ग्वालियर में पत्रकारिता अपराध बनती जा रही है!
कलम पर पहरा, कैमरे पर हमला और सत्ता की चुप्पी !
ग्वालियर में पत्रकारिता करना अब मिशन नहीं, जोखिम बनता जा रहा है। जिस शहर को कभी संस्कार, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक माना जाता था, वहाँ आज सच लिखना और दिखाना अपराध जैसा माना जाने लगा है। बीते कुछ समय से ग्वालियर में सीनियर पत्रकारों के साथ अभद्रता, धमकी, कैमरा बंद कराने, फोन छीनने और बंधक बनाने जैसी घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। हैरानी की बात यह है कि इन घटनाओं में
- कभी वर्दीधारी,
- कभी राजनीतिक संरक्षण में पलने वाले माफिया,
- तो कभी व्यापारी और दबंग तत्व
एक ही मानसिकता के साथ दिखाई देते हैं...
क्या अब खबर बनाने से पहले इजाज़त लेनी होगी?
क्या पत्रकार अब यह पूछकर रिपोर्टिंग करें कि...
“आप रिश्वत ले रहे हैं, मारपीट कर रहे हैं या अवैध निर्माण कर रहे हैं… क्या हम इसका वीडियो बना लें?”
अगर यही पत्रकारिता का नया “प्रोटोकॉल” है, तो फिर प्रेस की स्वतंत्रता केवल संविधान की किताबों तक ही सीमित रह जाएगी।
पत्रकार को ही आरोपी बना देने की नई परंपरा...
जिसके खिलाफ खबर बनने लगती है, वही सबसे पहले पत्रकार का आईडी कार्ड मांगता है, धमकाता है,कैमरा बंद कराता है,और अंत में उल्टा आरोप लगा देता है कि पत्रकार पैसे मांग रहा था।
यह एक खतरनाक और सुनियोजित प्रवृत्ति बन चुकी है...
“खबर बनाने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर दो।”
हालिया घटनाएँ केवल संयोग नहीं...
- भिंड में पत्रकारों के साथ एक आईपीएस स्तर के अधिकारी द्वारा दो पत्रकारों के साथ मारपीट के आरोप !
- मुरार में कवरेज के दौरान महिला पत्रकार का पुलिस कर्मी द्वारा फोन छीने जाने का प्रयास।
- एक पुलिस थाने में एक न्यूज़ के संचालक के साथ महिला थाना प्रभारी द्वारा अभद्रता।
- सिंधिया छतरी परिसर में कवरेज के दौरान सीनियर फोटो और उन्हें बचाने आए सीनियर पत्रकार के साथ भी वही रवैया।
ये घटनाएँ बताती हैं कि कि पत्रकारों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने वालों के द्वारा, अवश्य ही कोई अवैधानिक और अनैतिक कार्य किया जा रहा था या किया जा रहा है, और वे नहीं चाहते हैं की इसकी भनक भी समाज या शासन को लगे। यही कारण होते हैं जिनकी वजह से पत्रकारों को कवरेज करने से रोकने का प्रयास किया जाता है।
जबकि पत्रकारों को कवरेज करने या फोटो/वीडियो बनाने का अधिकार कुछ मंत्रालयों,सेना,देश की सुरक्षा आदि से जुड़े संस्थानों को छोड़कर संविधान द्वारा दिया गया है। पुलिस थाने एवं सार्वजानिक कार्य से जुड़े सरकारी कार्यालय आदि इस श्रेणी में नहीं आतेहैं। इसलिए यहां कवरेज की जा सकती है।
जिन मामलों में और जहां पत्रकारों को कवरेज करने से रोकने का प्रयास किया गया है,वे भी किसी प्रकार से प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित नहीं हैं। सड़क,थाना परिसर और एक राजपरिवार के समाधि (शांति ) स्थल पर कवरेज से रोकने का प्रयास करने वालों द्वारा आखिर ऐसा क्या अवैधानिक और अनैतिक कार्य किया जा रहा था जिसके चलते पत्रकारों को रोका गया उनके साथ इस प्रकार का अमर्यादित व्यवहार किया गया।
मामला किसी एक पत्रकार का नहीं,पूरे पत्रकार समाज को डराने की कोशिश है। शासन–प्रशासन की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल है। जब बार-बार सीनियर पत्रकारों के साथ ऐसी घटनाएँ हो रही हैं और कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखती, तो यह स्वाभाविक है कि पत्रकार जगत इसे मौन सहमति या संरक्षण के रूप में देखे।
स्पष्ट चेतावनी है...
ग्वालियर का पत्रकार समाज न तो नासमझ है, न नोसिखिया। हम अपनी मर्यादाएँ जानते हैं, लेकिन अपमान, धमकी और झूठे आरोप अब स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
यदि भविष्य में किसी भी पत्रकार के साथ ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है,तो उसका जवाब पत्रकार अपने तरीके से देंगे, और इसके लिए शासन–प्रशासन स्वयं जिम्मेदार होगा।
क्योंकि याद रखिए ...
- ✒️ कलम झुकी तो लोकतंत्र गिरेगा।
- 📷 कैमरा रुका तो सच अंधेरे में चला जाएगा।
- 📰 और अगर पत्रकार डर गया, तो समाज गूंगा हो जाएगा।











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