अंडा फँसा 'मांसाहारी' और 'शाकाहारी' के बीच

शिवराज सरकार में जब…

अंडा फँसा 'मांसाहारी' और 'शाकाहारी' के बीच

इस सवाल का उत्तर ज़रूर मिलेगा,लेकिन थोड़ा रुककर. पहले थोड़ा अंडे के बारे में जान लीजिए.

अंडे को 'कम्पलीट फ़ूड' कहा जाता है. यानी शरीर के लिए ज़रूरी सारे पोषक तत्व उसमें मौजूद हैं. अंडा प्रोटीन से भरपूर होता है. क्या देश, क्या विदेश, हर जगह आसानी से मिल भी जाता है. बनाने वालों के लिए भी आसान, एक ही चीज़ से इतनी वैराइटी की चीज़ें और वो भी मिनटों में तैयार. बहुत कम खाने की चीज़ों के साथ ऐसा होता है. उबालकर खाना ना हो तो ऑमलेट बना लें, अंडा-करी भी भारत के अलग-अलग राज्यों में कई तरह से बनाई जाती है. हॉफ बॉयल अंडा भी कई लोगों को खूब भाता है. शहर हो या गाँव, सड़क किनारे भूख मिटाने का इससे ज़्यादा पौष्टिक विकल्प शायद दूसरा कोई नहीं. कुछ शोध में पाया गया है कि इसे खाने की दूसरी चीज़ों के साथ मिलाकर खाया जाए, तो आपके शरीर को ज़्यादा विटामिन मिलता है. मिसाल के तौर पर सलाद में अंडा मिलाने से विटामिन ई की मात्रा ज़्यादा मिलती है. इसलिए माना जाता है कि अगर खाने की चीज़ों में 'बेस्ड फ़ूड' की कोई कैटेगरी होगी तो इस प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे 'अंडा' ही होगा. तमाम फ़ायदों के बीच कुछ जानकार मानते हैं कि अंडे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर पर बुरा प्रभाव डालती है.

भारत में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए स्कूलों और आंगनवाड़ी में बच्चों को सरकार की तरफ़ से एक वक्त का खाना दिया जाता है. आईआईएम अहमदाबाद में एसोसिएट प्रोफ़ेसर रितिका खेड़ा ने इस विषय पर बहुत काम किया है. रितिका खेड़ा बताती हैं कि केंद्र सरकार की तरफ़ से इसकी शुरुआत मीड डे मिल के तौर पर साल 1995 में हुई. इससे पहले, पका हुआ भोजन देने में तमिलनाडु सबसे आगे रहा. तब वहाँ के मुख्यमंत्री एमजीआर थे. जग-हँसाई और निंदा के बावजूद वो अपने फ़ैसले पर डटे रहे. इसके साथ ही गुजरात और कुछ अन्य राज्यों (मध्य प्रदेश, ओडिशा शामिल हैं) के कुछ हिस्सों में पका हुआ भोजन दिया जाता है. केंद्र की पके हुए खाने की योजना के बजाय कई राज्य बच्चों को सूखा अनाज दे दिया करते थे. लेकिन साल 2001 में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद, सभी राज्यों में पका हुआ भोजन देने का फ़ैसला हुआ. आनन-फानन में राज्यों ने इसे लागू भी कर दिया. उसके बाद से साल 2010 तक इस क्षेत्र में काफ़ी सुधार हुआ और काम भी हुआ.

मामला आगे बढ़ा तो खाने की गुणवत्ता पर बात हुई, और सरकारें खाने में बच्चों को कितनी कैलरी देना चाहिए, ये सब तय करने लगी. स्कूलों में मिड-डे मील की व्यवस्था 14 साल के बच्चों के लिए की गई. ठीक इसी तरह से हर राज्य के आंगनबाड़ी में माँओं और पाँच साल के बच्चों को भोजन देने की व्यवस्था है. मिड डे मील और आंगनबाड़ी में भोजन कब और कैसा देना है, इसके लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन का राज्य सरकारें पालन करती हैं. इसके लिए कई राज्य सरकारें, स्वास्थ्य मंत्रालय के अंदर काम करने वाली संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूट्रीशन की मदद लेती है. ये संस्था राज्यों के कहने पर उनके लिए सैंपल मैन्यू तैयार करके देती है. मैन्यू को तय करने का अधिकार अंतत: राज्य सरकारों का ही होता है. लेकिन आंगनबाड़ी और स्कूलों के मैन्यू में बच्चों को अंडा दिया जाए या नहीं, इसको लेकर अब बहस शुरू हो गई है और कुछ हद तक राजनीति भी. पोषण-आहार विशेषज्ञ कहते हैं कि अंडा बच्चों के लिए फ़ायदेमंद होता है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को फ़ैसला किया है कि राज्य की आंगनबाड़ी में बच्चों को अंडा नहीं दिया जाएगा. इस बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "हम अंडा नहीं, कुपोषित बच्चों को दूध देंगे. बच्चों में कुपोषण के ख़िलाफ़ राज्य में अभियान भी चलाया जाएगा." मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के मौक़े पर प्रदेश बीजेपी कार्यालय में एक प्रदर्शनी का उद्घाटन करने पहुँचे थे. कार्यक्रम के बाद संवाददातों को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बात कही. नंवबर 2019 में समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में इमरती देवी ने कहा था, "जब हमने राज्य के मुख्यमंत्री से ये बात कही तो उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात है. उन्हें आंगनबाड़ी में बच्चों को अंडा देने में कोई दिक़्क़त नहीं है. हमने डॉक्टरों से भी सलाह ली. उन्होंने भी कहा कि बच्चों को पोषण के लिए अंडा देना चाहिए." तब ऐसा लगा मानो शिवराज सरकार बच्चों के पोषण का ध्यान रखते हुए आंगनबाड़ी में अंडा देने पर विचार कर सकती है. लेकिन शिवराज सिंह के ताज़ा बयान के बाद सारी संभावनाएँ धरी की धरी रह गईं.

हालाँकि राज्य के मुख्यमंत्री के ताज़ा बयान के बाद इमरती देवी की प्रतिक्रिया नहीं आई है. कांग्रेस जब मध्य प्रदेश में सत्ता में आई थी, तब वो आंगनबाड़ी में अंडा देने पर राज़ी हो गई थी, जिसकी शुरुआत अगले सत्र से करने का वादा किया था. लेकिन उससे पहले ही उनकी सरकार गिर गई. अब शिवराज सिंह चौहान के फ़ैसले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर तंज कसा है. हालाँकि राजस्थान में जहाँ कांग्रेस की सरकार है, वहाँ भी अंडा नहीं दिया जा रहा है. 'राइट टू फूड' कैंपेन से जुड़े सचिन कुमार जैन कहते हैं, "मध्य प्रदेश सरकार अपने फ़ैसले के पीछे तर्क़ ये देती है कि उनका राज्य एक 'वेजिटेरियन' यानी शाकाहारी राज्य है." कौन सा राज्य 'शाकाहारी' है और कौन सा राज्य 'मांसाहारी', साल 2014 के केंद्र सरकार के बेसलाइन सर्वे से इसका पता चलता है. उस सर्वे के मुताबिक़ राज्य में 48.9 फ़ीसदी पुरुष और 52.3 फ़ीसदी औरतें शाकाहारी हैं. इसके उलट 51.1 फ़ीसदी पुरुष मांसाहारी हैं और 47.7 फ़ीसदी औरतें मांसाहारी हैं.

सचिन कुमार जैन की मानें, तो ये तर्क कहीं नहीं ठहरता. अगर 50 फ़ीसदी जनता की बात सरकार मान रही है, तो बाक़ी 50 फ़ीसदी की क्यों नहीं. दूसरी बात है कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या अधिक है, जिनके सामने शाकाहारी और मांसाहारी जैसे विकल्प ही नहीं होते. सचिन कुमार जैन आगे कहते हैं कि अंडा इसलिए भी दूध के मुक़ाबले बेहतर विकल्प है क्योंकि इसमें मिलावट की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है, दूध के मुक़ाबले ये अधिक दिन तक स्टोर किया जा सकता है और आसानी से मिल जाता है. सचिन कुमार जैन के मुताबिक, दूध की खपत डेयरी प्रोडक्ट में अब ज़्यादा होने लगी है. इसलिए अब दूध की उपलब्धता वैसी नहीं रही, जैसी पहले हुआ करती थी. दूसरी समस्या ये आती है कि दूध शुद्ध नहीं मिलता, बल्कि उसमें ज़्यादा मात्रा में पानी मिला हुआ होता है. मध्यप्रदेश में वर्ष 2015 में भी राज्य सरकार ने 10 ग्राम दूध पाउडर में 90 ग्राम पानी मिलाकर देने का प्रावधान किया था, लेकिन यह विकल्प सफल नहीं रहा, क्योंकि पानी की गुणवत्ता और स्वाद को पसंद नहीं किया गया. अभी यह देखना होगा कि स्थानीय स्तर पर ताज़ा और शुद्ध दूध कैसे उप्लब्ध होगा?

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