज यदि कोई बूढा खांसता है तो बहुएं समझती है "बुढ्ढा" गया काम से l कई बहुएं तो अपने पतियों से कहने लगी हैं पिछले कमरे में नहीं जाऊंगी और गाती हैं "न बाबा न बाबा पिछवाड़े बुढ्ढा खांसता" हालात ऐसे हो गए हैं कि कोरोना ने घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है, किसी से हाथ मिलाने पर बंदिश, गले मिलने पर रोक, बात करने पर रोक, क्योकि उससे कोरोना के वायरस एक दूसरे पर हमला कर सकते हैं अब पता लगा है कि कोई "ब्लेक फंगस" भी नया आ गया है यानि अब एक दूसरे को देखने पर भी बंदिश लगने वाली है, अब आदमी अकेला करे भी तो करे क्या, खांसी की इच्छा होती हैं तो चुपचाप छत पर अकेले में धीरे धीरे खांस कर वापस आ जाता है या फिर घर के सामने की रोड पर निकल जाता है लेकिन वंहा भी डर है कि कंही दूसरा आदमी खांसता न मिल जाए l
अपन ने भी कई रोग देखे है लेकिन ऐसा दुश्मनी वाला रोग तो पहली बार आया है, मास्क के चक्कर में कोई किसी को पहचान नहीं रहा है कहो बगल से "बीबी" निकल जाए और दूसरे की समझ कर उसे छेड़ दे और फिर घर में आकर "लपोड़ा" खाएं l पता नहीं भगवान् ने ऐसा कौन सा रोग धरती पर भेज दिया है कि हर आदमी हलाकान है किसी की सुगंध और दुर्गन्ध पहचानने की शक्ति गायब हो गयी तो किसी को खाने पीने में स्वाद ही नहीं आ रहा है, कितना ही स्वादिष्ट भोजन दे दो उसे वो ऐसा मुंह बना कर खाता है जैसे उसे "घास फूस" खाने दे दिया होl अपनी तो "सायलेंसर" बनाने वाली कंपनियों को एक सलाह हैं कि जल्द से जल्द ऐसा कोई "सायलेंसर" बना दो जिसे गले में फिट किया जा सके और उसके चलते आदमी के खांसने की आवाज बगल वाले को भी न सुनाई पड़े तभी कुछ हो सकता है वरना इधर आपने खाँसा और उधर एम्बुलेंस आई l
मिडिल क्लास वालों को इस बात का बड़ा रंज रहता है कि सारी सरकारें चाहे वो केंद्र की हो या राज्य की सबका ध्यान या तो अमीरों पर रहता है या फिर गरीब पर, कोई ये नही देखता कि इस दुनिया में एक "मिडिल क्लास" भी है और उसे भी चीजों की, सरकार की मदद की जरूरत होती है अमीरों का क्या है बेंको से लोन ले लो और उन पैसो पर जम कर ऐश करो और जब चुकाने का वक्त आये तो अपने को दिवालिया घोषित कर दो या फिर टिकिट कटा कर विदेश भाग जाओ और यदि आपका जुगाड़ है तो सरकार लोन भी माफ़ कर देगी और दूसरा लोन भी दे देगी, ऐसा ही कुछ गरीबो के साथ भी है, सरकार की सहानुभूति उनके साथ है l
रहने के लिए मकान फ्री, खाने के लिए अनाज फ्री, बिजली फ्री, पानी फ्री अभी सुना है मध्य प्रदेश सरकार अगले पांच महीने गरीबों को मुफ्त में पूरा राशन देगीl अच्छी बात है गरीबों की मदद करना सरकार की जिम्मेदारी है पर हुजूर एक तबका और भी है जिसे आप लोगो ने पूरी तरह से "इग्नोर" कर दिया है कुछ साल पहले तो अपने वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह जी ने साफ़ साफ़ कह दिया था कि मिडिल क्लास वाले अपनी व्यवस्था खुद देख लें हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते , अब मिडिल क्लास वाले दुखी हैं तो भैया आपसे किसने कहा था कि मिडिल क्लास में पैदा हो जाओ, हो जाते अडानी, अम्बानी, टाटा, बिड़ला, सिंघानिया के घर पैदा, किसने रोका था l अपने यंहा के परिवारों का तो पुराना रोना है कि बड़े बेटे को बाप प्यार करता है और छोटा माँ की आंखो का तारा रहता है, मंझला बीच में ही झूलता रहता है तो आप भी उसी तर्ज पर मिडिल क्लास वाले मझले लड़के हो, मंझला प्यार की चाहत रखने लगे तो मुश्किल तो होगी l
दूसरी बात अमीरो से सरकारें चलती हैं गरीब चुनाव में हिस्सेदारी करते हैं जुलूस बना कर वोट डालने जाते है पर मिडिल क्लास वाले "ड्राइंग रूम" में बैठ कर मुंह चलाते रहते हैं तो भोगो l चुपचाप सरकारों को टेक्स दो, अपना स्टैण्डर्ड भी मेन्टेन करो सोसायटी में ही अपने आप को दूसरों के के बराबर बनाये रखने लिए कर्जा लेकर गाड़ी, घोडा, टीवी, फ्रिज, खरीदो और ईएमआई चुकाते रहो, सरकार से से उम्मीद करना "भूतो से लड़का मांगने" या "रेत में से तेल निकालने" जैसा है इसलिए रोना धोना छोडो और जैसा चल रहा है चलने दो हां इस बात की ईश्वर से जरूर प्रार्थना कर लेना कि अगले जन्म में भगवान हमें या तो अमीर बनाना या फिर गरीब, हमें मिडिल क्लास में जन्म देने की भूल न करना।
चैतन्य भट्ट
0 Comments