G News 24 : 20 नवंबर का मुहूर्त बिहार की नई सरकार को स्थिरता देगा, क्या बिहार की किस्मत बदलेगी !

 नीतीश की 10 वीं बार शपथ से पहले पंचांग, ज्योतिष और राजनीति का बड़ा विश्लेषण...

20 नवंबर का मुहूर्त बिहार की नई सरकार को स्थिरता देगा, क्या बिहार की किस्मत बदलेगी !

दिल्ली के गलियारों में मीटिंग और पटना के गांधी मैदान में प्रशासनिक गतिविधियां ऑल संकेत दे रहे हैं कि नई सरकार का शपथ ग्रहण 20 नवंबर को सुबह 11:30 बजे होने की संभावना है.बिहार में सत्ता बदलने की तैयारियां तेज़ हैं. राज्य की राजनीति में हलचल एवं शपथ की तारीख़ आमतौर पर एक औपचारिक घोषणा लगती है, लेकिन भारतीय परंपरा में इसे राज्य के आने वाले पांच सालों का दर्पण माना जाता है.

शपथ ग्रहण के शुभ मुहूर्त का महत्व केवल आध्यात्मिक या प्रतीकात्मक नहीं है. यह उस माहौल को दर्शाता है जिसमें सरकार कार्यकाल की शुरुआत करती है. भारत के पुराने राजदरबारों से लेकर आधुनिक लोकतंत्र तक, राजकीय आरंभ का समय तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति को देखकर चुना जाता रहा है. यह कोई गारंटी नहीं कि सरकार सफल या असफल होगी, लेकिन परंपरा यह मानती है कि शुरुआत जितनी शांत और संतुलित ऊर्जा में हो आगे का रास्ता उतना कम संघर्षपूर्ण होता है.

20 नवंबर 2025: पंचांग क्या संकेत देता है?

कल यानी गुरुवार को कृष्ण पक्ष की अमावस्या की तिथि रहेगी. शास्त्रो में गुरुवार यानी बृहस्पतिवार को नीति, ज्ञान, शासन और सलाह का प्रतीक बताया गया है. पंचांग के अनुसार शपथ ग्रहण का समय 11:30 बजे रखा गया है, इस दौरान चंद्रमा वृश्चिक राशि में गोचर करेगा. 

वृश्चिक राशि में 4 ग्रहों की युति दे रही बड़े संकेत

इस दिन सभी 12 राशियों में वृश्चिक राशि ही एक मात्र ऐसी राशि है जिसमें सबसे ज्यादा हलचल देखने को मिल रही है. वृश्चिक राशि में कई वर्षों में एक साथ चार ग्रहों की युति बनी है, जो एक दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग को दर्शा रहे हैं. वहीं इस दिन अनुराधा नक्षत्र रहेगा, जो शनि का नक्षत्र है. राजनीति में शनि को जनता का प्रतीक माना जाता है, ये संयोग भी शुभता को दर्शाता है. 

बिहार की नई सरकार, राह नहीं आसान!

विशेष बात ये है कि इस नक्षत्र के देवता मित्र देव हैं जिन्हें सौहार्द का भी देवता कहा जाता है. गठबंधन के लिए ये अति उत्तम संयोग है. सभी सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने में दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन इसकी एक विशेषता ये भी है कि अनुराधा नक्षत्र में शनि और मंगल दोनों ग्रहों का प्रभाव रहता है, जिससे दृढ़ निश्चयी, जिद्दी और अति महत्वाकांक्षी जैसे गुण  भी देखने को मिलते हैं. यानी आने वाले समय में सरकार के फैसलों और सहयोगी दलों के स्वाभाव में चीजें देखने को मिलेंगी.

गुरुवार के दिन शपथ लेने से क्या होगा?

गुरुवार को शपथ भारतीय परंपरा में शुभ माना जाता है क्योंकि शासन और नीति के काम गुरु-ऊर्जा के अधीन माने जाते हैं. शुक्ल पक्ष नई शुरुआत के लिए अच्छा माना जाता है. चंद्रमा वृश्चिक राशि  में होने से कार्य में गति को दर्शाता है.यानी सरकार जो भी फैसले लेगी उसे तुरंत लागू करने की कोशिश करेगी.

शपथ ग्रहण के लिए गांधी मैदान का चयन सही या गलत 

गांधी मैदान पटना का प्रमुख सार्वजनिक स्थल है. यहां बड़े राजनीतिक आयोजन होते रहे हैं, इसलिए इसका चयन प्रशासनिक रूप से स्वाभाविक है. परंपरागत मान्यताओं में खुले मैदानों और बड़े सार्वजनिक स्थलों को शुभ माना जाता है क्योंकि जनता का प्रत्यक्ष साक्ष्य, बड़े स्तर पर स्वीकार्यता और राज्य की ऊर्जा का खुला प्रवाह इसका प्रतीक बनाता है.

'नीतीश' की शपथ का इतिहास 

नीतीश कुमार भारत के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जिन्होंने कई बार शपथ ली और हर शपथ ने राजनीति का नया अध्याय खोल दिया. 2005 में सत्ता परिवर्तन स्थिर शुरुआत था, और गठबंधन पूरे समय टिके रहे. 2010 में अपेक्षाकृत संतुलित मुहूर्त में शपथ हुई. पांच साल का कार्यकाल बिना बड़े विवाद के पूरा हुआ. 2017 का परिवर्तन अशांत राजनीतिक समय में हुआ और सवा साल में ही सत्ता समीकरण बदल गया.

2025-2030: बिहार की दिशा क्या होगी !

  • 2025-26: प्रशासनिक तेज़ी, केंद्र-राज्य तालमेल, नीति-सुधार
  • 2026-27: मंत्रिमंडल में कुछ पुनर्संरचना
  • 2027-29: स्थिरता और बड़े फैसलों का दौर
  • 2030: नेतृत्व और गठबंधन के स्वरूप में बदलाव की संभावनाएं

कुल मिलाकर शपथ की घड़ी राज्य की किस्मत तय नहीं करती लेकिन उसकी शुरुआत किस ग्रह-नक्षत्र की ऊर्जा में हुई है यह आने वाले वर्षों की धुन ज़रूर बन जाती है.

मोदी, नीतीश और NDA का राजनीतिक संकेत ...

गुरुवार का दिन केंद्र की भूमिका को और मज़बूत बताता है. नीतीश का अनुभव और PMO की राजनीतिक रणनीति शुरुआती महीनों में स्थिरता का संकेत देता है. NDA के भीतर शुरुआत में तालमेल रहेगा, लेकिन पहले 60-90 दिनों में मंत्रालयों को लेकर हल्की खींचतान उत्पन्न हो सकती है. परंपरागत दृष्टि से इसे लंबी स्थिरता को प्रभावित करने वाला कारक नहीं माना जाता, बल्कि शुरुआती ऊर्जा संतुलन का हिस्सा माना जाता है.

विपक्ष क्या होगा?

राहु-केतु की मौजूदा चाल विपक्ष को तुरंत संगठित होने नहीं देती. चंद्र की स्थिति भी शपथ के समय सत्ता पक्ष को शुरुआती बढ़त देती है. लेकिन यह भी सच है कि 2026 के मध्य में विपक्ष का राजनीतिक उभार दोबारा तेज़ हो सकता है,यह प्रवृत्ति ग्रहों की नहीं, राजनीतिक चक्र की भी है.

Disclaimer: खबर मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि  G News 24 किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.

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