G NEWS 24 : "विपक्ष का छलावा, बेवजह के मुद्दों से सत्ता की भूख तक"

लोग मुद्दे नहीं खोजते, बल्कि मुद्दे गढ़ते हैं...

"विपक्ष का छलावा: बेवजह के मुद्दों से सत्ता की भूख तक"

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"जनता अब विपक्ष की ‘भ्रम-राजनीति’ को समझ चुकी है…

ये लोग मुद्दे नहीं खोजते, बल्कि मुद्दे गढ़ते हैं—

और फिर उसी पर ड्रामा कर, खुद ही बेनकाब हो जाते हैं!"


"सत्ता की भूख इतनी कि सच भी इन्हें झूठ लगता है,

और झूठ भी… अपना घोषणापत्र!"


"विपक्ष अब नेता कम,

और ‘फेक न्यूज़ प्रोडक्शन हाउस’ ज़्यादा है!"

आज का भारतीय राजनीतिक परिदृश्य एक अजीब मोड़ पर खड़ा है। जनता से जुड़े असली मुद्दों—रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे—को दरकिनार कर विपक्ष ने एक अलग ही खेल शुरू कर दिया है। यह खेल है बेवजह के मुद्दों को हवा देना, अधूरी या तोड़-मरोड़कर पेश की गई सूचनाओं से माहौल गर्माना, और जनता के बीच भ्रम फैलाना। लेकिन विडंबना देखिए—जिस हथियार से ये सत्ता हासिल करना चाहते थे, वही अब इन्हें बेनकाब कर रहा है।

विपक्ष की राजनीति अब गंभीर बहस की बजाय मीडिया सर्कस बन चुकी है। सुबह कोई बयान, दोपहर में टीवी डिबेट, शाम को सोशल मीडिया ट्रेंड—और फिर अगली सुबह एक नया ‘मुद्दा’। चाहे वह बेबुनियाद आरोप हों, अधूरी तथ्यपरक रिपोर्ट हो, या किसी घटना का राजनीतिक रंग—इनका मकसद सिर्फ एक है: जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाना।

लेकिन देश की जागरूक जनता अब इतना भोला नहीं रही। लोग इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में मिनटों में सच-झूठ का भेद कर लेते हैं। यही कारण है कि बार-बार झूठ के पुलिंदे खुलने लगे हैं और विपक्ष का असली चेहरा सामने आ रहा है। यह खुलासा जनता की आंखें खोल रहा है और विपक्ष की ‘सत्ता की चाहत’ की पोल पट्टी उतार रहा है।

सत्ता पाने की हड़बड़ी में विपक्ष ने एक गंभीर गलती की—उन्होंने जनता की समझ को कम आंका। लोगों को लगा कि जो आवाज उनके लिए उठ रही है, वह सच्ची होगी। लेकिन बार-बार जब सच उल्टा निकला, तो भरोसा टूटना लाज़मी था। राजनीति में यह सबसे खतरनाक स्थिति होती है, जब जनता विश्वास खो देती है।

अब वक्त है कि विपक्ष अपना एजेंडा बदले, वरना आने वाले चुनावों में जनता उन्हें सिर्फ ‘मुद्दों के सौदागर’ के रूप में याद रखेगी। सत्ता तक पहुंचने का रास्ता सिर्फ शोर और झूठ से नहीं, बल्कि ईमानदार और ठोस काम से बनता है—और जनता को यह भलीभांति समझ में आ चुका है। 

- दिव्या सिंह

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