G News 24 : शिक्षा विभाग का बाबू,शासकीय आवास में चला रहा है व्यावसायिक डेरी !

 शासकीय कर्मचारी ही उड़ा रहे हैं शासकीय नियमों की धज्जियां ...

शिक्षा विभाग का बाबू,शासकीय आवास में चला रहा है व्यावसायिक डेरी !

ग्वालियर। शासकीय नियमों की धज्जियां सबसे ज्यादा शासकीय कर्मचारी और अधिकारी ही उड़ाते हैं। यदि इनकी करगुजारियों को कोई उजागर करने का प्रयास करता है तो यह उल्टा उसी को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हैं। आज आज हम जिस खबर की चर्चा कर रहे हैं उसे खबर को जानकर उन कर्मचारियों का खून खौल जाएगा जो बाहर से होते हैं और नौकरी के दौरान शहर के अंदर शासकीय आवास पाने के चक्कर में न जाने कितने अधिकारियों के दफ्तरों  के चक्कर काटते रहते हैं फिर भी उन्हें आवास उपलब्ध नहीं हो पाता है।

लेकिन जो सिस्टम की कमियों को जानते हैं वे शहर में अपना खुद का आवास होते हुए भी अपने लिए सरकारी आवास अपने उच्च अधिकारियों से मिलकर आवंटित कर लेते हैं इतना ही नहीं यदि किसी छोटे कर्मचारी का आवास खाली है तो उस पर में भी अपना आधिपत्य जमाते हुए कमर्शियल गतिविधियां आरंभ कर देते हैं।

यहां हम जिस खबर का आपकी उससे जिक्र करने जा रहे हैं वह खबर है शिक्षा नगर आवासीय कॉलोनी की जिसमें ग्वालियर शिक्षा विभाग के ज्वाइन डायरेक्टरऑफिस में कार्यरत बाबू रोहित उपाध्याय का स्वयं का आवास न्यू कॉलोनी बिरला नगर ग्वालियर में है। इसके बावजूद उसने अपने लिए शासकीय शिक्षा महाविद्यालय की सरकारी आवास कॉलोनी शिक्षा नगर में अपने लिए सरकारीआवास क्रमांक 19 एच आवंटित करा रखा है, जिसमें वह स्वयं निवासरत है। यहां तक तो चलो ठीक भी माना जा सकता है !

लेकिन श्रीमान उपाध्याय जी ने इसी कॉलोनी में ही शासकीय शिक्षा महाविद्यालय के प्रिंसिपल के सर्वेंट को जो आवास आवंटित होना चाहिए था वह ग्वालियर शिक्षा विभाग के ऑफिस में पदस्थ पियूंन हीरालाल के  नाम से आवंटित है। लेकिन वह इसमे नहीं रहता है क्योंकि हीरालाल का खुद का मकान गोशपुरा ग्वालियर में है। इस आवास में श्री उपाध्याय ने अवैध रूप से डेयरी संचालित कर रखी है । अब इसके बदले में क्या हीरालाल किराया लेता है या किसी अन्य लालच के चलते हीरालाल ने यह आवास आवंटित होने के बाद रोहित उपाध्याय के सुपुर्द कर दिया है। आवासीय कॉलोनी के इस आवास में रोहित उपाध्याय ने गाय पाल रखी हैं। जिनका दूध विक्रय करके उनके द्वारा संभवतः कमर्शियल एक्टिविटी की जा रही है। इस आवास परिसर में वकायदा गाय भी बंधी हुईं हैं और उनका दाना पानी रखा हुआ देखा जा सकता है। 

इतना ही नहीं इस डेयरी की देखभाल व संचालन के लिए उन्होंने बाकायदा एक परिवार को नौकरी पर रखा हुआ है। ग्वालियर जिला शिक्षा विभाग जिला प्रशासन एवं शासकीय शिक्षा महाविद्यालय राज्य प्रशासन के अधीन कार्य करते हैं। लेकिन फिर भी दोनों अधिकारी एवं कर्मचारियों का गठबंधन देखिए कि किस प्रकार का घाल मेल हो रहा है। 

इस बारे में जब शासकीय शिक्षा महाविद्यालय के प्रभारी प्रिंसिपल ए के पंडित से जानकारी लेना चाहि तो शुरुआत में तो उन्होंने हमारे संवाददाता को हड़काने का प्रयास किया और उस पर फिजूल के आरोप लगाते हुए उसे धमकाते हुए शासकीय कार्य में बाधा डालने का इल्जाम लगाने का प्रयास किया लेकिन जब हमारे संवाददाता ने उन्हें आवास में चल रही डेयरी और वहां की केयरटेकर के वीडियो दिखाए तो उनके तेवर कुछ शांत हुए और उनसे कोई जवाब देते नहीं बना।

इतना ही नहीं रोहित उपाध्याय पहले भी की गई तमाम अनियमिताओं के चलते विभागीय जांच का भी सामना कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार उन पर आरोप है कि उन्होंने मान्यता विभाग एवं स्टोर विभाग मैं रहते हुए भी कुछ अनैतिक कार्यों को अंजाम दिया था जिनके कारण उन्हें विभागीय जांच का सामना करना पड़ रहा है बावजूद इसके जॉइंट डायरेक्टर द्वारा स्टोर विभागों का काम फिर से इन्हें ही सौंप दिया गया है। 

ऐसे में जिस विभाग की जांच उनके खिलाफ चल रही है इस विभाग की जिम्मेदारी इन्हें सोंपा जाना मामले पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। इनके खिलाफ चल रही  जांच अब कैसे अपने मकसद को पूरा कर पाएगी ? यदि ये इस विभाग में कार्य करेंगे तो क्या जांच प्रभावित नहीं होगी ? आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं। इस प्रकार की कार्य प्रणाली कहीं ना कहीं जॉइंट डायरेक्टर एवं प्राचार्य शासकीय शिक्षा महाविद्यालय को भी संदेह के घेरे में खड़ा करती है। 

सूत्रों के अनुसार इस शिक्षा नगर का यह एक अकेला मामला नहीं है। ऐसा ही एक अन्य मामला है जिसमें शासकीय शिक्षा महाविद्यालय की हॉस्टल वार्डन गीता सिसोदिया ने अपने नाम से आवास नंबर 10,आवंटित कर रखा है लेकिन उसमें उसे स्वयं निवास नहीं करती हैं बल्कि उनकी लड़की एवं दामाद रहते हैं। जबकि श्रीमती सिसोदिया अपने स्वयं के गांधीनगर वाले मकान मैं रहती हैं। 

एक और आवास नंबर 6, जो एसडी ओझा के नाम से आवंटित है जो कि शासकीय शिक्षा महाविद्यालय में शिक्षक हैं लेकिन वे भी इस आवास में नहीं रहते हैं बल्कि उनका लड़का इस आवास में रहता है। और श्री ओझा सागर ताल वाले अपने निजी मकान में रहते हैं। 

इन सभी के स्वयं के आवास हैं इसके बावजूद भी इन्होंने सरकारी आवास आवंटित करा रखे हैं जिनमें इनके परिजन निवासरत है। अभी तो ये कुछ ही मामले हैं जो हमें सूत्रों के माध्यम से पता चले हैं। ना जाने कितनी और ऐसी खबरें होगीं जो अभी तक बाहर नहीं आई है। क्या करें ऐसी व्यवस्था का, जिसमें जरुरतमंद को आवास मिलता नहीं है और जिन लोगों ने आवंटित करा रखे हैं वे इनमें रहते नहीं है, कोई इनमें अवैध डेयरी चला रहा है तो किसी के परिजन इन आवासों का उपयोग कर रहे हैं ! क्रमश:

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