G News 24 : आश्विन मास की पूर्णिमा में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं को लिए हुए आकाश से अमृत वर्षा करता है !

इसे शरद पूर्णिमा तो कोई कोजागर पूर्णिमा तो कोई रास पूर्णिमा भी कहा जाता है ...

आश्विन मास की पूर्णिमा में चंद्रमा अपनी 16 कलाओं को लिए हुए आकाश से अमृत वर्षा करता है !

आश्विन मास की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि इस दिन जहां चंद्रमा अपनी 16 कलाओं को लिए हुए आकाश से अपनी रोशनी के जरिए अमृत वर्षा करता है तो वहीं इस दिन धन की देवी अपने भक्तों पर कृपा बरसाने के लिए पृथ्वी पर विशेष रूप से भ्रमण करती हैं. आश्विन मास की पूर्णिमा इन दोनों ही देवताओं के साथ भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए भी अत्यंत ही शुभ और फलदायी माना गया है.

हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन यदि कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान विष्णु के लिए व्रत रखते हुए पूजा और मंत्र जप आदि करता है तो उसके सभी काज श्रीहरि के आशीर्वाद से जरूर पूरे होते हैं, लेकिन यह पूजा तभी पूरी होती है जब आप इसमें पूरे समर्पण और मनोभाव से भगवान विष्णु की आरती करते हैं. आइए भगवान विष्णु की पूजा को संपन्न करने और उनसे मनचाहा वरदान दिलाने वाली आरती का गान करते हैं.

शरद पूर्णिमा पर सिर्फ मन के कारक चंद्र देवता, धन की देवी मां लक्ष्मी या फिर जगत के पालनहार भगवान विष्णु भर की पूजा नहीं होती है, बल्कि इस दिन श्री हरि के पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण की भी विशेष पूजा की जाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि में ही भगवान श्री कृष्ण ने 16108 गोपियों के साथ वृंदावन में यमुना नदी के किनारे रास रचाया था. बंसीवट नामक कान्हा की इस लीला को रासलीला भी कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की जिस महारास को देखने के लिए चंद्रमा ठहर गया था और भगवान शिव भी वेश बदलकर पहुंचे थे, आइए उसका धार्मिक महत्व जानते हैं. 

शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर रखी जाने की है परंपरा... 

कहते हैं कि इस पूर्णिमा का चन्द्रमा, सोलह कलाओं से युक्त होता है. इस दौरान चन्द्रमा से निकलने वाली किरणों कि प्रभा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित है. जो सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता रखती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात अमृत वर्षा होती है. इसमें लोग खुले आकाश तले खीर बना कर रखते हैं. जिसे दूसरे दिन लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.

वैज्ञानिक मतों के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है और रात को चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. जो मनुष्य को कई तरह बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद होती है. चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होने के कारण शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखा जाता है. रात भर खीर में चंद्रमा की किरणें पड़ने के कारण खीर में चंद्रमा की औषधीय गुण आ जाती हैं. फिर अगले दिन खीर खाने से सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

कान्हा ने क्यों रचाई रासलीला... 

हिंदू मान्यता के अनुसार जब कामदेव ने अपना कामबाण चलाकर महादेव को माता पार्वती की ओर आकर्षित कराया तो उन्हें अपने शक्तियों पर अभिमान हो गया और वे सभी के सामने अपने इस ताकत का दंभ भरने लगे. जब यह बात भगवान श्रीकृष्ण को पता लगी तो उन्होंने 16108 गोपियों को वृंदावन में बुलाकर रास रचाया था. इसके लिए उन्होंने अपने अनेकों रूप धारण करके प्रत्येक गोपी के साथ अलग-अलग नृत्य किया. 

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मान्यता है कि इस दौरान कामदेव के बहुत जोर लगाने के बाद भी किसी गोपी के भीतर कामवासना प्रवेश नहीं हुई. कान्हा के इस महारास के बाद कामदेव का अभिमान दूर हो गया. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी रास पूर्णिमा पर उनके मंत्र ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री' का जाप करने पर सभी दुख दूर और कामनाएं पूरी होती हैं. 

महरास देखने के लिए गोपी बन गये थे महादेव ...

पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण के इस महारास को देखने के लिए स्वयं देवों के देव महादेव भी वृंदावन के यमुना तट पर पहुंचे लेकिन यमुना नदी ने महारास को देखने की आज्ञा नहीं दी. तब भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण करके रास लीला देखने का निश्चय किया. मान्यता है कि महादेव के इसी स्वरूप को उनके भक्तगण गोपेश्वर महादेव के रूप में पूजते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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