सहरिया जनजाति की कला, जीवनशैली और स्वावलंबी परंपराएं आज भी जीवंत हैं...
जेयू में सहरिया जनजाति विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न, 21 शोधपत्रों का हुआ वाचन
ग्वालियर। जनजातीय समाज के लिए ठोस और व्यावहारिक कार्य किए जाएं। उनकी विरासत को सुरक्षित रखते हुए उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और चिकित्सा जैसी सुविधाओं के माध्यम से मुख्यधारा से जोड़ा जाना चाहिए। सहरिया जनजाति की कला, जीवन-शैली और स्वावलंबी परंपराएं आज भी जीवंत हैं। विकास की प्रक्रिया में कला की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए विकास और सांस्कृतिक स्वरूप के बीच निरंतर संवाद स्थापित होना चाहिए।
यह बात रविवार को महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय छतरपुर के कुलगुरु प्रो. राकेश कुशवाह ने जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला, जनजातीय अध्ययन एवं विकास केन्द्र तथा प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान के संयुक्त तत्वावधान में "सहरिया जनजातियों में सामाजिक सांस्कृतिक स्वरूप के बदलते परिदृश्य" विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कही।
विशिष्ट अतिथि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल के अधीक्षक पुरातत्वविद् डॉ. मनोज कुमार कुर्मी ने कहा कि हमें अपने पारंपरिक ज्ञान को गहराई से समझने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब पारंपरिक ज्ञान को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ा जाए। सहरिया जनजाति को समझने के लिए केवल अकादमिक अध्ययन पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके बीच जाकर उनके जीवन को निकट से देखना और समझना होगा। अध्यक्षता कर रहे जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरुडॉ. राजकुमार आचार्य ने कहा कि जो समाज अपने सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ा रहता है, उसका आचरण और व्यवहार अलग व विशिष्ट होता है।
भारत समरूपता और अनेकता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है। सहरिया जनजाति का जल, जंगल और जमीन के प्रति समर्पण उल्लेखनीय है और प्रकृति संरक्षण में उनका योगदान सदियों से रहा है। इस मौके पर आयोजन सचिव प्रो. शांतिदेव सिसोदिया ने अतिथियों को शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। संगोष्ठी में कुल 21 शोधपत्रों का वाचन हुआ, जिनमें सहरिया जनजाति के सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और समकालीन पहलुओं पर गहन विमर्श किया। संचालन समीक्षा भदौरिया ने किया। शुरुआत में दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना भूमि पांडेय व सोनिया वर्मा ने की। स्वागत भाषण डॉ. शांतिदेव सिसोदिया ने दिया।
तीसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान के निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग एवं सह अध्यक्षता शासकीय महाविद्यालय सेहराई अशोकनगर के प्राचार्य डॉ. अतुल गुप्ता ने की। डॉ. गुप्ता ने भारतीय ज्ञान परंपरा के संवाहक सहारिया आदिवासी (चिकित्सीय एवं औषधीय ज्ञान के विशेष संदर्भ में) विषय पर विचार रखे। इसमें समीक्षा गुप्ता, राजकुमार गोखले, रुचि श्रीवास्तव, दीप्ति मेहदवार, शिवानी शर्मा, कुलदीप इटोरिया, राजसिंह घुरैया एवं डॉ. अमिता खरे ने शोधपत्र प्रस्तुत किए।










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