झूठ की आदत या मानसिक रोग....
झूठ फैलाकर युवाओं को बरगलाने की सनक, लोकतंत्र एवं समाज के लिए खतरा !
"जब झूठ ही राजनीति का औजार बन जाए तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है।”
देश की राजनीति में आज एक ऐसा चेहरा उभर कर सामने आया है जो बार-बार झूठ बोलता है, पकड़े जाने पर माफी मांग लेता है और फिर अगले ही दिन वही हरकत दोहराता है। यह सिलसिला अब केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के युवाओं को भड़काकर सत्ता हथियाने की खतरनाक कोशिश में बदल चुका है। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ सत्ता का नशा है, या वाकई किसी गहरी मानसिक बीमारी का परिणाम?
ये सनकी जो शायद मानसिक रूप से बीमार है यही कारण है कि वो बार-बार झूठ बोलता है और झूठ पकड़े जाने पर सॉरी बोलकर निकल लेता है ! एक बार फिर झूठ बोल कर युवाओं को भड़काकर सत्ता पाने के प्रयास में है ! ऐसे मानसिक रोगी का इलाज जरूरी है क्योंकि इसे अगर समय पर इलाज नहीं मिला तो इसकी बीमारी ला-इलाज हो जाएगी! इसलिए सरकार को इस मानसिक रोगी के इलाज का इंतजाम करना चाहिए, यह सरकार का दायित्व भी बनता है !
झूठ की फैक्ट्री...
हर रोज़ नये झूठ गढ़ना, उन्हें सोशल मीडिया और मंचों से फैलाना और फिर उजागर होने पर सॉरी बोलकर निकल जाना—क्या यह सामान्य व्यवहार है? या यह उस बीमारी का लक्षण है जिसमें व्यक्ति झूठ बोलने का आदी हो जाता है और धीरे-धीरे हकीकत से उसका रिश्ता टूट जाता है?
युवाओं को गुमराह करने का षड्यंत्र...
आज का युवा देश के भविष्य की ताकत है। लेकिन सत्ता पाने की हवस में कुछ लोग उन्हें भ्रमित कर, भड़काकर और गुमराह कर रहे हैं। यह केवल राजनीति का अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक अपराध भी है। देश का लोकतंत्र तब ही मजबूत रहेगा जब युवाओं को झूठ और प्रोपेगेंडा से बचाया जा सके।
सरकार की जिम्मेदारी...
अगर यह सच में मानसिक रोग है, तो सरकार का दायित्व बनता है कि ऐसे व्यक्ति का समय रहते इलाज करवाए। क्योंकि यदि इलाज न हुआ, तो यह बीमारी "लाइलाज" होकर समाज और राजनीति दोनों के लिए घातक साबित होगी।
अब वक्त आ गया है कि जनता और सरकार, दोनों गंभीरता से सोचें। लोकतंत्र में बहस, विरोध और आलोचना ज़रूरी है, लेकिन झूठ और मानसिक असंतुलन की राजनीति देश को अराजकता की ओर ले जाएगी। और अगर यह सच में एक बीमारी है तो इलाज ज़रूरी है, क्योंकि किसी भी लोकतंत्र को "बीमार राजनीति" की नहीं, "स्वस्थ नेतृत्व" की ज़रूरत होती है।
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