G News 24 : विपक्ष सवाल उठाए पर राष्ट्रहित की लक्ष्मण रेखा पार न करे,देश की जनता को मूर्ख न समझे !

 सवाल लोकतंत्र की आत्मा हैं, लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए...

विपक्ष सवाल उठाए पर राष्ट्रहित की लक्ष्मण रेखा पार न करे,देश की जनता को मूर्ख न समझे !

लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका सिर्फ आलोचना तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह एक रचनात्मक शक्ति होती है जो सरकार को जवाबदेह बनाती है। सत्ता पक्ष की नीतियों, योजनाओं और निर्णयों पर सवाल उठाना विपक्ष का अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है। लेकिन जब यह अधिकार ओछी मानसिकता और संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल होने लगे, तो यह देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरनाक बन जाता है।

हाल के वर्षों में कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ विपक्ष ने सरकार के ऐसे निर्णयों पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए जो सीधे तौर पर देश की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और सैनिकों के मनोबल से जुड़े हुए हैं। सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई हो या सर्जिकल स्ट्राइक जैसी निर्णायक पहल, इन पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठाना न केवल सेना के जज्बे का अपमान है, बल्कि देश की छवि को भी नुकसान पहुंचाने वाला कृत्य है।

अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ नेता सेना की कार्रवाइयों को ‘राजनीतिक स्टंट’ कहने से भी नहीं चूकते। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि जब किसी आतंकी हमले में मारे गए निर्दोष नागरिकों के परिजन सामने आकर अपने दर्द को साझा करते हैं, तब भी उनके बयानों को झूठा ठहराने का प्रयास होता है। यह न सिर्फ मानवता के खिलाफ है, बल्कि देशवासियों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।

सवाल उठाना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन हर सवाल का समय, स्थान और संदर्भ होता है। सेना के ऑपरेशन के बीच या उसके तुरंत बाद विरोध करना या सरकार की नीयत पर शक करना न केवल सेना की कार्रवाई को कमजोर करता है बल्कि दुश्मनों को राजनीतिक विभाजन का संकेत भी देता है। इससे न केवल भारत की सुरक्षा रणनीति पर असर पड़ता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी भारत की संप्रभुता और संकल्प पर सवाल उठने लगते हैं।

विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्ता एक दिन उन्हें भी मिल सकती है। आज जो लोग बिना तथ्यों के सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, कल वही लोग जब सत्ता में होंगे तो देश के सामने खड़ी चुनौतियों की गंभीरता को समझेंगे।

जनता अब यह भली-भांति समझने लगी है कि कौन राष्ट्रहित की बात करता है और कौन राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में जुटा है। विपक्ष को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है – क्या उनका विरोध राष्ट्रहित के लिए है या केवल विरोध करने के लिए?

सवाल उठाइए, पर राष्ट्रहित की लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण मत कीजिए। सेना, शहीदों और आम नागरिकों के दर्द पर राजनीति करना निंदनीय है। यह समय देश की संप्रभुता को सर्वोपरि रखने का है – राजनीति बाद में भी की जा सकती है।

सरकार के निर्णयों पर सार्थक सवाल उठाना विपक्ष का काम है, लेकिन देश हित में सरकार के द्वारा लिए गए निर्णयों को पर सवाल उठाना विपक्ष की ओछी‌ मानसिकता  को दर्शाता है ! जैसे इंटरनेशनल मीडिया के सामने आतंकियों के खिलाफ की गई सेना की कार्रवाई एवं ऑपरेशन को लेकर सवाल उठाना, मारे गए निर्दोष लोगों के परिजनों के बयान पर प्रश्न चिन्ह लगाना उन्हें झूठा बताना। अब विपक्षी नेताओं की आदत बन चुकी है। 

इसे आम जनता अब समझ चुकी है। इसका ही ये परिणाम है कि ये सत्ता से बाहर हैं, और जब तक ये यूं ही झूठ की राजनीति करेंगे इन्हे सत्ता नहीं मिलने वाली है। ये अपनी खीज निकालने के लिए संसद के अंदर और बाहर यूं ही झूठ के सहारे हंगामा वरपाते रहेंगे और बेचारी-बे-बस  जनता देखती रहेगी ! ये इसी जनता के द्वारा दिए गए टैक्स के पैसे पर, यूं ही मजे से सरकारी सुविधाओं का लाभ लेते हुए मजे करते हुए राजनीति करते रहेंगे। इसलिए अब जनता को भी अपने वोट की ताकत दिखाना चाहिए और ऐसे झूठे नाकारा देश द्रोहियों को घर बैठा देना चाहिए जिससे देश का और नुक्सान न हो ! 

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