कोरोना का पलटवार

कोरोना का पलटवार

कोविड-19 अर्थात कोरोना देश में पूरी रफ्तार पर है। इसे इस रफ्तार पर पहुंचाने के लिए जितना आमजन दोषी हैं। उससे कहीं ज्यादा सरकारें और उन सरकारों में शामिल राजनेता और देश में स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेता है। जब सरकार/हम लोगों को पहले से ही मालूम था कि कोरोना का जो नया वेरिएंट आया है वह कहीं ज्यादा घातक है। कहीं ज्यादा तेजी से फैलने वाला है, तो फिर ऐसी क्या मजबूरी रही कि सरकार भीड़भाड़ वाले स्थानों पर भीड़ को निरंकुश विचरण करने के लिए छोड़ दिया और इस लापरवाही में हम भी शामिल रहे हैं जिन्होंने कोरोना को हल्के में लेते भीड़ का हिस्सा बनते रहे। आज हमारी और सरकार की लापरवाही का नतीजा ये है कि देश के हर कोने में कोरोना को लेकर हा-हा कार मचा हुआ है। अस्पतालों में बेड फुल हैं, डॉक्टरों, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर्स की भयंकर कमी महसूस की जा रही है। अस्पतालों की मोर्चरी, श्मशान घाटों और सब दहा ग्रहों में डेड बॉडीज की लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। कई शहरों में तो लोग एंबुलेंस में ऑटो में हॉस्पिटल्स की गैलरी में इलाज करवाते हुए जिंदगी और मौत के बीच जद्दोजहद करते इस महामारी से बचने के प्रयास में लगे हैं।

इन सब परिस्थितियों के लिए सिर्फ और सिर्फ हम और हमारी सरकारें चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें हो या फिर हमारा लोकल एडमिनिस्ट्रेशन हो यह सभी जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का पालन ठीक से नहीं किया। मसलन जब कोरोना का फर्स्ट फेज का समाप्त हुआ, तो सरकार ने सारे लोग डाउन हटा लिए लोगों पर से पाबंदियां खत्म कर दी, और विभिन्न प्रांतों में प्रदेशों में सारा फोकस चुनाव लड़ने पर लगा दिया। जब कोरोना की वजह से कॉलेज बंद हो सकते हैं स्कूलों की छुट्टियां हो सकती हैं परीक्षाएं निरस्त हो सकती हैं तो चुनाव क्यों नहीं निरस्त किए जा सकते थे ?  ऐसी क्या वजह रही कि सरकार ने यह चुनाव करवाये ? बड़ी-बड़ी रैलियां आयोजित की गयी। इन सभाओं और रैलियों ने कोरोना जैसी महामारी को विकराल रूप देने के लिए उपयुक्त माहौल उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाई।

सरकारों की इस बेवकूफी और स्वार्थ भरी राजनीति का कहीं ना कहीं आमजन भी शिकार हुआ जो इन रैलियों में सभाओं में शामिल हुआ और कोरोना को बैठे-बिठाए अपने घर ले आया। चुनावों के बगैर भी शासन की व्यवस्थाओं को प्रशासन संभाली रहा था आगे भी संभाल सकता था तो फिर चुनाव कराना इतना जरूरी तो नहीं था कि आज हजारों लाखों जिंदगियां कोरोना की भेंट चढ़ गई और ना जाने कितनी जानें अभी और जाएंगी। नेता दूसरों को तो मास्क लगाने सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने आदि के प्रवचन देते हैं जबकि स्वयं इन नियमों का पालन बिल्कुल नहीं करते हजारों लाखों की भीड़ इकट्ठा करते हैं भाषण बाजी करते हैं लोगों से मिलते हैं हाथ मिलाते हैं क्या इन पर कोई कार्यवाही नहीं होना चाहिए ?जब लॉकडाउन लगाकर बाजारों को बंद करवा दिया जाता है। लॉकडाउन लगने के कारण हजारों लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाता है लोगों के कामकाज ठप हो जाते हैैं उद्योग धंधे बंद हो जाते हैं इससे उनकी आमदनी भी बंद हो जाती है और वे भूखों मरने की कगार पर पहुंच जाते हैं लेकिन इसके बावजूद आमजन इस लॉकडाउन को पूरा समर्थन व सहयोग देता है।

वहीं राजनेता इस कोरोना काल में भी चुनावी रैलियां कर रहे हैं लोगों की भीड़ जुटा रहे। तो ऐसे कैसे कंट्रोल होगा कोरोना ? आमजन नियम तोड़े तो मुझसे इसके लिए सजा मिलती है और राजनेता नियम तोड़ते हैं तो फोन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती है ? दूसरी ओर इसको रोना काल में भी प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार,पश्चिम बंगाल और आसाम के चुनावों ने भी करुणा जैसी महामारी को फलने फूलने का भरपूर मौका दिया है। अब हमें अपने विवेक से यह सोचना जरूरी है कि क्या हमारी जिंदगी से ज्यादा कुंभ जैसे मेले और चुनावी रैलियों में शामिल होना जरूरी है ?जी नहीं यह सब बिल्कुल भी जरूरी नहीं है । अगर जिंदगी रही तो कुंभ जीवन में दोबारा भी आएगा । चुनावी रैलियों में कभी भी शामिल हो सकते हैं इसलिए कोरोना काल में घर पर रहे सुरक्षित रहें कोविड नियमों का पालन करें...

                                                                                                                        रवि यादव

Comments