"आज खुद खतरे में है ईश्वर"
ये बात आज शायद हर इंसान जनता है...
"आज खुद खतरे में है ईश्वर"
एक कहानी शायद हम सब ने सुनी हो
, की बाढ़ में अपनी छत पे फंसा एक व्यक्ति अपने परम आराध्य को मदद के लिए पुकारता है,
और उसके पास कई लोग मदद को आते भी हैं। पर वो हर मदद को यह कहकर ठुकरा देता है कि जिसकी मैंने जीवन भर आराधना की वही मुझे
बचाने आएंगे। और आखिरकार जब वह मरकर ईश्वर के पास पहुंचकर ये पूछता है कि आप मुझे बचाने
क्यों नही आये प्रभु? तो ईश्वर ने कहा मैं कई रूपों में तुझे बचाने आया पर तूने मेरा
हाँथ पकड़ा ही नहीं।
दोस्तों, आज यही विडंबना हमारे
देश में भी देखने को मिल रही है। पूरा विश्व एक ऐसी महामारी की चपेट में हैं जिसका
कोई इलाज नहीं है, बस उससे संक्रमित होने से
बचना ही एक उपाय है। ये बात आज शायद हर इंसान जनता है, पर अपनी सोच, की उसे कुछ नही
होगा, नियम और कानून तोड़ कर घर से बाहर घूम रहा है।
पुलिस कर्मियों और देवदूत तुल्य
डॉक्टर्स का इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है , कि वो आपका इलाज करें या आपको बाहर सड़कों
पे घूमने से और लोगों से मिलने से रोकें। पर अपनी जान को दांव पे लगा के ये दोनों विभाग
सिर्फ मानवता का फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं, ये किसी देव रूप से कम नहीं है।
उसके विपरीत इन्हें क्या मिल रहा
है, यह आज सर्वविदित है। पत्थरबाजी, अश्लील व्यंग, जानलेवा हमले और अभद्र व्यवहार।
जैसे आपके संक्रमित होने या जीने मरने से इनका कोई निजी फायदा या नुकसान हो।आज हम अपने खुद के परिवार के साथ
अपने खुद के घर में रहने, को बोझ मान रहे है, और नियम और कानून की धज्जियां उड़ा कर
खुद को और अपने राष्ट्र को खतरे में डाल रहे हैं।
हर इंसान अपने इष्ट से यह प्रार्थना
तो ज़रूर कर रहा है कि इस महामारी से छुटकारा दिलवाएं, मगर देवतुल्य डॉक्टरों और पुलिस
कर्मियों पर हमले करने में ज़रा शर्म नही महसूस कर रहा है। अपनी खुद की अंतरात्मा की
न सुनकर और कुछ नफरत फैलाने वालों की बातों में आकर खुद को छुपाना, संक्रमण फैलाना,
और सरकार के नियमों का पालन ना करना, कहां तक ठीक है? कर्मों का हिसाब होना तो तय है,
फिर क्यों न आज हम सब मिलकर इस जंग को अपनी अंदर की आवाज़ सुनकर पूरी ईमानदारी से लड़ें।
*आज जहां हम सोचते हैं लोकडाउन
खुले तो में घर से बाहर निकलूँ ,वहीं हमारे देव तुल्य डॉक्टर और पुलिस बंधु सोचते हैं
लोकडाउन हटे तो घर जाऊं, और ठीक से परिवार से मिलूं।*
देशवासी सुरक्षित रहें इसलिए कल
दो पुलिस कर्मी इस जंग में संक्रमित होकर शहीद हो गए। पर हम आज भी इस महामारी को हल्के
में ले रहे हैं। जितना आसान हमारे लिए है, ये कहना है कि घर में बोर हो गए तो सैर करने
थोड़ा बाहर आ गए, या हमे जांच नहीं करवाना,
ठीक उतनी ही आसानी से अगर हमारे वीर डाक्टर्स और पुलिस कर्मी यह कह दें कि हम क्यों
इलाज करें या लोगों को रोकें बाहर जाने से, तो सोचिये हमारे राष्ट्र की हालत दूसरे
देशों से और बदतर होने में कितना समय लगेगा?
बात सोचने वाली है, आज सरकार के
कई वर्ग हमे ज़रूरत की हर चीज़ आसानी से उपलब्ध कराने की भरसक कोशिश कर रही है, सिर्फ
इसीलिए की लोग बाहर न निकले और कोरोना संक्रमण की चेन टूट जाये। पर नहीं ऐसी परिस्तिथियों
में भी लोगों को घरों में नौकरों को बुलवाने के लिए, अखबार और दूध घर तक उपलब्ध कराने
के लिए और गरम समोसे ओर पिज़्ज़ा के लिए जब लड़ते
देखा जाता है, तो कोरोना योद्धाओं की ये कुर्बानी सर्वथा व्यर्थ जान पड़ती है।
*जान है तो जहान है*, आप बचेंगे
तो फिर सब मिल जाएगा। पर उसके लिए कुछ दिन तो हम सब मर्यादा में रहकर इन योद्धाओं का
काम आसान कर सकते हैं की नहीं? डॉक्टर्स और पुलिस कर्मियों के
प्रति दुर्व्यवहार को देखकर लगता है *"ईश्वर आज खुद खतरे में है"*
जान हमारी, जीवन हमारा, राष्ट्र
हमारा, तो उसे बचाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही है, इसमें किसी जात, धर्म और मान्यताओं
का भेद नहीं होना चाहिए।
हमे तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि इस महामारी में
एक सुरक्षा कवच के रूप में ये वीर योद्धा हमारे चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बनाये खड़े हैं, इनका आदर करें, इनकी बात मानें
,इनका ध्यान रखें और इनको नमन करें। ईश्वर को रक्षा करने दें उसे खुद
खतरे में ना डालें- घर पर रहें ,सुरक्षित रहें।
मोनिका जैन
ग्वालियर
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