G News 24 : मां दुर्गा का आगमन इस बार हाथी पर हो रहा है और देवी मां प्रस्थान नौका पर करेंगी !

देशवाशियों शारदीय नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं...ग्वालियर न्यूज़ 24 परिवार

मां दुर्गा का आगमन इस बार हाथी पर हो रहा है और देवी मां  प्रस्थान नौका पर करेंगी  !

शक्ति की साधना का महापर्व आज 22 सितंबर 2025, सोमवार से प्रारंभ हो रहा है.  मां दुर्गा का आगमन इस बार हाथी पर हो रहा है और उनकी वापसी नौका पर होगी. नवरात्रि में माता के वाहन का क्या महत्व होता है, इस बार पंचांग के अनुसा इस साल नवरात्रि का महापर्व 9 की बजाय 10 दिनों तक मनाया जाएगा क्योंकि इस साल चतुर्थी तिथि की वृद्धि हो रही है. जो कि 25 और 26 सितंबर दो दिनों तक रहेगी. 

पंचांग के अनुसार मां दुर्गा का विसर्जन 02 अक्टूबर 2022, बृहस्पतिवार को दशहरे वाले दिन होगा. हिंदू मान्यता के अनुसार नवरात्रि के दिनों का बढ़ना शुभ संकेत माना जा रहा है. इसी प्रकार माता का गुरुवार के दिन हाथी पर सवार होना भी सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है. आइए जानते हैं कि शेर पर सवारी करने वाली माता के वाहन से आने और जाने का क्या संकेत होता है. 

मां दुर्गा के आगमन का वाहन ...

हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की सवारी वैसे तो मुख्य रूप से शेर की मानी जाती है लेकिन नवरात्रि में उनका आगमन अलग-अलग वाहन पर होता है. जैसे इस साल देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही है, जिसे हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि माता के हाथी पर आने से विश्व का कल्याण होगा और सुख-समृद्धि फैलेगी. अन्न-धन में वृद्धि होगी. इसी प्रकार इस साल मां दुर्गा पालकी पर सवार होकर अपने लोक को प्रस्थान करेंगी. इसे भी हिंदू धर्म में शुभ संकेत माना गया है. मान्यता है कि पालकी से प्रस्थान करने पर मंगलदायक कार्य संपन्न होते हैं और हर जगह सुख-शांति बनी रहती है. 

किस-किस वाहन पर आती हैं मां दुर्गा ...

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता का वाहन हमेशा सप्ताह के वार से तय होता है. कहने का तात्पर्य यह कि यदि नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से होती है तो माता का वाहन गज या फिर कहें हाथी होता है, जो कि शुभता का संकेत होता है. इसी प्रकार यदि देवी का यह महापर्व मंगलवार या शनिवार के दिन प्रारंभ होता है तो माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं जिसे सनातन परंपरा में शुभ नहीं माना जाता है. वहीं जब नवरात्रि का पर्व बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार के दिन शुरू होता है तो माता डोली पर सवार होकर आती हैं. इसका संकेत भी शुभ नहीं माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार यह अशांति और रोग आदि का संकेत होता है. 

मां दुर्गा के प्रस्थान वाहन का संकेत ...

हिंदू मान्यता के अनुसार यदि माता बृहस्पतिवार को विदा हों या फिर कहें उनका विसर्जन इस दिन हो तो माता पालकी पर सवार होकर जाती हैं, जिसे शुभ माना जाता है.लेकिन रविवार और सोमवार के दिन माता भैंसा पर सवार होकर जाती है, जो अशुभ संकते होता है. मंगलवार और शनिवार के दिन माता घोड़े पर सवार होकर जाती हैं तो उसे आपदा आदि का संकेत माना जाता है. इसी प्रकार बुधवार और शुक्रवार के दिन माता हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं, जिसे बेहद शुभ संकेत माना जाता है. 

 नवरात्रि व्रत कथा ...

नवरात्रि की पावन कथा इस प्रकार है... एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र और आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत को करने से क्या फल मिलते हैं, इसे किस प्रकार करना चाहिए ? सबसे पहले इस व्रत को किसने किया ? 

इस पर ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित के लिए तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो भी मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली मां दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है। इस व्रत को करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की कामना वाले व्यक्ति को धन, विद्या चाहने वालों को विद्या और सुख की इच्छा रखने वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। ये व्रत मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियों को दूर कर देता है और घर में सुख-समृद्धि बढ़ाता है। इस व्रत को करने से समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है। साथ ही जो मनुष्य इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो, भूख और प्यास से व्याकूल इधर-उधर घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है। जो सधवा स्त्री इस व्रत को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना प्रकार के दुखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और दस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूं।

ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रह करता था, वह मां भगवती का भक्त था। उसे संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता तो वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई जिस कारण वह मां भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता क्रोधित हो हए और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।

पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।

जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।

उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।

इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।

ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु (ठीक है) ऐसा वचन कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।

महातम्य- इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।

ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्6य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शरक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं .)

Reactions

Post a Comment

0 Comments