जनहित के नाम पर जन-उपेक्षा !
सड़कों पर हालात यह हैं कि हेलमेट पहनकर चलना सुरक्षा नहीं, सज़ा जैसा अनुभव देता है !
"सुरक्षा के नाम पर आदेश नहीं, समाधान चाहिए।
पहले सड़कें ठीक कीजिए, फिर नियम थोपिए!"
मध्य-प्रदेश में माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से निवेदन है कि जनहित के नाम पर दिए जाने वाले फैसलों में ज़मीनी सच्चाई को भी देखा जाए। कहीं ऐसा न हो कि जनता के हित की आड़ में फैसले उन्हीं के लिए बोझ बन जाएं, और लाभ सरकारों या उद्योगपतियों को मिल जाए।
हाल ही में नगर निगम सीमा के भीतर दो पहिया वाहन चालकों और पीछे बैठी सवारी पर हेलमेट अनिवार्यता का आदेश जारी हुआ है। पहली नज़र में यह नियम "सुरक्षा" की दिशा में उठाया गया कदम लगता है, लेकिन जरा सड़कों की हकीकत देखिए—
जहाँ सड़क से ज़्यादा गड्ढे, और ट्रैफिक से ज़्यादा ठेले-ऑटो और टमटम हैं, वहाँ हेलमेट पहनकर चलना सुरक्षा नहीं, सज़ा जैसा अनुभव देता है।
⚠️ क्या अदालतें और प्रशासन ज़मीनी हालात से वाकिफ हैं !!!
प्रदेश की सड़कों पर हालात यह हैं कि...
- जगह-जगह खुले गड्ढे दुर्घटनाओं का कारण बने हुए हैं,
- ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त है,
- ऑटो, टमटम और ठेलेवालों की मनमानी जारी है,
- और पैदल चलना तक दूभर हो चुका है।
ऐसे में सवाल उठता है-
क्या हेलमेट कानून का मकसद जनता की सुरक्षा है या चालान की वसूली?
🏍️ हाईवे की बात अलग, पर शहर की गलियों में...
- हाईवे पर तेज़ रफ्तार वाहनों के बीच हेलमेट जीवन रक्षक साबित होता है, इसमें कोई दो राय नहीं।
- लेकिन जब शहर की तंग गलियों और भीड़ भरे बाज़ारों में
- वाहन 20–30 किमी की रफ्तार से ज़्यादा चल ही नहीं सकता,
- तो वहाँ हेलमेट थोपना तर्कहीन और असंवेदनशील लगता है।
🔥 असली खतरा कौन, छोटे वाहन चालक या बड़े ट्रक-बस वाले !!!
- हर सड़क दुर्घटना का ठीकरा अक्सर छोटे दोपहिया चालकों के सिर फोड़ा जाता है,
- जबकि असली खतरा बड़े वाहनों की लापरवाह रफ्तार और नियमों की अनदेखी से होता है।
- परंतु नकेल हमेशा उन्हीं पर कसी जाती है, जिनकी जेब में जुर्माने भरने भर का ही दम है।
⚖️ चेतावनी- न्याय तभी टिकेगा जब न्यायसंगत होगा...
माननीय न्यायालयों से आग्रह है कि हर “जनहित” फैसले से पहले जनता की आवाज़ और ज़मीनी सच्चाई का अध्ययन किया जाए।
अन्यथा “जनहित” के नाम पर जनता पर ही बोझ डालने वाली नीतियाँ,न्याय पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर देंगी।
📢 जनता की आवाज़ ...
- हाई कोर्ट के माननीय न्यायाधीशगण जनहित के नाम पर कोई भी फैसला देने से पहले जमीनी वास्तविकता का अध्ययन करें, न कि सरकारों एवं फैक्ट्री संचालक ऑन को लाभ पहुंचाने के लिए कोई भी फैसला जनता पर थोप दिया जाए...
- प्रदेश में दो पहिया वाहन चालकों को नगर निगम सीमा की सिटी के galiyon बाजारों मैं भी सड़कों पर वाहन चालक एवं पीछे बैठी सवारी को हेलमेट लगाकर चलना अनिवार्य किया गया है। जबकि सड़कों पर बे-हताशा गड्ढे और भीड़ ऊपर से ऑटो टमटम वालों के कारण वाहन तो छोड़िए पैदल चलना भी मुश्किल है।
- ऐसे में in हेलमेट लगाकर चलने पर वाहन चालक की सुरक्षा नहीं मुसीबत बढ़ाने वाली और वैसे भी जब एक्सीडेंट होता है तो उसके लिए जिम्मेदार बेतहाशा रफ्तार और बड़ा बाहन चालक होता है। बड़े वाहन चालकों पर नकेल कसने की वजाय हमेशा छोटे वाहन चालक को कोई निशाना बनाया जाता है।
- हाईवे पर दो पहिया वाहन चालक का हेलमेट लगाना समझ में आता है क्योंकि वहां रफ्तार में वाहन चलते हैं लेकिन सिटी के अंदर तो ब-मुश्किल 20-30 की रफ्तार से वहां नहीं चल पा रहे हैं ऐसे में हेलमेट लगाकर वहां चालवणे का क्या औचित्य है !










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