परिवार इनका भी है और भूख इन्हे भी लगती है


अपने स्वाभिमान के चलते किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते…

परिवार इनका भी है और भूख इन्हे भी लगती है



सबसे ज्यादा परेशान वे इंसान हैं, जो 10-12 हजार की नौकरी में पूरी फैमिली को संभालते है और बाहर इज्जत बनाकर रहते है लोग समझते हैं यह मजे मे हैं। पर वो बंदा बस जैसे-तैसे रोटी,चावल खाकर घर का खर्चा चला ही रहा होता है

सेविंग कुछ होती नही है क्योंकि 10-12 में चार फैमिली मेम्बर्स की महीने भर की जरूरत पूरी करनी होती है 37दिन हो गये  है , लॉक डाउन को जो राशन वगैरह होता है, वो पहले ही हफ्ते मे खत्म हो चुका हैं शर्म की वजह से किसी से मांग भी नही सकता और लोग  खुद देते भी नही, यह सोचकर कि इसका रहन सहन अच्छा है तो इसे मदद की क्या जरूरत होगी। पर हकीकत मे सबसे ज्यादा जरूरतमंद ऐसे लोग ही होते है

इसमें अधिकांशतः छोटे-मोटे दुकानदार या प्राइवेट नौकरी करने वाले यहां तक की मीडिया लाइन से जुड़े लोग भी हैं। लेकिन ये वो लोग हैं जो अपने स्वाभिमान  के चलते किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते हैं और ही अपनी परेशानी किसी सामने ज़ाहिर करते हैं।

बस जैसे  तैसे अपनी आजीविका चलाते हैं। अब ऐसे में लॉकडाउन के चलते इनकी आजीविका के साथ साथ इनके जीवन पर भी संकट मंडराने है। क्या इनके प्रति शासन प्रशासन की कोई जवाबदारी नहीं बनती है ? और यदि शासन प्रशासन इनके प्रति अपनी जवाबदारी समझता है तो अविलम्ब इनका आर्थिक सहयोग करना भी करना चाहिए।

ज्यादा गरीब लोगो के पास तमाम संस्थाये और आस पड़ोस के लोग पहुँच जाते है , राशन दान देने। लेकिन बीच का यह आदमी/ परिवार भूखा रहने पर मजबूर रहता है, वो आखिर  करे तो क्या करे। इसलिए जो लोग गरीब जनता की मदद कर रहे है वे ऐसे परिवारो पर भी नजर रखे और उनकी मदद करे।

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