"मजदूरों की व्यथा"
"मजदूरों की व्यथा"
हेरि हेरि हरो प्रभु,
मिलो न सहारो काऊ,
कोरोना की मार ने
करो मजबूर है
खाबै को न रोटी है,
रहबे न मकान बचो
मालिकन ने कछु रुपये
देके हाथ झाड़ो है ,
छोटे छोटे बच्चे बिलख
रये रोटिन को,
उनको जो रोवो
नहीं देखो जात है ,
ऐसी घोर विपदा
मजूरन पे आई परी,
अपने गाँव जावे को
भये मजबूर हैं ।
बहुत दिन हेरो सहारा
इन नेतन को ,
कोऊ न गरीब गुरबा
को सहाय है ,
तइसे चले ते कछु
रोटियन को बांध के
इन रोटियन के वास्ते ही
गाँव छोड़ आये ते ,
चलत चलत थके पाँव
हम औरन के ,
सोचो चलो थोड़ी ,देर
पटरी पे सोत हैं,
सपने में कान्हा आये
गोद में बिठाये लये
ऐसी गाड़ी भेजी
जासे भव पार कर गए ,
चारों ओर रोटियां
बिलख रई हाथन को
पोटरी में बाँधकर जतन
से जो लाये ते ,
कान्हा ने दयो साथ
बैरी दुनियाँ से दूर
ले चले उन्हें जहाँ
सब सुख होत है ,।।
डॉ, ज्योति उपाध्याय
प्राध्यापक,ग्वालियर
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