G News 24 : दिल्ली ही नहीं देश के लिए भी जरूरी है अरावली की पर्वत श्रृंखला : पर्यावरणविद

सारे विवाद और कन्फ्यूजन की जड़ है SC का  20 नवंबर 2025 को दिया फैसला ...

दिल्ली ही नहीं देश के लिए भी जरूरी है अरावली की पर्वत श्रृंखला :  पर्यावरणविद


अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है जो गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को इसकी नई यूनिफॉर्म परिभाषा स्वीकार की, जिससे खनन और पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है. एक तरफ केंद्र सरकार इसे वैज्ञानिक और संरक्षण को मजबूत करने वाला कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे 'खनन माफिया' के लिए 'हरा झंडा' करार दे रहा रही है. आइए इस मामले से जुड़े सभी सवाल जो मन में उठ सकते हैं उनके जवाब जान लेते हैं. जिसके बाद अब पूरे देश में अरावली को लेकर बवाल मचा हुआ है. आइए जानते हैं एक-एक सवालों के जवाब. सबसे पहले जानते हैं.

अरावली हिल्स या अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है. यह दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड माउंटेन सिस्टम्स में गिनी जाती है, जिसकी उम्र लगभग 2 अरब वर्ष बताई जाती है. लंबे समय के अपरदन (इरोजन) और अपक्षय के कारण अब यह ऊंची चोटियों वाली श्रृंखला नहीं, बल्कि अवशिष्ट (रेम्नेंट) पहाड़ियों की श्रृंखला बन गई है.

कहां तक फैली हुई है अरावली हिल्स?

अरावली गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है. अरावली दिल्ली-NCR से शुरू होकर राजस्थान के अलवर, जयपुर, अजमेर, उदयपुर, सिरोही होते हुए गुजरात में समाप्त होती है. यह थार रेगिस्तान और इंडो-गंगा मैदान के बीच प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती है. जिसकी लगभग 692 किलोमीटर से अधिक (कुछ स्रोतों में 670-800 किमी का उल्लेख, लेकिन सबसे मान्य 692 किमी लिखा जा रहा है. अरावली में ज्यादातर पहाड़ियां 300 से 900 मीटर ऊंची हैं, लेकिन कुछ जगहों पर यह घने जंगल, झीलें और ग्रेनाइट की चट्टानों से भरी दिखती है. राजस्थान में यह रेगिस्तानी इलाके में हरी-भरी ओएसिस जैसी लगती है.

दिल्ली के लिए क्यों जरूरी है अरावली?

अरावली दिल्ली-NCR के लिए "ग्रीन लंग्स" की तरह काम करती है. यह थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकती है, जिससे दिल्ली और आसपास के इलाकों में मरुस्थलीकरण नहीं होता है. सर्दियों में स्मॉग और धूल को ट्रैप करती है, हवा की गति कम करती है, तापमान नियंत्रित रखती है और भूजल रिचार्ज करती है. पर्यावरणविदों के अनुसार, अरावली के बिना दिल्ली की वायु गुणवत्ता और खराब हो सकती है, क्योंकि यह उत्तर भारत के लिए एकमात्र बड़ा कार्बन सिंक है. थोड़ा विस्तार से जानेंगे तो अरावली दिल्ली और एनसीआर (नेशनल कैपिटल रीजन) के लिए एक प्राकृतिक 'रक्षा कवच' की तरह काम करती है. जिसमें कुछ काम निम्न हैं.

  1. रेगिस्तान को रोकना (Desertification Barrier): अरावली थार रेगिस्तान को पूर्वी राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के उपजाऊ मैदानों में फैलने से रोकती है.अगर यह कमजोर हुई, तो दिल्ली तक रेगिस्तान पहुंच सकता है, जिससे मिट्टी का कटाव बढ़ेगा और कृषि प्रभावित होगी.
  2. हीट वेव और प्रदूषण से सुरक्षा: पश्चिम से आने वाली जानलेवा लू (गर्म हवाएं) और धूल भरी आंधियों को रोकती है.दिल्ली रिज (अरावली का हिस्सा) हवा की गुणवत्ता बनाए रखता है, प्रदूषण कम करता है.बिना अरावली के दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या (जैसे PM2.5) और बदतर हो सकती है, जिससे सांसों से जुड़े मामले बढ़ेंगे.
  3. जल संरक्षण: अरावली की चट्टानी संरचना बारिश के पानी को रोककर भूजल रिचार्ज करती है. यह दिल्ली-एनसीआर के पानी की कमी को रोकती है.
  4. जैव विविधता और जलवायु नियंत्रण: इसमें जंगल, वन्यजीव (जैसे सरिस्का टाइगर रिजर्व) और कार्बन सिंक हैं, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ते हैं.दिल्ली के लिए यह 'ग्रीन वॉल' है, जो गर्मी कम करती है.
  5. बिना अरावली के दिल्ली एक बंजर, गर्म और प्रदूषित शहर बन सकती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि 10-30 मीटर ऊंची छोटी पहाड़ियां भी धूल रोकने में उतनी ही प्रभावी हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की क्या दी है नई परिभाषा?

अरावली विवाद सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2025 के फैसले से शुरू हुआ है, जिसमें अरावली की नई परिभाषा स्वीकार की गई और कहा गया कि लोकल रिलीफ (आसपास की जमीन से) 100 मीटर या अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही "अरावली हिल" माना जाएगा. इसमें ढलानें और आधार भी शामिल हैं. दो या ज्यादा ऐसी हिल्स जो एक-दूसरे से 500 मीटर के अंदर हों उसे अरावली रेंज माना जाएगा. केवल अरावली सुपरग्रुप और दिल्ली सुपरग्रुप की चट्टानों वाली हिल्स, जो पेलियोप्रोटेरोजोइक से मेसोप्रोटेरोजोइक युग की हों उसे भूगर्भीय आधार माना जाएगा. यह परिभाषा केंद्र की पर्यावरण मंत्रालय की समिति ने मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाई. यह परिभाषा मई 2024 में बनी कमिटी ने अक्टूबर 2025 में सौंपी. पुरानी परिभाषाएं राज्य दर राज्य अलग थीं, इससे कन्फ्यूजन था. 

अभी का अरावली विवाद क्या है?

सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा पर पर्यावरणविदों और विपक्ष का कहना है कि इससे 90% क्षेत्र (कम ऊंचाई वाले हिस्से) असुरक्षित हो जाएगा, जो माइनिंग और निर्माण के लिए खुल सकता है, जिससे खनन, निर्माण और कमर्शियल गतिविधियां बढ़ सकती हैं. पर्यावरणवादी इसे "डेथ वारंट" कहते हैं, क्योंकि इससे जैव विविधता, पानी और हवा प्रभावित होगी.

सरकार अरावली मामले में क्या कह रही?

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस मामले में कहा है कि यह परिभाषा संरक्षण को मजबूत करती है. कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में केवल 0.19% हिस्सा माइनिंग के लिए योग्य है, बाकी 90% से अधिक संरक्षित रहेगा. नई माइनिंग लीज फ्रीज हैं, जब तक सस्टेनेबल माइनिंग प्लान नहीं बनता. कोई छूट नहीं दी गई, बल्कि अवैध माइनिंग पर नकेल कसी गई है. मंत्री ने आरोपों को "मिसइंफॉर्मेशन" बताया और कहा कि पुरानी परिभाषाएं अस्पष्ट थीं, जिससे माइनिंग माफिया फायदा उठाते थे.

विपक्ष अरावली मामले में क्यों कर रही है हल्ला? 

विपक्ष का कहना है कि इससे पर्यावरण विनाश, माइनिंग माफिया को फायदा होगा. सोनिया गांधी, अशोक गहलोत समेत कई लोगों ने #SaveAravalli कैंपेन चल रखा है. लेकिन BJP याद दिलाती है कि 2010 में कांग्रेस सरकार (गहलोत) ने ही 100 मीटर प्रस्ताव दिया था. अब विरोध कर रही है.

विवाद कब और कहां से शुरू हुआ? 2010 का कनेक्शन क्या है?

विवाद की जड़ें 1985 से हैं, जब अरावली में माइनिंग पर याचिका दायर हुई. लेकिन लेटेस्ट विवाद नवंबर 2025 के SC फैसले से शुरू हुआ, जब एक्सपर्ट कमिटी की 100 मीटर वाली परिभाषा स्वीकार की गई. 2010 में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) ने ढलान, बफर आदि के साथ परिभाषा दी थी, जो राजस्थान सरकार (तब कांग्रेस के CM अशोक गहलोत के समय) से जुड़ी थी. SC ने 2010 में इसे रिजेक्ट कर दिया था, क्योंकि यह बहुत संकुचित थी. अब 2025 में उसी तरह की परिभाषा स्वीकार करने पर विवाद है. गहलोत अब विरोध कर रहे हैं, कहते हैं कि BJP इसे लागू कर पर्यावरण बर्बाद कर रही है, BJP सरकार माइनिंग माफिया के साथ मिलकर अरावली को नुकसान पहुंचा रही है.जबकि BJP कहती है कि गहलोत का कैंपेन राजनीतिक है. 

BJP अब क्या कह रही है?

BJP का स्टैंड है कि अरावली सुरक्षित है. पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा: "भ्रम फैलाना बंद करें. अरावली के 90% से अधिक क्षेत्र संरक्षित है, माइनिंग केवल 0.19% में संभव." वे कहते हैं कि SC फैसला संरक्षण को मजबूत करता है, नई लीज रोकी गईं, और अवैध माइनिंग पर कार्रवाई हो रही है. BJP ने गहलोत के कैंपेन को "फेक न्यूज" बताया और कहा कि पुरानी अस्पष्ट परिभाषाओं से माफिया फायदा उठाते थे. राजस्थान BJP ने कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया. 

समुद्र तल से 100 मीटर का क्या है मामला? 

समुद्र तल (Mean Sea Level) पूरी दुनिया में एक समान रेफरेंस पॉइंट है, जो औसत समुद्री स्तर पर आधारित है. लेकिन अरावली की परिभाषा में "100 मीटर" समुद्र तल से नहीं, बल्कि लोकल रिलीफ (आसपास की जमीन से ऊंचाई का अंतर) से है. मतलब, अगर कोई पहाड़ी आसपास की घाटी से 100 मीटर ऊंची है, तो वह अरावली हिल है. भले ही समुद्र तल से उसकी कुल ऊंचाई कितनी भी हो. कन्फ्यूजन यह है कि कुछ लोग इसे समुद्र तल से जोड़ रहे हैं, लेकिन मंत्री यादव ने क्लैरिफाई किया: "यह टॉप से बॉटम 100 मीटर स्प्रेड है, न कि टॉप 100 मीटर." इससे अरावली की ज्यादातर कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां (जो समुद्र तल से ऊंची हैं लेकिन लोकल में कम) प्रभावित हो सकती हैं, अगर वे परिभाषा से बाहर हो जाती हैं. 

अरावली को बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

SC ने सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान (MPSM) बनाने का निर्देश दिया, जिसमें प्रतिबंधित जोन, मैपिंग और रेस्टोरेशन शामिल. केंद्र ने जून 2025 में 'अरावली ग्रीन वॉल' प्रोजेक्ट शुरू किया, जो 29 जिलों में 5 किमी बफर जोन में हरित आवरण बढ़ाएगा. अवैध माइनिंग पर ड्रोन सर्विलांस और सख्त नियम. लेकिन पर्यावरणविद पूरे क्षेत्र को 'क्रिटिकल इकोलॉजिकल जोन' घोषित करने की मांग कर रहे हैं. 

खनन का अरावली पर क्या प्रभाव पड़ा है?

पिछले दशकों में अत्यधिक माइनिंग से वायु प्रदूषण बढ़ा, भूजल स्तर गिरा, जैव विविधता नष्ट हुई. अवैध माइनिंग जारी है, जिससे मरुस्थलीकरण का खतरा. SC ने कहा कि पूर्ण बैन से अवैध गतिविधियां बढ़ती हैं, इसलिए नियंत्रित दृष्टिकोण अपनाया. लेकिन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध माइनिंग अब भी समस्या है. 

विरोधी दलों और एक्टिविस्ट्स माइनिंग पूर्ण बैन की मांग कर रहे हैं 

SC ने पूर्ण बैन नहीं लगाया, क्योंकि पिछले अनुभवों से अवैध माइनिंग बढ़ जाती है. मौजूदा वैध माइनिंग सख्त रेगुलेशन के साथ जारी, नई लीज रोकी गईं. संवेदनशील क्षेत्र (टाइगर रिजर्व, वेटलैंड्स) हमेशा प्रतिबंधित. लेकिन विरोधी दलों और एक्टिविस्ट्स पूर्ण बैन की मांग कर रहे हैं. 


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