संविधान दिवस के रूप में ही नहीं बल्कि मुक्ति दिवस के रूप में भी मनाया जाए

26 नवंबर को दलितों पिछड़ों व शोषितो के…

संविधान दिवस के रूप में ही नहीं बल्कि मुक्ति दिवस के रूप में भी मनाया जाए

26 नवंबर सन 1949 को परम पूजनीय विश्व रतन बोधिसत्व बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के संघर्षों त्याग वह अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप ही विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान जो 7 देशों के संविधान की अच्छाइयों से लेकर बना जो समता स्वतंत्रता बंधुत्व और न्याय पर आधारित है जिसे बनाने में 2 साल 11 माह 18 दिन का समय लगा।  26 नवंबर सन 1949 से पहले भारत में मनुस्मृति या मनु का विधान लागू हुआ करता था जो असमानता व जाति वर्ण व्यवस्था पर आधारित का जिसमें देश के 85% वर्ग को उनके मूलभूत अधिकारों जैसे शिक्षा रोजगार सम्मान संपत्ति से वंचित रखा गया था जिसमें समाज को चार भागों में बांटा गया था जो क्रमशः ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र थे। 

जिसमें प्रजातंत्र का प्रावधान था इसमें राजा के मरने के बाद उसकी औलादे हीं राजा हुआ करती थी किंतु 26 नवंबर 1949 के बाद भारत में संविधान की बदौलत लोकतंत्र स्थापित हुआ जो जनता के लिए जनता के द्वारा जनता का शासन की प्रणाली पर आधारित है जिसमें भारत के प्रत्येक नागरिक को एक मत यानी वोट का अधिकार दिया गया जिसके आधार पर वह अपने कुशल नेतृत्व के लिए किसी को भी अपना प्रतिनिधि चुन सके। परम पूज्य बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने इस देश के शोषित पिछड़ों के वंचितों को वोट का अधिकार दिलाने के लिए 1932 में इंग्लैंड के लंदन में जाकर अंग्रेजो से जोरदार  प्रतिनिधित्व किया और उन्हें वयस्क मताधिकार दिलाया और देश को एक मजबूत लोकतांत्रिक देश बनाने के सभी समुदायों, जातियों, धर्मो, पंत को समान अधिकार अवसर की स्वतंत्रता प्रदान की । 

26 नवंबर को संविधान के सम्मान में हमें इस राष्ट्र ग्रन्थ के आदर्शों पर चलकर देश मे समता स्वतन्त्रता  बंधुत्व  व न्याय का प्रचार प्रसार करना चाहिए और इस दिन को दलितों पिछडो शोषितों वंचितों को अपनी मुक्ती दिवस के तोर पर मनाना चाहिए। आओ सब मिलकर 26 नवंबर को अपने बच्चो को इस दिन के महत्व को बताए और प्रण करें कि संविधान जिसकी बदौलत आज हम मौलिक अधिकार प्राप्त है उसे प्रतिदिन पढेंगे और उसे अपने जीवन मे उतारने का काम करेंगे तथा जीवनपर्यन्त उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहेंगे।

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