डरते डरते कुछ कहना चाहता हूँ...
डरते डरते कुछ कहना चाहता हूँ...
कोरोना योद्धा दो तरह के होते हैं। एक वो जिन्हें सरकारी तनख्वाह के साथ सभी सरकारी और गैर सरकारी सुविधाएं मिलती हैं जिन्हें सरकार और मुख्यमंत्री भी पचास लाख से एक करोड़ तक की सहायता का एलान करते हैं। इनमें सभी शासकीय कर्मचारी पुलिस डॉक्टर और प्रशासनिक अधिकारी आते हैं। अब दूसरे वाले कोरोना योद्धा की बात करते हैं ये वो होते हैं जो केवल बातों और कागजों में कोरोना योद्धा के तौर पर पहचाने जाते हैं इनमें सबसे पहले आते हैं पत्रकार और इस पेशे से संबंध रखने वाले सभी लोग चाहे वो किसी अखबार के हॉकर हों,फील्ड में घूमने वाले रिपोर्टर कैमरामैन हों या फिर बैक ऑफिस(एडिटोरियल) में बैठकर दिन-रात लोगों को खबरें परोसने वाले मीडिया कर्मी। एक बात समझ में नहीं आती कि दिन रात नेताओं की खबरें बनाने वाले और उनके आगे पीछे घूमने वाले हम पत्रकार क्यों अपनी ही जमात की बात सरकार के सामने नहीं रख पा रहे हैं।
क्यों कोरोना काल में हममें से अधिकतर लोगों की नौकरियां जाने के बाद भी सन्नाटा पसरा है क्यों हम मीडिया हाउस या कहें कि मुसीबत के वक्त में सरकार की हर चीज पल्ला झाड़ने वाली आदत का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। मैं मानता हूँ कि मीडिया हाउस की कुछ मजबूरी हो सकती हैं। लेकिन बीस तीस सालों से काम कर रहे अपने कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों को एक नोटिस देकर निकालना कहाँ तक सही है। मुझे लगता है कि इस कोरोना काल के बहाने मीडिया हाउस के मालिकों को अपने खर्चे कम करने और कर्मचारियों को निकालने का एक हथियार मिल गया है जो वे हमारी और हमारे परिवार की गर्दन पर चला रहे हैं। अब बात करते हैं सरकार में बैठे कथित रहनुमाओं की जो अपने प्रचार प्रसार काम और चेहरा दिखाने के लिए मीडिया कर्मियों का सहारा लेते हैं लेकिन क्या एक बार भी उन्होंने कोविड19 जैसी वैश्विक महामारी में हमारे लिए सोचा...? उन्होंने ने तो ट्रेन के किराए में मिलने वाली छूट भी बंद कर दी।
क्या उन्हें एक बार भी हमारा ख्याल आया कि पिछले तीन चार महीनों से जब अधिकतर मीडिया हाउस ने अपने कर्मचारियों को संस्थान से बाहर कर दिया या तनख्वाह ही नहीं दी इन नेताओं ने झूठे से ही सही क्या एक भी बार हमारे विषय में जानकारी ली या अपने स्तर पर या सरकार से मदद दिलवाने की कोशिश की....? असल में गलती हमारी ही है हमारी अपनी जमात के मात्र कुछ एक लोग जो नेताओं के पिछलग्गू बने हुए हैं इसमें सबसे पहले कौन की दौड़ में शामिल कुछ मीडिया कर्मी भी हैं समझ नहीं आता कि ये नेता जब हमारे विषय में एक बार भी नहीं सोच सकते या सरकार के आगे हमारी बात नहीं रख सकते तो हम क्यों न इस बार इन्हें आईना दिखाएँ मेरी आप सभी मीडिया कर्मी बंधुओं से गुजारिश है कि प्रदेश की चौबीस सीटों पर चुनाव होने वाले हैं और ये मौका है अपनी बात राज्य सरकार तक पहुंचाने का क्योंकि केंद्र की किसी सरकार ने हमारे लिए अब तक कुछ नहीं किया है हमारी संख्या बहुत कम है लेकिन एक पत्रकार एक लाख के बराबर है इसलिए मेरा सभी बंधुओं से करबद्ध अनुरोध है कि जब हम किसी खबर का कवरेज करें तो कम से कम एक सवाल नेताओं और जनप्रतिनिधियों से अवश्य करें कि आपने हमारे लिए क्या किया और भविष्य में क्या करने वाले हैं।
- संजय शर्मा
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