शिक्षक और छात्र

शिक्षक और छात्र 

आओ मिलकर संधान करें,

खुद अपना ही कल्याण करें


क्यों छात्र सुस्त है कुंठा से?

क्यों दृष्टि है उसकी शंकालु?

आक्रोश भरा उसका मन क्यों?

पहले तो था वह श्रद्धालु,

क्यों मारपीट में मन लगता?

क्यों तोड़फोड़ है वह करता?

क्यों नैय्या उसकी डोल रही?

बस जीने का वह दम भरता.


है चारों ओर कपट-छलना,

हत्या का दौर चला भारी,

है लूटपाट चहुं ओर मची,

कब कहां चले किस पर आरी?

कोई भी शंका-रहित नहीं,

आक्रोश भरा सबके मन में,

कुंठा का बरबस डेरा है,

श्रद्धा कैसे होगी मन में!


इस कारण छात्र भी शंकित है,

उसको नहीं कोई पथ सूझे,

भावी जीवन की चिंता में,

वह कुंठाओं से बस जूझे.

उसको सत्पथ दिखलाना है,

उसका जीवन महकाना है,

शिक्षक को दिग्दर्शक बन कर,

अपना कर्त्तव्य निभाना है.

लीला तिवानी

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