कोरोना : पढ़ाई में पिछड़ते बच्चे

कोरोना के साइड इफेक्ट…

कोरोना : पढ़ाई में पिछड़ते बच्चे

ऐनुअल स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट यानी असर का ताजा सर्वे मौजूदा स्कूली शिक्षा की बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करता है। यह सर्वे पिछले महीने यानी सितंबर में किया गया, जब कोरोना के चलते स्कूलों को बंद हुए छह महीने हो चुके थे। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 20 फीसदी बच्चों के पास पाठ्यपुस्तकें ही नहीं हैं। यह राष्ट्रीय औसत है। अलग-अलग राज्यों का हाल देखना हो तो राजस्थान में पाठ्यपुस्तकों से वंचित बच्चों का प्रतिशत 40 है जबकि आंध्र प्रदेश में 65 से भी ज्यादा। जिस हफ्ते में यह सर्वे किया गया, तब तक की स्थिति यह थी कि एक तिहाई ग्रामीण बच्चों की कोई लर्निंग एक्टिविटी नहीं हुई थी जबकि दो तिहाई बच्चों को स्कूल से कोई लर्निंग मैटेरियल नहीं मिला था। लाइव ऑनलाइन कक्षाओं की बड़ी चर्चा है, लेकिन वहां तक पहुंच केवल दस फीसदी ग्रामीण बच्चों की ही दर्ज की जा सकी।

आम चलन के मुताबिक इसके पीछे टेक्नॉलजी की सीमित पहुंच को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा, लेकिन असर की यह रिपोर्ट जोर देकर कहती है कि मामला सिर्फ टेक्नॉलजी का नहीं है। हाल के दिनों में वैसे भी स्मार्टफोन का मार्केट बढ़ा है। देश में 2018 के मुकाबले स्मार्टफोन धारकों की संख्या करीब-करीब दोगुनी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक करीब एक तिहाई बच्चे ऐसे हैं जिनकी स्मार्टफोन तक पहुंच होने के बावजूद लर्निंग मैटेरियल नहीं मिल सका। इस बीच सरकार ने तमाम सावधानियों के साथ स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है, फिर भी ज्यादातर बच्चों ने स्कूल जाना शुरू नहीं किया है। अभिभावकों के मन में बैठा डर उन्हें बच्चों को स्कूल भेजने से रोक रहा है। उन्हें पता है कि बच्चों को लाख ध्यान दिलाया जाए तो भी वे न तो मुंह पर मास्क लगाए रख पाएंगे, न ही दोस्तों से डिस्टेंस मेनटेन करेंगे। यह डर वास्तविक है और रातोंरात नहीं छंटने वाला। यानी देश के ज्यादातर बच्चों के कोरोना से पहले वाले स्तर की शिक्षा तक दोबारा पहुंचने में अभी वक्त लगेगा। और यह स्थिति उन बच्चों की है जो स्कूली शिक्षा व्यवस्था के दायरे में शामिल हैं।

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देश में 6 से 10 साल की उम्र के 5.3 फीसदी ग्रामीण बच्चे ऐसे हैं जिनका किसी स्कूल में ऐडमिशन ही नहीं हुआ। आंकड़े की अहमियत तब समझ में आती है जब हम देखते हैं कि 2018 में ऐसे ग्रामीण बच्चों का प्रतिशत महज 1.8 था। संयोग कहिए कि इसी साल केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी लेकर आई है जिसमें बच्चों को सिखाने के नए-नए तरीकों पर कई मौलिक सुझाव दिए गए हैं। मगर कोरोना से उपजी स्थितियों ने ग्रामीण बच्चों को जितना पीछे धकेल दिया है, वहां से इनको सामान्य स्तर तक लाने के लिए जल्द ही एक विशेष नीति की जरूरत पड़ेगी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अमल कुछ समय बाद भी शुरू हो तो कोई हर्ज नहीं।

Comments